सोमवार, 16 अप्रैल 2018

सफलता का श्रेय

हम सभी लोग किसी भी सफलता के श्रेय का सेहरा स्वयं अपने सिर पर बाँध लेना चाहते हैं। यद्यपि यह ज्ञात नहीं होता कि किसके भाग्य से मनुष्य को सफलता प्राप्त हो सकी है। मनुष्य स्वयं को सफलता रूपी फल का कर्ता मानकर व्यर्थ ही इतराता फिरता है। इस प्रकार व्यर्थ ही अहंकार करना सर्वथा अनुचित है। मनुष्य को हर समय उस मालिक का धन्यवाद करते रहना चाहिए, जिसने इस जीवन में उसे इतना सब कुछ, बिना एहसान जताए, बिना माँगे ही दे दिया है।
          कुछ समय पूर्व एक कहानी पढ़ी थी, उसमें कहानीकार का नाम नहीं लिखा हुआ था। मुझे यह कहानी बहुत पसन्द आई। थोड़े से परिवर्तन और कहानी की भाषागत अशुद्धियों का निराकरण करके आप सबके साथ इसे साझा कर रही हूँ।
           यात्रियों से भरी हुई एक बस कहीं जा रही‌ थी। अचानक मौसम बदल गया और धूलभरी आँधी चलने लगी। उसके बाद बारिश भी बरसने लगी और फिर वह बारिश तूफान में बदल गई। चारों ओर घना अँधेरा छा गया और बिजली चमकने लगी। बिजली कड़ककर बस की तरफ आती और वापिस लौट जाती। जब बहुत बार ऐसा हो गया तब सबकी साँसे ऊपर-की-ऊपर‌ और नीचे-की-नीचे हो रही थीं।
         ड्राईवर ने आखिरकार बस को एक बड़े से पेड़ से पास पचास कदम की दूरी पर रोक दिया और सभी यात्रियों से कहा- "इस बस में कोई ऐसा यात्री बैठा है, जिसकी मौत आज निश्चित है। उसके साथ-साथ कहीं हम सबको भी अपनी जिन्दगी से हाथ न धोना पड़ जाए। इसलिए सभी यात्री एक-एक करके जाओ और उस पेड़ को हाथ लगाकर आओ। जो भी बदकिस्मत‌ होगा उस पर बिजली गिर जाएगी और वह मर जाएगा। इस तरह शेष सभी यात्री बच जाएँगे।"
      सबसे पहले जिस यात्री की बारी थी, उसे दो-तीन यात्रियों ने जबरदस्ती धक्का देकर बस से नीचे उतारा। वह धीरे-धीरे सामने वाले पेड़ तक गया और डरते-डरते उसने पेड़ को हाथ लगाया। फिर भागकर बस में बैठ गया। ऐसे ही एक-एक करके सब यात्री जाते रहे और बस में बैठकर चैन की साँस लेते रहे।
         अब अन्त में केवल एक ही आदमी बच गया था। उसने सोचा कि आज तो उसकी मौत निश्चित ही है। सब‌ यात्री उसे किसी अपराधी की तरह देख रहे थे, जो आज अपने साथ उन्हें लेकर मरता। उसे भी जबरदस्ती बस से नीचे उतार दिया गया। वह भारी मन से उस पेड़ के पास पहुँचा। यह क्या, जैसे ही उसने पेड़ को हाथ लगाया, तेज आवाज के साथ बिजली कड़की और सीधे जाकर बस पर गिर गयी। बस धू-धू करके जल उठी, सब यात्री मारे गए। सिर्फ वही एक यात्री बच गया था जिसे सब बदकिस्मत मान रहे थे। परन्तु वे नहीं जानते थे कि आखिर उसी एक भाग्यवन यात्री के कारण ही उन सबकी जान बची हुई थी, जिसे वे कोस रहे थे।
          यह कहानी हमें यही सन्देश दे रही है कि ईश्वर की माया का रहस्य कोई भी नहीं जान सकता चाहे वह कोई ऋषि हो या मुनि अथवा कोई साधारण इन्सान हो। जिस व्यक्ति को मनहूस समझकर सभी बस यात्री घृणा कर रहे थे, उसी की बदौलत सभी बस यात्री सुरक्षित थे। उसके बस से बाहर निकलते ही सभी बस यात्री काल का ग्रास बन गए। यदि उन्हें यह ज्ञात होता कि उसके कारण वे सुरक्षित हैं तो वे उसे कभी बस से बाहर न निकलते।
           दूसरी बात हम कह सकते हैं कि मनुष्य की मृत्यु का समय व स्थान निश्चित है। मनुष्य ही चलकर उस स्थान पर जाएगा, जगह स्वयं चलकर नहीं आती। कितने लोगों की मृत्यु एक समय पर, एकसाथ होगी यह भी उस मालिक के सिवा और कोई नहीं जानता। इस कहानी के अनुसार एक यात्री के अतिरिक्त और सभी यात्रियों की मृत्यु सुनिश्चित थी। अतः उस एक यात्री के बस से उतरते ही सभी यात्री, ड्राईवर और कण्डक्टर सभी कजल के गाल में समा गए।
         अपने समय को यूँही व्यर्थ न गँवाते हुए प्रभु नाम का भजन करते रहना चाहिए। पता नहीं कब और किस समय इस जीवन की लीला समाप्त हो जाए। मृत्यु को न आयु का ध्यान होता है और न ही पद का। वह तो बस पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार जीव को प्राप्त आयु के पश्चात लेने आ जाती है। इसलिए समय का सदा सदुपयोग करते रहना चाहिए।     
चन्द्र प्रभा सूद
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