मंगलवार, 20 अगस्त 2019

हवाई यात्रा

हवाई यात्राएँ बहुत बार की हैं पर कुछ समय पूर्व दिल्ली से उदयपुर जाते समय महाकवि कालिदास की याद बरबस आ गयी। उस दिन वर्षा हो रही थी। घने काले, सफेद और धूमिल बादलों से ढके हुए आकाश में ऊपर उड़ते हुए समझ में आया कि कालिदास ने इन बादलों को ही अपना दूत बनाकर 'मेघदूत' नामक खण्डकाव्य की रचना क्यों की होगी।
          ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बादलों पर उड़ते हुए जहाज के नीचे मानो किसी ने सफेद चादर बिछा दी हो। दूर-दूर तक जहाँ तक भी नजर जा रही थी, नीले आकाश पर बिछी हुई वह सफेद दूधिया चादर इतनी खूबसूरत लग रही थी, जिसका वर्णन करना गूँगे के गुड़ के स्वाद को बताने जैसा है। अनन्त आकाश को ढकते हुए बादलों ने वास्तव में मेरे इस मन को भी हर लिया। बादलों को यूँ भी मनसिज कहते हैं क्योंकि हमारे मन की कल्पना के अनुसार उनका रूप ढल जाता है।
          महाकवि कालिदास तो ईश्वर की उपासना और विद्वानों की संगति में रहकर महान कवि बने थे। सहृदय कवि को इन बादलों ने अपने जाल में निश्चित ही फंसा लिया था।
        कुबेर की सेवा करते नवविवाहित यक्ष के द्वारा पूजा के लिए बासे कमल के फूल लाने, पर राजा कुबेर ने उन्हें रामगिरि पर्वतों पर एक वर्ष तक अकेले रहने की सजा दी थी। हवाई जहाज की तरह यात्रा करते हुए बादलों को हिमगिरि पर्वत से उज्जयिनी का रास्ता बताते हुए जितना सजीव चित्रण कालिदास ने किया है, शायद ही किसी और ने किया होगा। इस वर्णन की सुन्दरता से मोहित परवर्ती कवियों ने अपने पाठकों के लिए, विश्व की अनेक भाषाओं में इस 'मेघदूत' खण्डकाव्य का अनुवाद किया।
        हवाई जहाज जब थोड़ी-सा नीचे आता है, तब बड़े-बड़े वृक्ष बोनसाई पौधों की तरह लगते हैं। सड़कों पर दौड़ती हुई गाड़ियाँ ऐसी लगती हैं, मानो बच्चे घर के फर्श पर या मेज पर अपनी गाड़ियाँ दौड़ा रहे हों। ऊँचे बहुमंजिला भवन ऐसे दिखाई देते हैं, मानो खेलते-खेलते बच्चों ने अपने ब्लाक्स थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रख दिए हों और कुछ ही पल बाद उन्हें उठाकर फिर कहीं और रख देंगे।   
          आसमान में जब हवाई जहाज बहुत ऊँचाई पर उड़ता है, तब उस समय बड़े-बड़े पेड़ों, नदियों, सड़कों, भवनों और प्रदेशों की सीमाएँ कहीं खो-सी जाती हैं। ऐसा प्रतीत होता है, मानो यहाँ पर सब कुछ एक-ही हैं। ऊँचे और नीचे के कोई भेदभाव नहीं, कोई अलगाव नहीं, बस सब बराबर। ऊपर से चाहो तो भी उन्हें किसी भी तरह बाँटना सम्भव नहीं होता।
          इसी प्रकार जो भी कोई व्यक्ति अपने जीवन के किसी भी क्षेत्र में ऊँचाइयों को छू लेता है, उसे भी समद्रष्टा बन जाना चाहिए। अपने अधीनस्थों के साथ उसे सहृदयता पूर्वक समानता का व्यवहार करना चाहिए। घर-परिवार अथवा बन्धु-बान्धवों के साथ भी एक जैसा ही व्यवहार रखना चाहिए।
          देश के उच्च पदासीनस्थ लोगों को भी धर्म- जाति, ऊँच-नीच, छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, रंग-रूप आदि की सभी सीमाओं को तोड़ देना चाहिए और सबके साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। शासक वही सफल होता है जिससे प्रजा बिना डरे अपने मन की बात शेयर कर सके।
        हम सभी मनुष्य पक्षियों की तरह पंख लगाकर उड़ना चाहते हैं। नित्य नए-नए अनुभव संजोना चाहते हैं। इस हवाई यात्रा ने मेरे मन में भी उथल-पुथल मचाई है, उसे आप सभी सुधी मित्रों के साथ साझा करके मुझे बहुत आत्मसन्तोष हो रहा है। मुझे लगता है आप सब भी मेरे विचारों से एकमत होंगे।
चन्द्र प्रभा सूद
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