शुक्रवार, 15 मई 2015

बगुला भक्त

बगुला भक्तों के लिए प्रायः कहा जाता है- 'मुँह में राम बगल में छुरी।'
इस उक्ति का अर्थ मुझे कुछ ऐसा लगता है कि ईश्वर की उपासना करो तो सच्चे मन से। वहाँ दिखावा नहीं होना चाहिए। आप किससे भक्त होने का सर्टिफिकेट या तमगा चाहते हैं। इस भौतिक संसार से यदि यह प्रशंसा पा ली कि अमुक व्यक्ति बड़ा भक्त है या बहुत बड़ा दानी है तो उससे क्या फर्क पड़ेगा? जिसकी उपासना के लिए सब ढोंग कर रहे हो यदि उसने अस्वीकृत कर दिया तो सब व्यर्थ हो जाएगा।
        बगुले को भक्त क्यों कहते हैं? पहले यह जानना आवश्यक है तभी जान सकेंगे कि इंसान को बगुला भक्त क्यों कहा गया है? कहते हैं कि जब बगुला जब मछली पकड़ने में असमर्थ हो गया है तब उसने एक तरकीब सोची। वह तालाब में एक टांग पर खड़ा हो गया। उसे देखकर मछलियों ने सोचा अब यह भक्त बन गया है। इसलिए इससे डरने की कोई आवश्यकता नहीं। वे बेचारी मछलियाँ उसके षडयंत्र को समझ नहीं सकीं। मस्ती से तालाब में इधर-उधर अठखेलियाँ करने लगीं। अब बगुले की मौज हो गई। जो मछली उसके पास आती उसे सबकी नजर बचाकर उसे खा लेता। तो यह थी भक्त बने बगुले की सच्चाई।
         मनुष्यों में जो मनुष्य अपने आचार-व्यवहार एवं चरित्र से वास्तव में ईश्वर का भक्त है उसे यह बताने या दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं होती कि वह सच्चा भक्त है। जैसे हीरे को अपने मूल्यवान होने का प्रमाण किसी को भी नहीं देने की जरूरत नहीं होती। जौहरी उसका मूल्य स्वयं ही लगा लेता है।
        जो लोग आयुपर्यन्त लूट-खसौट करते हैं, चोरी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार आदि कुकर्मों में लिप्त रहते हैं वे मंदिर में जाकर कितनी भी घंटियाँ बजा लें ईश्वर उनसे प्रसन्न नहीं होता। बेशक वे सुखी होने का दिखावा करें परन्तु मन में हर समय ही भयभीत रहते हैं।
       कभी उन्हें अपनी सफेदपोशी का डर होता है तो कभी कानून के शिकंजे में जकड़े जाने का भय सताता है। अपने घर-परिवार के सदस्यों के मनमाने व्यवहार से पीड़ित रहते हैं। कहते हैं- 'जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन।' नाजायज तरीके से कमाए धन का सभी दुरूपयोग करते हैं।
        मंदिरों या धार्मिक स्थानों पर गुप्त दान के नाम लाखों रूपयों नकद रूप में या सोने-चाँदी के आभूषण एक ही व्यक्ति क्या ईमानदारी व सच्चाई की कमाई से कभी दे सकता है? इसका उत्तर सभी न में ही देंगे। ईश्वर ऐसे धन को दान में प्राप्त करके कभी प्रसन्न नहीं होता। ऐसे लोगों की कमाई में बरकत भी नहीं होती।
       पूजा, अर्चना और दान उन्हीं लोगों का फलीभूत होता है जो ईमानदारी व सच्चाई से कमाते हैं। ऐसे लोगों के पैसे में बहुत बरकत होती है। मेरी बात पर विश्वास न करके अपने आसपास इसको कसौटी पर परख लें तभी मानें।
        कुछ लोग अपने जीवन में दुष्कर्मों की ओर प्रवृत्त रहते हैं और घंटों-घंटों पूजापाठ करते हैं उनका यह सब निष्फल हो जाता है। वे शायद सोचते हैं कि पूजापाठ करने से उनके पाप कट जाएँगे पर ऐसा नहीं होता। वे भूल जाते हैं- 'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।'
अर्थात जो भी अच्छे या बुरे कर्म मनुष्य करता है उन दोनों का ही फल उसे भोगना पड़ता है।
         अपने आपको ईश्वर की दृष्टि में श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहिए। दुनियावी प्रदर्शन से बचना चाहिए। जिस मालिक के नाम पर सारे आडम्बर कर रहे हैं वह तो सर्वज्ञ है। आँखें बंद कर लेने से जैसे बिल्ली नहीं भाग जाती उसी प्रकार अपने कर्मों से भी जीव नहीं बच सकता। फल भोगते समय बहुत कष्ट होता है। घर-परिवार सहित सारी दुनिया से मनुष्य छल कर सकता है पर स्वयं से भागकर नहीं जा सकता। अतः बगुला भक्त न बनकर सच्चा भक्त बनें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें