मंगलवार, 26 मई 2015

जप

निराकार या साकार जिस भी इष्ट का नाम स्मरण करने के लिए आप जो आराधना करते हैं उसे जप करना कहते हैं । इस संसार में उसने हमें अपनी उपासना करने के लिए अवतरित किया है।
        जपयोग की साधना से धीरे-धीरे मन स्थिर होने लगता है। यदि किसी विशेष मन्त्र के जप का प्रावधान न किया हो तो 'ऊँ' का जप कर सकते हैं जो निरापद व सर्वश्रेष्ठ है।
जप के प्रकार-
1. वाचिक(वैखरी) जप- वाचिक जप में मन्त्र का उच्चारण कितनी भी जोर से कर सकते हैं। इससे प्रारम्भिक अवस्था में चंचल मन को व्यवस्थित करने में सहायता मिलती है। मन को स्थिर करने के लिए सामूहिक वैखरी जप भी बहुत प्रभावशाली होता है।
2.  उपांशु जप-  मन्त्र को फुसफुसाते हुए उपांशु जप किया जाता है। इसमें होंठ हिलते हैं पर ध्वनि नहीं होती। यह जप किसी अन्य को सुनाई नहीं देता पर स्वयं जपकर्त्ता इसे सुन सकता है। यह जप मानसिक जप की श्रेणी में आता है। जिस स्थान पर शोर अधिक हो वहाँ इस जप से मन को स्थिर किया जा सकता है।
3. मानसिक जप- यह जप मन में मौन रहकर किया जाता है। इसमें न ध्वनि होती है और न ही होंठ हिलते हैं। इस जप को करने से शब्द नहीं होता। उसकी आवाज स्वयं को भी नहीं सुनाई देती। जिसका मन स्थिर हो जाता है वह इस जप को करते हैं। इस जप से आत्म साक्षात्कार तक पहुँच सकते हैं।
4.  लिखित जप- लाल, नीली या हरी किसी भी स्याही का प्रयोग करके एक निश्चित संख्या में मन्त्र लिखा जाता है। जहाँ तक संभव हो अक्षर छोटे व सुन्दर तरीके से लिखने चाहिएँ। लिखित जप के साथ-साथ मानसिक जप भी करना चाहिए।
5. तालव्य जप-  कुछ विद्वान मानते हैं कि तालु के साथ जीभ को मोड़कर लगाकर फिर जप करना चाहिए। यह भी मानसिक जप ही होता है और इससे भी मन स्थिर रहता है।
       जप करते समय दो बातों का विशेष रूप से ध्यान देना होता है- पहला है मन्त्र का शुद्ध उच्चारण करना। दूसरा जप के साथ एक-एक मनका सरकाना। ये कार्य चेतना को विकसित करने और स्थिर करने के लिए आवश्यक हैं। कुछ समय पश्चात अपने अंतस में ही एक लय और ताल का अनुभव होता है। सोते समय यदि जप किया जाए तो विचारों की अधिकता बाधक बनती है तब मन्त्र व माला दोनों रुक जाते है और तालमेल बाधित हो जाता है।
        जो लोग हमेशा शंकालु, परेशान या बेचैन रहते हैं उन्हें जपयोग से लाभ होता है। जप को कहीं भी कभी भी किया जा सकता है।  
          किसी निश्चित समय पर किया गया नियम पूर्वक जप लाभदायक होता है। भीड़ में या शोर वाले स्थान पर जप करते समय माला का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
         विद्वानों का मानना हैं कि जप करते समय जपसरिणी का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। यदि मन व्यग्र हो तो जप का लाभ नहीं मिल पाता कहा गया है-   
              'व्यघ्रचित्तो हतो जप:'
अर्थात चित्त की व्यग्रता से जप बेकार हो जाता है।
       अजपा जाप क्रियायोग का आधार है। इसमें कुशलता प्राप्त करने के लिए साधक को प्रत्याहार, धारणा और एकाग्रता की आवश्यकता होती है। इस जप में पूर्णता प्राप्त करने वाले के संस्कारों का क्षय हो जाता है। तब मन पूर्णरूप से एकाग्र होने लगता है। यह ध्यान योग की सीढ़ी है।
       जप करते समय सुविधाजनक आसन में बैठना चाहिए। यदि बैठना संभव न हो तो सीधे लेटकर शवासन में जप करना चाहिए।

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