शुक्रवार, 8 मई 2015

सास बहू के संबंध

सास और बहु के आपसी संबंधों की कड़वाहट के किस्से प्रायः सुनने को मिलते हैं। जिस घर में ऐसा माहौल होता है वहाँ दिन-रात का चैन पंख लगाकर उड़ जाता है। फिर शेष बचते है अकेलापन, उदासी, घर में अशांति आदि।
        ऐसा नहीं है कि इस खटपट के लिए अकेली सास दोषी है या अकेली बहु। दोनों ही की ओर से कुछ-कुछ ऐसा हो जाता है जिससे घर अशांत व नरक तुल्य हो जाता है। आजकल पहले जमाने की तरह दोनों ही अनपढ़ नहीं बल्कि पढ़ी-लिखी हुई होती हैं। फिर उन दोनों समझदार गृहणियों से ऐसे कटु व्यवहार की अपेक्षा कदाचित नहीं की जाती। यदि दोनों थोड़ी सी समझदारी से काम लें तो घर में कोई समस्या ही न रह जाए और स्वर्ग के समान सुखी व खुशहाल हो जाए।
        हमारा पारिवारिक ढ़ाँचा ऐसा है कि हर बेटी को विवाह के उपरान्त अपने माता-पिता का घर छोड़कर अपने ससुराल पति के घर जाना होता है। इसलिए ससुराल पक्ष को चाहिए कि अपनी बहु का स्वागत करें और उसे खुले दिल से अपनाएँ।
        कमियाँ हर इंसान में होती हैं। उन कमियों को नजरअंदाज करके ही हम सभी संबंध निभाते हैं। फिर बहु के साथ परिवार और परिवार के सदस्यों के साथ बहु के संबंध निभाने में कठिनाई क्यों?
      सभी माता-पिता चाहते हैं उनकी बेटी ससुराल में सुखी रहे। अपनी बेटी के लिए अपने दामाद व ससुराल पक्ष के लिए मधुर व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। परन्तु वही माता-पिता बहु के लिए संकीर्ण हृदय क्यों हो जाते हैं?
        भाई या बेटा जो पहले अपना होता है शादी के बाद वो पराया कर दिया जाता है यह बात हजम नहीं होती। यदि वह पत्नी की सुने तो उसे जोरु का गुलाम कहकर धिक्कारा जाता है। इसके विपरीत यदि अपने माता-पिता या परिवार के विषय में वह सोचे तो उसे mom's boy कहकर अपमानित किया जाता है।
        बहु के मायके वालों को अपना बेटा तो आज्ञाकारी चाहिए पर दामाद नहीं। समझ में नहीं आता लोगों की सोच इतनी स्वार्थी कैसे होती जा रही है?
       बहु भी किसी की बेटी होती है। उसे भी नाजों से पाला जाता है। आप उसे घर की लक्ष्मी का सम्मान दें। उसकी कमियों को अनदेखा करते हुए उसे प्यार से धीरे-धीरे अपने परिवार के अनुरूप बनाएँ। इस बात को हमेशा स्मरण रखिए कि अपने बच्चे भी अवज्ञा कर जाते हैं और पलटकर जवाब भी दे जाते हैं। बहु भी तो अपनी बेटी है उसके साथ कभी ऊँच-नीच हो जाए तो गाँठ मत बाँध लीजिए। जहाँ तक हो सके दूसरों के सामने बच्चों की प्रशंसा कीजिए बुराई कदापि नहीं।
       लड़की अपने माता-पिता का घर छोड़कर जो सपने लेकर ससुराल आती है उन्हें बड़ों को विश्वास में लेकर पूरा करे। सच्चे मन से सास- ससुर को माता-पिता माने और देवर-ननदों को भाई-बहन। प्रयास यही रहना चाहिए कि बड़ों को कभी पलटकर जवाब न दिया जाए क्योंकि इससे संबंधों में कटुता आती है। उस समय लगाई गयी चुप्पी सौ झगड़ों से बचाती है।
        गलती हो जाने पर घर के छोटे या बड़े सभी सदस्यों को बिना किसी पूर्वाग्रह के अपना अहम छोड़कर क्षमा याचना कर लेनी चाहिए इससे घर में सौहार्द बना रहता है।
       माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी बेटी को ससुराल में सामंजस्य रखने का परामर्श दें। छोटी-सी बात को तूल देकर बेटी के घर में दखल न दें जब तक पानी सिर से ऊपर न हो जाए। बेटी को भी चाहिए कि वह ससुराल की हर बात माता-पिता को न बताए। इससे झगड़े ज्यादा बढ़ते हैं। बार-बार बेटी के घर जाकर मीनमेख निकालना या टीका-टिप्पणी करने से संबंधों में दरार आने लगती है।
        किसी भी घटना के लिए दोनों ही पक्ष जिम्मेदार होते हैं। संबंधों में खटास न आने पाए इसलिए गम खाना सीखिए। बड़ों को बच्चों के सिर अपना वरद हस्त रखना चाहिए और बच्चों को बड़ों का यथोचित सम्मान करना चाहिए। दोनों ही पक्ष थोड़ा झुककर चलें तो घर में सुख, शांति व समृद्धि बनी रहती है

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