शनिवार, 30 मई 2015

उन्मुक्त गगन में उड़ने वाले

उन्मुक्त गगन में उड़ने वाले
बादलों से परे जा नील गगन को
बारबार छूने की होड़ करते मेरे अंतस
तुम अब ऐसे निश्चेष्ट और उदास से बैठे हो

तुम्हारे स्वर्णिम पंखों पर
बहुत गर्व था अब तक मुझको
लगता है वे कतर दिए गए हैं शायद
तुम्हारी उड़ान पर प्रतिबंध लगाने के लिए

हो सकता है उन लोगों को
न भाया हो स्वचछंद विचरण
तुम्हारे नयेपन का अदम्य साहस
इसीलिए तुम्हें जकड़ना चाहते हैं बेड़ियों में

कभी परिवार का वास्ता
तो कभी समाज का भय दिखा
और कभी धर्म की रूढ़ियों में बांध
वे तुम्हें सदा जीवन में मात देते जा रहे हैं

तुम ऐसे नादान हो कि
उनके बुने जाल में फंसते
छटपटा रहे हो अनवरत ही
यह मकड़जाल न जीने देगा तुम्हें पलभर

तोड़कर इन खोखले
बंधनों की जंजीरों को तुम
अपना मानस तैयार कर लो
एक नयी सुबह अब आने को मचल रही है

बाहें पसार करके
उसके स्वागत की करो
तैयारियाँ बहुत जोश व होश से
न बहका सके कोई तुम्हारे मानस को अब।

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