बुधवार, 20 मई 2015

आत्मविश्वास

आत्मविश्वास मनुष्य के जीवन की ऐसी पूँजी है जिसकी उसे मृत्यु पर्यन्त हर कदम पर बहुत ही आवश्यकता होती है। समाज में अपनी नयी पहचान बनाने में यह हमारी सहायता करता है। आत्मविश्वास से भरे हुए लोगों के चेहरों पर बिना मेकअप किए ही एक अलग ही तरह की चमक या तेज होता है जो उन्हें दूसरों से अलग करके विशेष बना देता है।
         आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्ति तलवार की धार पर चलने जैसे किसी भी कठिन-से-कठिन कार्य को चुटकी बजाते ही पूर्ण कर लेता है। समुद्र में गहरे पैठने से लेकर आकाश की ऊँचाइयों को नापने में हिचकिचाता नहीं है। पर्वतों का सीना चीरकर नए रास्ते बना लेना उसके बाँए हाथ का खेल होता है।
        इन्हीं लोगों के परिश्रम के फलस्वरूप आज हम इतनी अधिक सुविधाएँ भोग रहे हैं। आज सर्दी में हमें सर्दी का अहसास नहीं होता और गर्मी में गर्मी का। दुनिया तो वाकई मुट्ठी में आ गई है। विश्व में कहीं भी आना-जाना कुछ घंटों में हो जाता है। कहने का तात्पर्य है कि इन आत्मविश्वासियों के कारण ही विज्ञान ने हर क्षेत्र में विकास किया है।
         विश्व में जितने भी ऐसे विश्वास से भरपूर लोग हैं वे बिना डरे शेर की तरह पहली पंक्ति में चलते हैं। वे अपने कदमों के निशान पीछे छोड़ते जाते हैं। शेष दुनिया उनके पीछे उन्हीं निशानों पर चलती है। हर क्षेत्र में उन्हीं के नाम पर सारे रिकार्ड बनते हैं। इन लोगों को अकेले चलने में भी कोई परहेज नहीं होता। ये समय की धारा को अपनी इच्छाशक्ति से मोड़ने की सामर्थ्य रखते हैं।
          इस आत्मविश्वास के बिना किसी  मनुष्य के जीवन की कल्पना करना कठिन होता है। इसकी कमी होने पर वह हीन भावना से ग्रसित व कुंठित हो जाता है। अपने पर से उसका विश्वास उठने लगता है।
        वह मायूसियों के घेरे में कैद हो जाता है। तब उसे ऐसा प्रतीत होता है कि सारा ही जमाना उसका शत्रु बन गया है। किसी की अच्छी शिक्षा भी उसे जहर की तरह कड़वी लगती है। हर कामयाब व्यक्ति से वह ईष्या करने लगता है। गाली-गलौच तक करके वह अपने मन की भड़ास निकाल कर स्वयं को और अधिक परेशानी में डाल लेता है।
          यदि आत्मविश्वास की कमी हो जाए तो मनुष्य जीवन में उन्नति नहीं कर पाता। किसी भी कार्य को करने से पहले ही वह घबराने लग जाता है और उसे अनावश्यक ही डर लगता है। उसका गला सूखने लगता है और हाथ-पाँव काँपने लगते हैं। अपने जीवन में निराशा के गर्त में वह डूबने लगता है।
         कभी-कभी हीन भावना के चलते वह डिप्रेशन में चला जाता है। और कुछ विशेष परिस्थितियों में वह अपना मानसिक संतुलन तक खो बैठता है व मनोरोगी बन जाता है। फिर वह डाक्टरों के अधीन हो जाता है।
         मनुष्य में आत्मविश्वास  सुसंस्कारों, उच्च विचारों, उच्च शिक्षा व योग्यता, सद् ग्रन्थों के अध्ययन और सत्संगति से आता है। इसलिए स्वयं को सकारात्मक कार्यो में व्यस्त रखते हुए अपने आत्मविश्वास को निरन्तर बनाए रखना चाहिए। यह विश्वास बनाए रखना चाहिए कि कभी भी कैसी भी परिस्थिति आ जाए हम आत्मविश्वास का दामन नहीं छोड़ेंगे और न ही उसे डगमगाने देंगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें