बुधवार, 30 दिसंबर 2015

अलविदा 2015

अलविदा कहते हैं तुम्हें सन 2015 तुम्हें और सन 2016 तुम्हारा स्वागत करने के लिए हम पलक पाँवड़े बिछाए बैठे हैं। हमने योजनाएँ बना ली हैं, दोस्तों को दावत दे दी है और जश्न की पूरी तैयारी कर ली है। बस तुम जल्दी से आ जाओ, अब और प्रतीक्षा नहीं।
            जाता हुआ वर्ष बहुत कुछ सिखा जाता है। सबसे पहले वह आत्म मन्थन करने की प्रेरणा देता है जिससे पूरे वर्ष का अपना चलचित्र हम देख सकें। उसके लेखे-जोखे के विवरण की समीक्षा कर सकें। जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए, उनके विषय में हम विचार कर सकें। वे कभी प्रसन्नता देते रहे तो कभी खून के आँसू रुलाकर चले जाते रहे।
          इन सभी के बीच में डूबता-उतरता जीवन अपनी निर्बाध गति से चलता रहता है। पल-पल करके समय काटना तो बहुत दुष्वार हो जाता है परन्तु वर्षों वर्ष बीत जाते हैं। पीछे मुड़कर देखो अथवा सोचो तो लगता है कि कल ही की बात है। बीता हुआ सब समय मानो एक स्वप्न के जैसा लगने लगता है।
          यूँ देखो तो वही वादे, वही वादा खिलाफी, एक-दूसरे पर कीचड़ उछालना, वही महंगाई का रोना, वही अनशन, वही जलूस, वही दूसरों पर टीका-टिप्पणी, वही अत्याचार-अनाचार आदि कुछ भी तो नहीं बदलता। हर वर्ष एक नई उम्मीद दामन थामे चली आती है परन्तु फिर मिलते हैं वही ढाक के तीन पात, यानि कि निराशा ही हाथ लगती है।
          चारों ओर जहाँ भी नजर घुमाओ वही संत्रास मुँह बाए खड़ा सब कुछ लील जाने के लिए तैयार मिलता है। इस सबसे बच पाना बहुत कठिन होता है। न चाहते हुए भी वह आड़े आ जाता है। बस अपने आप को समेटकर बच-बचाकर निकल जाने का असफल प्रयास करते हुए लोग चारों ओर दिखाई देते हैं। शेष बच जाता है उनका सौभाग्य जो उनका कितना साथ निभा पाता है, कहना कठिन होता है।
            नव वर्ष में कदम रखने से पूर्व हमें गम्भीरता से आत्मविश्लेषण करना चाहिए कि जो योजनाएँ पिछले वर्ष बनाई थीं, इस बीते वर्ष उनको सफलता पूर्वक क्रियान्वित कर पाए अथवा नहीं। यदि हम मनचाही योजनाओं को पूर्ण कर सके हैं तो निश्चत ही यह समय अपनी पीठ थपथपाने का है। आनन्द मनाने का है। यह घमण्ड करके आसमान में उड़ने का विषय नहीं है।
           यदि हम अपनी योजनाओं को पूर्ण करने में असफल रहे तब वाकई यह समय चिन्ता करने का है। उस स्थिति में विमर्श करना बहुत आवश्यक है। उस असफलता पर बिसूरने के स्थान पर उन कारणों को खोजना है जो निराशा करने वाले हैं। अपनी गलतियों को सुधारकर हमें आगे बढ़ने की आवश्यकता है। तभी हम सफलता की ऊँचाइयों को पा सकेंगे।
         बीते वर्ष की अपनी असफलताओं को सफलता में बदलने के लिए दोगुणे उत्साह और हिम्मत से जुटना जरूरी है। इस तरह फिर अगला नव वर्ष जब आएगा तो हमारे मन कोई पछतावा नहीं होगा।
         भारतीय परम्परा रही है कि नव वर्ष का स्वागत वे यज्ञ-हवन करके करते हैं। इस दिन दान देने की परिपाटी भी है। यह नव वर्ष क्योंकि विदेशियो की तर्ज पर मनाया जाता है, इसलिए इस दिन डाँस-पार्टियाँ की जाती हैं। क्लबो में या होटलों में जाकर, धन व्यय करके, देर रात तक जश्न मनाया जाता है। कुछ लोग इस दिन को मनाने के लिए अन्यत्र देश अथवा विदेश में जाते हैं।
         यह नव वर्ष हम सबके लिए नित नए आयाम लेकर आए। सबके लिए खुशियाँ, अच्छा स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि लेकर आए। इसी कामना के साथ हमें इसका स्वागत खुले मन से प्रसन्न होकर करना श्रेयस्कर है।
चन्द्र प्रभा सूद
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