गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

दूसरों की गलती

दूसरों की गलतियों को यत्नपूर्वक खोजते हुए हम छिद्रान्वेषी बन जाते हैं। स्वयं को दूध का धुला मानकर हम चैन की बंसी बजाने लगते हैं। यद्यपि व्यवहारिकता में ऐसा नहीं होता। इस सृष्टि में कोई भी मनुष्य सर्वगुण सम्पन्न नहीं है।हर मनुष्य में कोई-न-कोई कमी अवश्य होती है। यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई नहीं होगी तो वह ईश्वर तुल्य बन जाएगा।
         बुराइयों और बुरों को खोजना कोई समझदारी का काम नहीं है। हममें पता नहीं कितनी बुराइयाँ होंगी जिनके विषयमें हम सोचते नहीं हैं। उस ओर से अपनी आँखे मूँद लेते है। इसीलिए कहा है-
        बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोए
        जो मन खोज आपना मुझसे बुरा न कोए॥
अर्थात मैं बुरे व्यक्ति को ढूँढने निकला परन्तु मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला। जब मैंने अपने भीतर, अपने मन में खोजा तो मुझे पता चल गया कि मुझसे बुरा कोई और नहीं है। अर्थात मेरे अंदर बुराइयों की कोई कमी नहीं है।
        दूसरों में बुराई की खोज करते हुए हम अनजाने ही अपने अंतस में बुराइयों को जमा करने लगते हैं। यह जान ही नहीं पाते कि कब मानवीय मूल्यों को ताक पर रखते हुए, आँखों पर स्वार्थ की पट्टी बाँधकर हम कूप मण्डूक की तरह बन जाते हैं। तब हमें स्वयं की बुराइयाँ नजरअंदाज करने की आदत पड़ जाती है।
         सच बात तो यह है कि मनुष्य को अपने मित्रों और बन्धुओं को सदा उनकी अच्छाइयों और बुराइयों दोनों के साथ ही स्वीकारना होता है। अगर वह ऐसा नहीं कर सकता और दूसरों की बुराइयों को ढूँढकर सदा उन्हें अपमानित करता रहता है तो सबसे कटकर अलग-थलग पड़ जाता है। हर व्यक्ति यथायोग्य सम्मान चाहता है, अनादर नहीं। सभी लोग उस व्यक्ति को अहंकारी कहकर स्वयं ही किनारा कर लेते हैं। कोई भी उसे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेगा।
        मनुष्य जैसा करता है वैसा ही फल पाता है। यानि मनुष्य को जीवन में वही मिलता है जो वह बोता है। यदि वह नफरत की खेती करेगा तो उसे नफरत मिलेगी और प्यार व अपनेपन की खेती करेगा तो उसके हिस्से में प्यार व अपनापन ही आएँगे। इसीलिए निन्दक अपने करीब रखने की सलाह दी गई है ताकि साबुन और पानी के बिना हमारी बुराइयों को दूर करके हमें एक अच्छा इन्सान बनने में मदद करे।
         कभी-कभी मनुष्य सोच लेता है कि उसने बड़ी सावधानी से लुक-छिपकर अपने गलत कार्य को अंजाम दिया है। किसी को क्या पता चलेगा? हमेशा उसकी सफेदपोशी बनी रहेगी, पर ऐसा होता नहीं है। उसकी की गई बुराई स्वयं ही उसका रास्ता रोककर खड़ी हो जाती है। तब वह हतप्रभ हो जाता है।
       हमारा प्रयास यही होना चाहिए कि हम दूसरों की बुराइयों की ओर ध्यान न दें। जैसा वे करेंगे स्वयं उसका भुगतान कर लेंगे। हम दूसरों को समझा सकते हैं पर विवश नहीं कर सकते। हमें केवल अपने दोषों की ओर देखना है और यथासम्भव उनको यत्नपूर्वक ढूँढकर दूर करना है। मनुष्य चाहे तो उसके लिए कुछ भी कर पाना असम्भव नहीं है।
         सार रूप में यही कह सकते हैं कि अपनी बुराइयों को तो हर हाल में हमें दूर करना पड़ेगा। यह शुभ कार्य हम आज ही कर लें चाहे वर्षों या कई जन्मों के पश्चात। इनसे मुक्त हुए बिना हम कभी मुक्त नहीं हो सकते। तब जन्म-मरण के चक्र में फंसे हम मनुष्यों को फिर चौरासी लाख योनियों में  भटकना ही पड़ता है। मनुष्य को उससे कोई नहीं बचा सकता।
चन्द्र प्रभ सूद
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