गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

त्रिया हठ

त्रिया हठ बहुत ही विनाशकारी होता है। इसके दुष्परिणाम से बढ़कर किसी और का इतना भयंकर परिणाम नहीं होता। इस हठ के आगे किसी महारथी का भी वश नहीं चलता।
          रामायण में केकैयी के हठ के कारण भगवान राम को अपनी पत्नी सीता और भाई लक्षमण के साथ चौदह वर्ष के लिए जंगलों में भटकना पड़ा। वहाँ उन सबको अगणित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सबसे बढ़कर राजा दशरथ की मृत्यु हो गई और भरत ने राजगद्दी पर बैठने से इन्कार कर दिया।
           यदि भगवती सीता स्वर्ण मृग लाने की जिद भगवान राम से न करतीं तो रावण उनका अपहरण न कर पाता। उस स्थिति में शायद रामायण का युद्ध न होता।
          इसी तरह द्रौपदी यदि अपने हठ और अहंकार का प्रदर्शन न करती तो शायद महाभारत का विनाशकारी युद्ध टल जाता जो इतने सारे विद्वानों और योद्धाओं को लील गया।
         इतिहास के पन्नों में काली कहानियाँ दर्ज हो चुकी हैं। उनको पढ़कर मन पीड़ित होता है। विश्व में हुई अनेक घटनाएँ इस बात की गवाह हैं कि त्रिया हठ से किसी का भला नहीं होता।
          घर-परिवार को सम्हालने वाली स्त्री होती है। पुरुष के बूते की बात नहीं कि वह घर को सुचारू रूप से चला सके। यदि वही हठ करके बैठ जाए तो वह घर घर नहीं रहता श्मशान की तरह हो जाता है। वहाँ कुछ भी शुभ नहीं होता। वहाँ पर दिन-प्रतिदिन कुव्यवस्था का साम्राज्य होता जाता है। घर के सभी लोग अपनी मनमानी करने लगते हैं। घर बरबाद हो जाता है।
         जिस घर की स्थितियाँ इस दुर्दान्त बिमारी के कारण विपरीत होने लगती हैं,  उस घर से धन-सम्पत्ति रूठने लगती है। वहाँ कर्जे सिर पर सवार होकर नचाने लगते हैं। दिन-रात का चैन पंख लगाकर हवाई जहाज की तरह उड़कर कहीं अन्यत्र चला जाता है। ऐसे घर का अन्त विघटन से होता है। वहाँ पति-पत्नी का तलाक भी हो सकता है अथवा संयुक्त परिवार का अनचाहा विघटन हो सकता है। इस सब में बच्चे सबसे ज्यादा भुगतते हैं, जिन बेचारों का कोई दोष नहीं होता।
         इस हठ के कारण वह स्वयं भी तो संतुष्ट नहीं रह सकती। यदि उसका तुष्टिकरण हो जाए तो इन्सान सोच लेगा कि कोई बात नहीं अब सब ठीक हो गया। यह हठ भी तो सुरसा के मुँह की तरह खुला रहता है। एक हठ या जिद पूरी हो जाने पर फिर से नई जिद तैयार हो जाती है। सारा समय घर में अशान्ति का माहौल बना रहता है। किसी को पलभर के लिए चैन नहीं मिल पाता।
           ऐसी स्त्रियों की ससुराल में तो क्या अपने मायके में भी नहीं बनती। उनके इस स्वभाव के कारण वहाँ भी उन्हें कोई पसन्द नहीं करता। उनकी सखी-सहेलियाँ भी न के बराबर ही होती हैं।
          यह त्रिया हठ कहीं भी अमन-चैन नहीं रहने देता। यह मानकर चलना चाहिए कि इस हठ से किसी का भला नहीं होने वाला। इसलिए जहाँ तक सम्भव हो समझदार महिलाओं को अपना हठ छोड़कर सबसे तालमेल बिठाना चाहिए। ऐसा करके वे सबकी चहेती बन सकती हैं और घर-परिवार में सर्वत्र सम्मान अर्जित कर सकती हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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