सोमवार, 21 दिसंबर 2015

आत्मज्ञान

हमारी वाणी, हमारी श्रवण इन्द्रिय, हमारी नासिका या घ्राण शक्ति, हमारी आँखें, हमारा, हमारा प्राण आदि हमारे होते हुए भी हमारे नहीं होते। अर्थात कुछ समय पश्चात हमारा साथ छोड़ देते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ये हमें साधन के रूप में निश्चत समय के लिए मिलते हैं। यदि इनका उपयोग हम आत्मोन्नति के लिए करते हैं तो ईश्वर तक पहुँचने की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। अन्यथा चौरासी लाख योनियों में भटकते रहते हैं।
         ईश्वर हमारी इन भौतिक इन्द्रियों की पहुँच से परे है। उसका साक्षात्कार अपने हम ज्ञान चक्षुओं से कर सकते हैं। इस आत्म साक्षात्कार करने की कोई आयु नहीं होती। सौतेले भाई को पिता की गोद में देखकर पिता की गोद में बैठने के लिए मचलने वाले बालक ध्रुव को उसकी माँ ने परमपिता परमात्मा की गोद को पाने के लिए प्रेरित किया। नारद जी के मार्गदर्शन में उसने छोटी-सी अवस्था में यह कठिन अथवा असम्भव-सा प्रतीत होने वाला कार्य कर दिखाया। ऐसी मान्यता है कि आकाश में चमकने वाला और सबको मार्ग दिखाने वाला ध्रुव तारा वही बालक ध्रुव है।
        कठोपनिषद में एक कथा आती है कि ऋषि वाजश्रवा ने मुक्ति की कामना से यज्ञ किया और अपना सर्वस्व दान करने के लिए निश्चय किया। जब दान करने का समय आया तो उनके मन में मोह उत्पन्न हो गया। वे ऐसी गौवें दान करने लगे जो वृद्ध हो चुकी थीं और दूध नहीं देती थीं। उनका पुत्र नचिकेता बालक था। पिता को ऐसा करते देखकर उसे दुख हुआ। उसने पिता से कहा कि मैं आपका सबसे प्रिय हूँ, मुझे दान में किसको दोगे। दो-तीन बार उसके पूछने पर पिता ने कहा तुझे यमराज यानि मृत्यु के देवता को देता हूँ।
         यह सुनते ही बालक यमराज के घर गया। वे कहीं गए हुए थे, घर पर नहीं थे, तीन दिन के बाद लौटे।बालक वहीं घर के बाहर बैठकर ही भूखा-प्यासा रहकर उनकी प्रतीक्षा करता रहा। यह जानकर यमराज को बहुत दुख हुआ। उन्होंने उसे तीन वरदान माँगने के लिए कहा।
पहले वर मे नचिकेता ने माँगा कि उसके पिता शान्त संकल्प हों, प्रसन्न मन हों, क्रोध रहित हों और जब मैं यहाँ से लौटकर घर जाऊँ तो मुझसे प्रसन्न होकर बोलें। इतना सब होने के बाद भी वह अपने पिता से नाराज नहीं था।
           दूसरे वरदान में उसने स्वर्ग साधक अग्नि का उपदेश देने के लिए उनसे कहा। उसकी कुशाग्र बुद्धि से प्रसन्न यमराज ने इस अग्नि का नाम  'नचिकेता अग्नि' रख दिया। फिर उसे तीसरा वरदान माँगने के लिए कहा। संसार की असारता को समझने वाले उस बच्चे ने आत्म ज्ञान का उपदेश देने के लिए कहा।
          यमराज ने उसे धन-सम्पत्ति, दीर्घायु, राज्य सुख, स्वर्ग के नानाविध सुख, सभी मनोकामनाओं की पूर्ति आदि अनेकानेक भौतिक वस्तुओं का लालच दिया पर वह नहीं माना। अन्तत: यमराज ने उसे फिर 'अध्यात्म योग' अर्थात इन्द्रियों को वश में करने का उपदेश दिया। ऐसा कर पाने से इन्द्रियाँ विषय भोगों की ओर आकृष्ट होकर भटकती नहीं हैं, ईश्वर की ओर उन्मुख हो जाती हैं।
         बालक नचिकेता का यमराज से आत्मज्ञान की जिद करना और बालक ध्रुव का जंगलों में जाकर प्रभु प्राप्ति के लिए कठोर तप करना, इसी सत्यता का द्योतक है कि यह संसार मिथ्या है। सत्य केवल परमात्मा है, जिसे पाने के लिए जन्म-मरण का यह प्रपंच रचा गया है।
          आत्मज्ञान को समझना बच्चों का खेल नहीं। बड़े-बड़े ज्ञानी-ध्यानी भी राह भटक जाते हैं, इन बच्चों ने इसे मुमकिन कर दिखाया। मनुष्य चाहे अथवा इच्छाशक्ति को दृढ़ कर ले तो वह कुछ भी पा सकता है। आत्मज्ञान द्वारा जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें