शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

अपनों का विश्वास

अपनों का विश्वास मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी होती है। जिस भी सम्बन्ध में विश्वास डगमगाने लगता है वहीं रिश्ता टूटने की कगार पर पहुँच जाता है। सदा यही प्रयास करना चाहिए कि आपसी विश्वास बना रहे, उसमें कभी कमी न आने पाए। यदि कहीं कोई गलतफहमी पनपने लगे तो अपना अहं व पूर्वाग्रह छोड़कर, मिल बैठकर उसे दूर कर लिया जाए।
           वे लोग बहुत ही अभागे होते हैं जो किसी भी कारण से अपना विश्वास दूसरों की नजर में खो देते हैं। दुबारा से विश्वास जमाने में फिर वर्षों लग जाते हैं। तब तक सभी उन्हें अविश्वास भरी नजरों से देखते हैं। ऐसी स्थिति मरणान्तक कष्ट से भी अधिक दुखदायी होती है। इसलिए परस्पर व्यवहार करते समय बहुत ही सावधानी बरतनी चाहिए।
       विश्वास जमाने में बहुत समय लगता है और उसे खो देने में पल भर का भी नहीं लगता। इसलिए सदा ही उन लोगों की परवाह यत्नपूर्वक की जानी चाहिए जिनका विश्वास हम पर तब भी बना रहे, जब हमारा समय बदल जाए। कहने का तात्पर्य है कि जब मनुष्य की विपरीत स्थिति हो तब भी वे हमसे मुँह न मोड़ें बल्कि वे सबसे यही कहें कि फलाँ व्यक्ति कभी गलत हो ही नहीं हो सकता। ऐसा ही विश्वास सदा बना रहना चाहिए।
         जब अच्छा यानि ऐश्वर्य का समय होता है, तब समझदार लोग किसी का भी विश्वास नहीं तोड़ते। उन पर सब भरोसा करते हैं। परन्तु दुर्भाग्य से जब मनुष्य का बुरा समय आता है तब वह न चाहते हुए भी अपनी मजबूरियों के कारण अपना वचन नहीं निभा पाता। इस कारण लोग उसे झूठा, ढोंगी और फरेबी तक कहने से नहीं चूकते। जब उनका अपना खराब समय आता है तब उन्हें सब आटे-दाल का भाव समझ में आ जाता है।
         ऐसे लोगों की परवाह कभी नहीं करनी चाहिए जिनका विश्वास समय के साथ बदल जाए। ये लोग किसी के विश्वास पात्र नहीं हो सकते। इनके जीवन के मायने अलग होते हैं। ये लोग कभी भी बीच मझधार में दूसरे का हाथ छोड़कर किनारा कर सकते हैं। इनसे सावधानी बरतनी आवश्यक होती है। यही वे लोग हैं जो पीठ पीछे बुराइयाँ करके पीठ में छुरा भौंकने का काम चतुराई से करते हैं। ऐसे धोखेबाज मित्र व अविश्वसनीय सम्बन्धी त्याज्य होते हैं। उनसे सहृदयता की उम्मीद करना व्यर्थ होता है।
          दूसरों पर विश्वास कीजिए पर अन्ध विश्वास न करिए। जो भी व्यक्ति ऐसा करता है, उसे सिर्फ दुखों का सामना करना पड़ता है। ऐसे तथाकथित गुरुओं से भी बचने का यथासम्भव प्रयास कीजिए जो दूसरों की बुद्धि को, अपने स्वार्थ हेतु कुण्ठित कर देते हैं। गुरुडम फैलाने वाले इन स्वार्थी गुरुओं  की जाँच-परख करके शीघ्र इनसे किनारा कीजिए। इन धूर्त लोगों के झाँसे में आकर अपने विश्वास को कभी चकनाचूर मत होने दीजिए।
        विश्वास टूटने की आवाज किसी को नहीं सुनाई देती। जिसका विश्वास टूट जाता है, उसको सम्भलने में बहुत समय लग जाता है। इस तरह की घटना के घटित होने के बाद लम्बे समय तक वह किसी पर भी विश्वास नहीं कर पाता। सभी लोग उसे धोखबाज दिखाई देने लगते हैं। उस व्यक्ति का अपना आत्मविश्वास कमजोर पड़ने लगता है। वह हमेशा बौखलाया और बदहवास रहता है।
           विश्वास रूपी पूँजी को संजोकर रखने का प्रयास कीजिए। दुनिया में अच्छे लोगों की संख्या बहुत है। अपने एवं अपनों के विश्वास को मृग मरीचिका न समझकर उस पर खरा उतरने का यत्न करते रहना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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