शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

इहलोक और परलोक सुधारना।

अपने जीवन में प्रत्येक मनुष्य की यही कामना होती है कि उसे इहलोक में सारी सुख-सुविधाएँ और समृद्धि प्राप्त हो जाए। इसके साथ-साथ परलोक भी सुधर जाए। वहाँ पर भी उसे ऐश्वर्य के सभी साधन उपलब्ध हों। कहने का तात्पर्य यही है कि मनुष्य इहलोक और परलोक दोनों ही स्थानों पर सुविधाओं का उपभोग करना चाहता है। वह कहीं पर इन साधनों से वंचित नहीं रहना चाहता।
          अब समस्या यही आड़े आती है कि ऐसा मनचाहा पूरा कैसे हो? इहलोक में क्या हमें वह सब मिल सकता है जो हम पाना चाहते हैं? क्या परलोक में भी हम सभी प्रकार से सुखी रह पाएँगे?
         इन सभी प्रश्नों का उत्तर सकारात्मक हो सकता है यदि हमारी इच्छा शक्ति दृढ़ हो तब। आप सभी लोग यही उत्तर देंगे कि हम मेहनत करेंगे तो फिर क्यों नहीं जुटा पाएँगे ये सब कुछ? यह सत्य है कि हम सभी अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए अनथक परिश्रम करते हैं और कुछ हद तक उन्हें पा भी लेते हैं।
          हमारा पुरुषार्थ और हमारा भाग्य मिलकर हमें वह सब देते हैं जिस पर हमारा हक होता है। भाग्य से जितना मिलना होता है, वह हमें इस लोक में मिल ही जाता है। उसके लिए परिश्रम करना पड़ता है। यदि मनुष्य हाथ पर हाथ रखकर निठल्ला बैठ जाएगा तो वह दूसरों की नजर से उतर जाता है। जितनी सुख-सुविधाएँ हम जुटाना चाहते हैं, उसके लिए योजना बनानी पड़ती है। उसके अनुसार मेहनत करके उस योजना को सफल करना होता है। तभी उसका फल मिलता है।
          यह लोक सुधारने के लिए समाज के बनाए नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। सच्चाई और ईमानदारी से जीवन यापन करना होता है। तन, मन और धन से घर-परिवार, देश, धर्म और समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहण करना होता है। तभी हम जीवन में सफलता की बुलन्दियों को छू पाते हैं।
          परलोक सुधारने के लिए हमें ईश्वर की आराधना सच्चे मन से और श्रद्धा पूर्वक करनी होती है। इस ईश भक्ति में प्रदर्शन की कहीं कोई भी आवश्यकता नहीं होती। वह मालिक हमारे मन के भाव से प्रसन्न होता है, किसी प्रकार के आडम्बर से नहीं।
       यदि वह मालिक भी हम लोगों की तरह सुख-समृद्धि देने का मात्र आडम्बर करे तो हम सबके पास कोई भौतिक सुख होगा ही नहीं। वह सरल हृदय प्रभु किसी प्रकार का कोई दिखावा नहीं करता बल्कि हमारे पूर्वकृत कर्मों के अनुसार झोलियाँ भर-भरकर खजाने हमें देता है। हमारी सारी मनोकामनाओं को समयानुसार पूर्ण करता है।
          यदि हम यही सोचते रहें कि जब सही हमारा समय आएगा यानि वृद्धावस्था आएगी, तब उसका नाम जप लेंगे तो यह सम्भव नहीं होगा। मृत्यु हमारे दरवाजे पर दस्तक दे देगी और हमारा सही समय नहीं आएगा। इसका स्पष्ट कारण यही है कि वृद्धावस्था मे शरीर अशक्त हो जाता है। उस समेरो मनुष्य अपने कामों को नहीं कर पाता। बिमारियों से घिरा रहता है। हाय-हाय करता हुआ वह यह तो कहता रहता है कि प्रभु मुझे उठा ले, इस कष्ट से छुटकारा दिला दे, परन्तु दो घड़ी बैठकर उसका नाम लेने में उसे परेशानी होती है। यदि बचपन से ही उस परमपिता को स्मरण करते रहें तो अन्तिम समय तक उसे याद करने की आदत बनी रहती है।
          इसलिए उठते-बैठते, सोते-जागते, दिन-रात अपने कार्यो को करते हुए मालिक को याद करते रहना चाहिए। दुनिया में ऐसे रहना चाहिए जैसे जल में कमल रहता है। सभी सांसारिक कार्यो को प्रभु को समर्पित करते हुए करना चाहिए। ऐसा करने से मन में कर्त्तापन का अहंकार नहीं आता।
          ऐसे कर्त्तव्य योगियों से वह परम दयालु परमात्मा प्रसन्न होता है। अपनी प्रसन्नता के लिए हम बहुत उपाय करते रहते हैं। कभी मालिक की खुशी के लिए भी कार्य करना चाहिए।
         यदि जीवन को इस प्रकार चला सकें तो निश्चत ही हमारा इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएँगे, जिनकी हम कामना व प्राथना करते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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