बुधवार, 23 मार्च 2016

इन्द्रधनुषी होली

होली के बहाने चलिए इन्द्रधनुषी रंगों से सराबोर हो जाते हैं। होली की मस्ती में सारे दुखों और कष्टों को भूलकर आह्लादित हो जाते हैं। खुले मन से सभी लोगों का स्वागत करते हुए, ईर्ष्या और द्वेष के भावों को एक किनारे रखकर उनसे गले मिलते हैं। लूट लीजिए, अपने दोनों हाथों से समेट लीजिए जिन्दगी की खुशियों को, चाहे कुछ समय के लिए ही सही।
           होलिका दहन करते समय अपने मन में उठने वाले कुविचारों और वैमनस्य की आहुति दे देनी चाहिए। इससे मन के विकार दूर होते हैं और मनुष्य को शान्ति मिलती है। दूसरों के प्रति जाने-अनजाने किए गए अपराधों के लिए की गई क्षमा याचना किसी महान कार्य की सफलता से कमतर नहीं होती। इस प्रयास की पहल मनुष्य को दूसरों से अलग करते हुए एक नई पहचान देती है।
            होली का नाम लेते ही मस्तिष्क में रंग-रंगीले रंगों का चित्र उभर आता है। इस उत्सव के विषय मेंआँखों के समक्ष मानो एक रील-सी चलने लगती है। सदियों से ही यह त्यौहार वसन्त ऋतु में मनाया जाता है। फाल्गुण के महीने में इस त्यौहार को मनाने के पीछे एक कारण है। इस समय प्राकृतिक शोभा निहारते ही बनती है। विविध प्रकार के खिले हुए फूल चारों ओर अपनी सुगन्ध और छटा बिखेरते हैं।
           प्राचीन काल में आज की तरह रासायनिक रंगो का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया जाता था। हमारे ऋषि-मुनि स्वयं कभी हानिकारक पदार्थों का उपयोग नहीं करते थे। इसलिए वे दूसरों को भी इनसे बचने का परामर्श देते थे। उस समय केवल फूलों से ही होली खेलने की प्रथा थी। सुगन्धित फूलों के जल को पिचकारियों से एक-दूसरे के ऊपर डालकर लोग आनन्दित होते थे। इससे चारों ओर का वातावरण भी महकने लगता था। बच्चे, बूढ़े और स्त्रियाँ सभी लोग इस रंगोत्सव को मनाकर प्रसन्न होते थे।
           वास्तव में यह एकता का त्यौहार है। छोटे-बड़े आदि के भेदभाव को भूलकर सब लोग एक-दूसरे के गले मिलते हैं, पकवान और मिठाइयाँ खाकर अपने उल्लास को प्रकट करते हैं।
           बड़े इस त्यौहार का आनन्द लेते ही हैं, बच्चे भी कुछ कम हुड़दंग नहीं मचाते। उन्हें भी दूसरों पर रंग डालना, गुब्बारों में रंगीन पानी भरकर मारना बहुत अच्छा लगता है। अपने साथियों को ढेर सारा रंग लगाकर और पानी से गीला करके इस त्यौहार को मनाते हैं। थोड़ी-थोड़ी देर में लोगों की गाती-बजाती निकलने वाली टोलियाँ त्यौहार की रौनक में चार चाँद लगाती हैं।
          आजकल प्राय: होली मिलन उत्सव मनाया जाता है। अपने-अपने क्षेत्र के लोग मिलकर होली खेलते हैं और फिर भोजन भी खाते हैं। कई बिरादरियों के लोग इस दिन सहभोज या प्रीतिभोज रखते हैं। होलिका दहन के अगले दिन ही रंग खेला जाता है। इसलिए इस दिन सभी बाजार, दफ्तर, स्कूल, कालेज आदि बन्द रहते हैं। सरकारी वाहन भी दोपहर दो बजे के बाद चलते हैं। इसी कारण चारों ओर मस्ती का माहौल बना रहता है।
           रसायनिक रंग त्वचा को हानि पहुँचाते हैं। अत: इनके स्थान पर फूलों अथवा इकोफ्रेन्डली रंगों से होली खेलनी चाहिए। कुछ लोग कीचड़, गोबर या पक्के रंगों से होली खेलते है, इनसे परहेज करना ही समझदारी है।
           त्यौहार की पवित्रता बनाए रखना हम सभी का कर्त्तव्य है। नशा करके अनावश्यक हुड़दंग करना अथवा छेड़छाड़ करना उचित नहीं। इन बुराइयों से बचना चाहिए तभी त्यौहार का वास्तविक आनन्द आता है।
          अपने अतस् में विराजमान ईर्ष्या, द्वेष आदि दुर्भावनाओं का होलिका में दहन करके स्वच्छ व पवित्र तथा खुले मन से सबको गले लगाकर त्यौहार की गरिमा को बनाए रखना हम सभी सुधी जनों का दायित्व है।
        एक बार पुन: सभी मित्रों को होली के पावन पर्व की शुभकाम़नाएँ।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें