शुक्रवार, 4 मार्च 2016

एकसूत्र में बंधा परिवार

परिवार जब तक एकसूत्र में बंधा रहता है तब तक उसकी शक्ति के सामने कोई भी टिक नहीं सकता। कोई भी उनकी ओर आँख उठाकर नहीं देखने की हिम्मत नहीं कर सकता। सभी लोग उस परिवार की एकता से घबराते हैं। उस समय उसमें सेंध लगा पाना बहुत कठिन होता है।
         इसके विपरीत परिवार के टूटकर बिखरते ही स्वार्थी लोगों की बन आती है। वे उन सभी को अलग-अलग बहला-फुसलाकर अपना हित साधने में जुट जाते हैं। इसके लिए उन सबको हानि पहुँचाने से बाज नहीं आते।
           इसी विषय में एक दृष्टान्त देखते हैं। किसी समय में एक व्यक्ति के चार बेटे थे। उसे सभी भाग्यशाली मानते थे। वह अपने बच्चों के नित्य के लड़ाई-झगड़ों से बहुत परेशान रहता था। समय बीतते जब वह मृत्यु ने उसके द्वार पर दस्तक दी तब वह उदास हो गया। तब उस मरणासन्न अवस्था में भी बच्चों के आपसी व्यवहार के कारण उसे चैन नहीं मिल रहा था। उसने चारों बेटों को अपने पास बुलाया। उन्हें कुछ लकड़ियाँ लाने के लिए कहा। चारों बेटे पिता के आदेश के अनुसार ही लकड़ियाँ लेकर उपस्थित हो गए।
             पिता ने उनसे उन लकड़ियों को तोड़ने के लिए कहा तो बहुत ही सरलता से वे उसे तोड़ने लगे। तब पिता ने उन चारों को लकड़ियों का गट्ठर बनाने के लिए कहा। बच्चों ने पिता के आदेश का पालन किया। पिता ने उन्हें उस गट्ठर को तोड़ने के लिए कहा। चारों ने बहुत प्रयास किया परन्तु वे सफल नहीं हो पाए।
          तब पिता ने चारों को मिल-जुलकर रहने के लाभ बताते हुए कहा कि मिलकर रहने से कोई भी उनका अहित करने के लिए उनमें फूट नहीं डाल सकता। जब तक वे एक बंधी हुई मुट्ठी की तरह रहेंगे तो दूसरे उनका बुरा करने के लिए दस बार सोचेगा क्योंकि उसे ज्ञात होगा कि चारों मिलकर उसे परास्त कर देंगे।
         यदि वे चारों जीवन में लड़ते-झगड़ते रहेंगे तो दूसरे इस बात का लाभ उठाएँगे। बच्चों को यह बात समझ आ गई और तब उन्होंने अपने पिता को वचन दिया कि वे भविष्य में मिलकर रहेंगे।
           इसी प्रकार जब तक झाडू एक सूत्र में बंधी रहती है तब तक वह कचरा साफ करती है। परन्तु जब वही झाडू सूत्र के टूट जाने से बिखर जाती है तब खुद ही कचरा बन जाती है। उस समय उस अनावश्यक कचरे को उठाकर लोग कूड़ेदान में फैंक देते हैं। यानि वही बिखरे तिनके सबके लिए असह्य हो जाते हैं।
           इसलिए हम हमेशा परिवार में एक मुट्ठी की तरह बंधकर, मिल-जुलकर रहना चाहिए। आपसी द्वन्द्वों के कारण बिखरकर दूसरों की नजर में आसानी से उपलब्ध हो जाने वाला बनने से बचना चाहिए।
           अपने विचारों में परिपक्वता लानी चाहिए। यह मानना चाहिए कि परिवार का हित साधने में ही सबका भला होता है। मन की शुद्धता के लिए लोग सप्ताह के किसी भी दिन उपवास रखते हैं और अन्न का त्याग करते हैं। होना यही चाहिए कि अपने मन की शुद्धि के लिए अपने परिवार को तोड़ने वाले कुविचारों का त्याग करके उसे तोड़ने के स्थान पर जोड़कर रखने का यत्न करना चाहिए।
           परिवारी जनों के प्रति मन से ईर्ष्या और द्वेष के भावों को दूर करके अपने हृदय को सरल और सहज बनाना चाहिए। सभी सदस्यों को अपने अहं का बलिदान करके परिवार की एकजुटता को बनाए रखना चाहिए। इससे बुजुर्गों और बच्चों में होने वाली अकेलेपन की समस्या से बचा जा सकता है। अत: अपने परिवार हितों को सर्वोपरि मानते हुए थोड़ा-सा धैर्य रखना चाहिए। इसके लिए विवेकी बनकर यदि अपने स्वार्थों की बलि भी देनी पड़े तो हिचकिचाना नहीं चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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