मंगलवार, 8 मार्च 2016

वयोवृद्ध जनों के अनुभवों का लाभ लें

संसार में जन्म लेने के पश्चात मनुष्य दिन-दिन करके बड़ा होता है। धीरे-धीरे समय बीतते वह आयुप्राप्त हो जाता है। उसके पास ग्रहण की गई शिक्षा की योग्यता के साथ-साथ अनुभवों का भी एक विशाल खजाना(भण्डार) एकत्रित हो जाता है। वह अपने इस संग्रहालय से मोती चुन-चुनकर उन्हें अपनी आने वाली पीढ़ियों को विरासत में सौंपना चाहता है। वह चाहता है कि उसके ज्ञान और अनुभव से सीखकर कठिनाइयों से लोग बच जाएँ और जीवन में उत्तोरत्तर उन्नति करते चलें।
           सागर में छिपे खजाने किनारों पर स्वयं नहीं आ जाते। उन्हें पाने के लिए अथक परिश्रम करना पड़ता है। समुद्र में गहरे पैठना पड़ता है। उसी प्रकार वयोवृद्ध जनों के हृदयों से ऐसे अनुभवजन्य खजानों को उनके पास बैठकर पाकर उनसे लाभ उठाया जा सकता है।
           इसी तरह आयु बीतने पर उसका जीवन यादों का एक ग्रन्थ बन जाता है। उसमें कटु और मधुर दोनों ही तरह की स्मृतियाँ कैद हो जाती हैं। मधुर यादों को याद करके वह प्रसन्न होता है और जीवन में आई कटुताओं को याद करके उसका मानस कुछ समय के लिए व्यथित हो जाता है।
           किसी व्यक्ति विशेष की याद उसे बहुत तड़पाती है। कभी-कभी मनुष्य यादों के सहारे जिन्दगी काट लेता है। यह भी सम्भव है कि उसके प्रियजन अथवा बन्धु-बान्धव उससे जीवन काल में ही दुनिया से बिछुड़ गए हों। उनके वापिस लौटा लाने की हर कोशिश व्यर्थ हो जाती है पर उनके साथ बिताए जीवन के पल हमेशा ही याद आते हैं। जो मनुष्य को यदाकदा मायूस कर जाते हैं।
           इसी तरह यद्यपि दोस्ती के जमाने भी लौटकर नहीं आते पर निश्चित ही हृदय में कसक छोड़ जाते हैं। जहाँ तक हो सके उन सुखद पलों को याद करके उदास होने के स्थान पर उन्हें प्रसन्नतापूर्वक जी लेना चाहिए।
युवाओं को अपनी योग्यता पर मान होना चाहिए अभिमान कदापि नहीं। उन्हें इस सत्य को सदा स्मरण रखना चाहिए कि उन वयोवृद्ध माता-पिता के कारण ही वे योग्य बनकर सफलता के सोपानों को छू पाए हैं।
           युवावर्ग को बुजुर्गों के ज्ञान का उपहास करते हुए यह नहीं कहना चाहिए कि आप चुप रहो आपको क्या पता? इससे वे बहुत आहत होते हैं। उन्हें लगने लगता है कि वे बच्चों के लिए अनुपयोगी हो गए हैं। उनके जीवन में उनकी कोई आवश्यकता नहीं है बल्कि वे उन पर एक बोझ बनते जा रहे हैं।
            यहाँ यह कहने से मैं स्वयं को रोक नहीं पा रही कि जिन माता-पिता की मेहनत की कमाई और धन-समृद्धि को वे युवा बच्चे किसी भी तरह प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं तो वे मूर्ख कैसे हो सकते हैं? उस सबको उन्होंने अपनी समझ-बूझ से ही पाया होता है।
          इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आयु बढ़ने पर मनुष्य धीरे-धीरे शारीरिक रूप से अशक्त होने लगते हैं। इस कारण वे उस समय अधिक बोलने लगते हैं, रूठने-मानने लगते हैं, अनावश्यक क्रोध और जिद करने लगते हैं। उनका व्यवहार बच्चों की तरह हो जाता है। एक ही बात को वे कई बार दोहराने लगते हैं। तब उन्हें बच्चों के प्यार और विश्वास की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। उन्हें यह अहसास करवाना चाहिए कि वे हर स्थिति में बच्चों के लिए उपयोगी हैं और वे उनके परामर्श के बिना एक भी कदम नहीं चल सकते। यदाकदा किसी विषय पर उनसे सलाह लेकर उनको सन्तुष्ट करने का प्रयास करना चाहिए।
           बच्चों को बिना किसी पूर्वाग्रह के वयोवृद्ध लोगों के अनुभवों का लाभ उठाना चाहिए। यदि वे ऐसा कर सकें तो बड़ों को भी उन बच्चों पर गर्व होगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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