सोमवार, 28 मार्च 2016

शारीर रोगी नहीं

ईश्वर ने हमारे शरीर की रचना इस प्रकार की है कि इसमें कोई कमी ढूँढने से भी नहीं मिल सकती। इसे इस प्रकार से मालिक ने बनाया है कि अपनी आवश्यकता के सभी आवश्यक पोषक तत्त्वों का निर्माण यह स्वयं कर लेता है। जिन-जिन तत्त्वों की इसे जरूरत नहीं होती उन्हें इस शरीर से बाहर निकाल फैंकता है। यह स्वयं ही अपना सुधार कार्य करने में समर्थ है।
            अब प्रश्न यह उठता है कि जब नीरोग रहने के लिए यह सारा निर्माण कार्य कर सकता है तो फिर यह बार-बार रोगी क्यों हो जाता है?
           इस प्रश्न के उत्तर में मात्र यही कह सकते हैं कि यह स्वयं रोगी नहीं होता। इसे हम अपनी मूर्खता से रुग्ण बना देते हैं। अब आप कह सकते हैं कि मैंने कितनी हास्यास्पद बात कही है। कौन व्यक्ति होगा जो रोगी बनकर कष्ट उठाना चाहता है? कौन अपने धन और समय दोनों ही की बरबादी करना चाहता है? कौन डाक्टरों के चक्कर लगाना चाहता है?
            इन सभी प्रश्नों के उत्तर में मैं फिर वही कहूँगी कि हम स्वयं ही इस सबके उत्तरदायी हैं। हम अपनी नादानी के कारण रोगी बनकर डाक्टरों के पास चक्कर लगाते हैं और अपना समय व धन दोनों ही को व्यर्थ गंवाते हैं।
           हम अपने स्वास्थ्य के प्रति सदा ही लापरवाह रहते हैं। अथवा यूँ कहना भी अनुचित नहीं होगा कि हम उसकी ओर बिल्कुल ही ध्यान ही नहीं देते हैं। हम स्वयं ही अपने सबसे बड़े दुश्मन हैं। हमारा आहार-विहार, हमारे तौर-तरीके अथवा हमारी जीवन शैली सभी पूर्णरूपेण दोषपूर्ण है। इसके लिए कोई अन्य नहीं, हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं।
            स्वस्थ रहने के बेसिक नियम हैं कि समय पर सोओ और जागो, समय पर भोजन करो, प्रतिदिन सैर करने जाओ और व्यायाम करो। हम इन मूलभूत नियमों को अपनी व्यस्तता का बहाना बनाते हुए अनदेखा कर देते हैं।
           जिस रोटी को कमाने के लिए सारे प्रपंच रचते हैं, झूठ-सच करते हैं, पाप-पुण्य के कार्य करते हैं, उसी को खाने के लिए हमारे पास समय नहीं होता। समय-असमय खाने से वह ठीक से नहीं पचता और हम परेशानी में आ जाते हैं।
           हमारी सारी पार्टियाँ रात देर तक चलती हैं, शादियों में बारातें भी आधीरात में पहुँचती है। स्वाभाविक है कि हम देर रात घर लौटेंगे और देर से ही सोएँगे। इसलिए प्रात: भी देर से ही जागेंगे। नाइट शिफ्ट वाली नौकरी भी इसका एक कारण कही जा सकती है। सारा दिन शरीर अलसाया-सा टूटता हुआ रहेगा। उसमें स्फूर्ति नहीं रह सकती।
         अपनी व्यस्त जीवनचर्या में हम अपने खान-पान को सुधार नहीं पाते। न चाहते हुए भी मोटापे के शिकार होते जाते हैं जो सब बिमारियों का मूल कारण है। इन सबके अतिरिक्त शौक अथवा अपनी शान बघारने के लिए पार्टियों में पी जाने वाली शराब अथवा अन्य किसी प्र्कार के नशीले पदार्थों का सेवन भी शरीर को खोखला बनाता है। सारा समय की जाने वाली टेंशन भी शरीर पर विपरीत प्रभाव डालती है।
          हमें अपनी ऋतुचर्या के विषय में तो शायद ज्ञान ही नहीं है। हम नहीं जानते कि किस मौसम में क्या खाना चाहिए और क्या पहनना चाहिए? यह अज्ञानता भी हमारे अस्वस्थ होने का एक कारण हैं।
           जंक फूड भी हमारी अस्वस्थता का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है। सभी समझदार और डाक्टर लोग हमें समय-समय पर चेताते रहते हैं पर हम हैं कि उस शिक्षा पर अमल न करने की कसम खाए बैठे हैं। तब इसका खामियाजा हम बीमार पड़कर चुकाना पड़ता है।
           हमारा शरीर हमें बार-बार चेतावनी देता रहता है और हम अपनी शान बघारते हुए उसे अनदेखा करते रहते हैं। तब फिर उसका परिणाम हमें रोगों से आक्रान्त हो करके भुगतना पड़ता है। यदि वास्तव में हम अपना मित्र बनना चाहते हैं तब हमें स्वयं से शत्रुता निभाना छोड़कर स्वास्थ्य के नियमों का पालन करना पड़ेगा अन्यथा रोगो की चपेट में आकर डाक्टरों के चक्कर लगाते हुए अपने बहुमूल्य समय और खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को व्यर्थ ही गंवाना पड़ेगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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