बुधवार, 22 अप्रैल 2015

समय का मूल्य

समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता क्योंकि वह किसी का गुलाम नहीं है। जो समय का गुलाम हो जाता है समय उसका सर्वस्व हरण कर लेता है। उसे नष्ट-भ्रष्ट कर डालता है। उसकी खासियत यह है कि वह किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि जो समय को नष्ट करता है वह उन्हें बरबाद कर देता है और जो उसका मूल्य पहचान लेता है व उसका सदुपयोग करता है उसे वह जीवन की ऊँचाइयों की ओर ले जाता है।
           हमें सदा ही समय के साथ-साथ चलना चाहिए। समय के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने वालों के ही सफलता कदम चूमती है।Time is money कहकर हमें यही समझाने का प्रयास किया गया है कि जैसे हम अपने धन की सुरक्षा करते हैं वैसे ही समय की भी सार-संभाल करनी चाहिए। समय के मूल्य को पहचानकर अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने से कार्यों में सफलता अवश्य मिलती है। इसी भाव को महाकवि कालिदास ने रघुवंश में कहा है-
    काले खलु समारब्धा: फलं बध्नन्ति नीतय:।
         इसके विपरीत समय के साथ जो व्यक्ति रेस नहीं लगा पाते वे दौड़ में पिछड़ जाते हैं। उन्हें जीवन के हर कदम पर निराशा एवं असफलता का सामना करना पड़ता है। महाभारत में स्पष्ट कहा है-
       अकाले कृत्यमारब्धं कर्तुं नार्थाय कल्पते।
अर्थात असमय (समय बीतने पर) किया गया कार्य व्यर्थ हो जाता है।
         हम समय का गुलाम न बनें बल्कि उसे अपनी मुट्ठी में कर लें तभी हम एक सफल इंसान बन सकेंगे। चारों ओर हमारा यश फैलेगा अन्यथा तब failure व्यक्ति होने का ठप्पा लग जाएगा। सभी लोग हिकारत की नजर से देखने लग जाते हैं। यहाँ कोई भी असफल व्यक्ति का साथी नहीं बनना चाहता। उसे सारा जीवन ही निराशा का सामना करना पड़ सकता है। धीरे-धीरे निराशा के गर्त में डूबा व्यक्ति जीवन की बाजी ही हार जाता है।
        जो प्रबुद्ध लोग समय रहते उसकी नब्ज पहचान लेते हैं वे चमत्कार करते हैं। वे ही आकाश की ऊँचाई को छूने से लेकर समुद्र की गहराई तक को नाप लेते हैं। वे लोग ही हमारी सुख-सुविधा के लिए तरह-तरह के अविष्कार करके सदा हमें कृतार्थ करते हैं। महान कालजयी ग्रंथों की रचना करते हुए हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
       भारतीय संस्कृति के पोषक हम मानते हैं कि मानव जन्म बहुत दुर्लभ है। चौरासी लाख योनियों के बाद मिलता है।  इस अमूल्य जीवन को आलस्य के कारण यूँ ही बरबाद न करें। इसे समय रहते सत्कर्मों में लगाएँ तभी इसकी सार्थकता है अन्यथा अंतिम समय हमारे पास पश्चाताप करने का समय भी नहीं बचेगा। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में कहा है-
        अत्येति रजनी या तु, सा न प्रतिनिवर्तते।
अर्थात जो रात बीत जाती है वह लौटकर नहीं आती।
         रावण, कंस, हिरण्यकश्यप, दुर्योधन, हिटलर जैसे घमंडियों और विश्व की अनेक संस्कृतियों के विनाश का साक्षी यह समय है।
         अपनी शारीरिक और आत्मिक शक्ति को पहचान कर जब समय रहते हम कार्य का सम्पादन करेंगे तभी कामयाब होने में सफल हो सकेंगे। सफलता का मूलमंत्र है समय की नब्ज को पहचान कर आगे बढ़ो और मनचाहा फल हाथ बढ़ाकर तोड़ लो। तभी अपने जीवन में हर प्रकार का सुख प्राप्त करने के स्वप्न को साकार किया जा सकता है।
        समय की रेत पर अपने निशान छोड़ने वाले बनने का यथासंभव प्रयास करना चाहिए।

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