गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

सुख की खोज

हम सुखों को खोजने में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि बड़ी-बड़ी खुशियों की तलाश में यहाँ-वहाँ भटकते रहते हैं। उस चक्कर में अपनी छोटी-छोटी खुशियों की ओर ध्यान नहीं दे पाते, उन्हें अनदेखा कर देते हैं। पर शायद अनजाने में ही यह सब हो जाता है। वैसे तो सभी अपने जीवन में खुशियाँ ही चाहते हैं। कोई भी दुखों का सामना नहीं करना चाहता।
        वास्तव में खुशियों के पल जीवन में पलक झपकते ही बीत जाते हैं। या यूँ कहें कि रेत पर मछली की तरह हमारे हाथ से फिसल जाते हैं। शायद इसलिए हमें ऐसा लगता है कि हम कभी सुखी रह ही नहीं पाए। सुख आए भी तो जल्दी चले गए और दुख अधिक समय तक हमें घेरकर परेशान करता रहा।
        यहाँ एक उदाहरण प्रस्तुत करती हूँ। मान लीजिए घर में किसी की शादी एक माह पश्चात है। वह पूरा महीना योजनाएँ बनाते, खरीददारी करते, सबको न्योता देने, मेहमानों की आवभगत करते एवं शादी के फंकशन में भाग लेते हुए बीत गया। हमें वह एक महीना ऐसा लगता है मानो बहुत थोड़ा-सा समय था जो पलक झपकते हुए सपने की तरह बीत गया।
      इसके विपरीत बीमारी, दुर्घटना अथवा अन्य किसी कारण आए हुए दुख के समय एक-एक दिन तो क्या पलभर भी भारी हमें लगने लगता है। इस तरह सुख का समय हमें कम लगता है और दुख के समय ऐसा लगता है कि वह रबर की तरह खिंचता ही जा रहा है।
        हमें जीवन में छोटी-छोटी खुशियों को ढूँढ कर उन पलों को समेटना है। उन नन्हीं खुशियों को गंवाना नहीं है। वे हो सकती हैं- प्रतिवर्ष आने वाले जन्मदिन और शादी की साल गिरह, बच्चे का मनचाहे स्कूल में दाखिला या कैरियर चयन, कक्षा में अच्छे अंक लाना, घर में किसी छोटी-बड़ी वस्तु की खरीददारी, घूमने जाना, व्यस्तता में कुछ पलों को चुराकर सिनेमा देखना या शापिंग करना अथवा डिनर के लिए जाना।
        मेहमानों के घर में आने या स्वयं मेहमान बनकर जाना भी तो खुशियाँ देता है। इन सभी पलों को समेटने का यत्न करें। इन खुशियों का आनन्द भोगिए।
        घर-परिवार में बड़ी खुशियाँ  तो अपने समय पर ही आती हैं। जैसे बच्चे का जन्म, शादी-ब्याह, नया घर या गाड़ी खरीदना, व्यापार या नौकरी में सफलता आदि। ये सभी सुख या खुशियाँ नित्य प्रति जीवन में नहीं आते।
        सुखों को ढूँढने के लिए जंगलों, तीर्थों या तथाकथित गुरुओं के पास कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है। किसी के पास इस समस्या का हल नहीं मिलेगा। यदि किसी के पास हल होता तो दुनिया में भटकाव की स्थिति न होती। हम इसके विषय में जानकारी जुटाने के लिए कदापि उत्सुक नहीं होते।
         ईश्वर हमारे पूर्वकृत कर्मों के अनुसार जो भी सुख व दुख देता है उन्हें धैर्यपूर्वक भोगते हुए यदि हम बड़ी और छोटी सभी खुशियों का आनन्द ले सकें तो जीवन चैन से बीतेगा। नहीं तो अनावश्यक रूप से तनावग्रस्त रहेंगे जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
       सबसे प्रमुख बात यह है कि हर खुशी या सुख का भोग करते समय हम प्रभु को धन्यवाद देना न भूलें जिसने हमें छप्पर फाड़कर खुशियाँ दी हैं।

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