शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

जिद

जिद यानि हठ किसी का भी समाज के भले के लिए नहीं होता। इस जिद की बलि बहुत कुछ चढ़ गया। इतिहास साक्षी है उस विनाश का जो जिद के कारण न चाहते हुए भुगतना पड़ा।
       राजहठ, बालहठ और त्रियाहठ इन तीनों प्रकार के हठों ने साम्राज्यों को सम्पूर्ण विनाश के कगार पर पहुँचा दिया।
         राजहठ के विषय में हम सब जानते हैं। प्राचीन काल के राजाओं के हठ से हम में से कोई अंजान नहीं। रावण, दुर्योधन, कंस आदि के हठ के कारण देश का इतना नुकसान हुआ जिसका भुगतान अभी तक हम सब कर रहे हैं। हिटलर व औरंगजेब के कारनामे आज भी इतिहास के पन्नों में मिल जाएँगे। ये नाम तो मात्र केवल प्रतीक रूप हैं। और भी बहुत से राजा हुए जिनके हठ के कारण अनर्थ हुए।
        आज राजा तो नहीं रहे पर राज्य चलाने वाले सत्ताधीश तो विद्यमान हैं ही। उनके हठ से हम सभी परिचित हैं। रूस, अमेरिका, इजरायल,  ईराक,  ईरान, चीन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान आदि देशों को भी इस श्रेणी में रख सकते हैं जिनके हठ से हम भली-भाँति परिचित हैं।
         त्रिया हठ किसी से छुपा नहीं है। यदि भगवती सीता स्वर्ण मृग लाने की जिद न करती तो शायद रामायण का युद्ध न होता। ऐसे ही द्रौपदी यदि हठ न करती तो शायद महाभारत का युद्ध टल जाता और वह विनाश न होता जिसका खामियाजा हम आज तक भुगत रहे हैं। इसी प्रकार के अनेक उदाहरण इतिहास के पन्नों में दफन हुए हैं जिन्हें हम खोजकर पढ़ सकते हैं।
        वैसे तो घर-परिवार में भी त्रियाहठ के उदाहरण यत्र-तत्र मिल जाते हैं। जिस घर में स्त्री का हठ प्रबल हो जाता है वह घर कभी खुशहाल नहीं रह सकता। और जिस घर में पुरुष अपने मुखिया होने के अहसास के कारण हठ करता है वहाँ पर सुख-शांति कभी नहीं रहती। दोनों ही स्थितियों में घर-परिवार टूटने के कगार पर आ जाता है।
         माता-पिता, भाई-बहन एवं बच्चों में परस्पर मनमुटाव हो जाता है। रिश्तों में अनचाहे खटास आ जाती है। यदि पति-पत्नी में से कोई भी एक अपने हठ पर अड़ा रहे तो घर टूट जाते हैं। जिसकी परिणति तलाक से होती है। उसका दण्ड उनके निर्दोष बच्चे भुगतते हैं जो बेचारे इस सब से बेखबर होते हैं।
        बालहठ से तो हम सबका प्रतिदिन ही सामना होता है। आज माता-पिता ही बच्चों को हठी बना रहे हैं। यही बच्चे बड़े होने पर जब अपनी जायज-नाजायज जिद मनवाते हैं तो माता-पिता अपनी गलती न मानकर उन्हें भला-बुरा कहते हैं, दोष देते हैं और अपने भाग्य को कोसते हैं। उस समय जब बच्चे हाथ से निकल जाते हैं तब पश्चाताप करने का कोई लाभ नहीं होता। उल्टा वे स्वयं की ही हानि करते हैं।
       ऐसे जिद्दी बच्चे जहाँ कहीं भी जाते हैं एक नई मुसीबत खड़ी कर देते हैं। आस-पड़ोस, विद्यालय हर स्थान से उनकी शिकायतें ही माता-पिता को सुननी पड़ती हैं। कोई मित्र या संबंधी ऐसे बच्चों को अपने घर में पसंद नहीं करता। सामने मुँह पर लोग कुछ नहीं भी कहेंगे पर पीठ पीछे ऐसे माता-पिता की आलोचना करते हैं और कहते हैं कि उन्होंने अपने बच्चे को अच्छे संस्कार नहीं दिए।
      बालहठ जब परवान चढ़ता है तो बड़े-से-बड़े साम्राज्य तक को हिलाकर रख देता है।
       जहाँ तक हो सके इस जिद या हठ से किनारा ही किया जाना चाहिए। इस जिद ने बहुत कुछ की बलि ली है। अपने व अपनों को सुख-शांति से जीवन व्यतीत कराने के लिए इससे बचना श्रेयस्कर है।

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