मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

जीवन यज्ञ

हमारा जीवन एक यज्ञ है जिसे हम प्रतिदिन अपने बन्धु-बान्धवों के साथ मिलकर करते हैं। यज्ञ को करने के लिए जिस प्रकार औषधीय गुणों से युक्त सामग्री व समिधाओं की आवश्यकता होती है उसी प्रकार जीवन यज्ञ को करने के लिए अपने दुर्गुणों को दूर कर सद् गुणों की आहुति देनी होती है। तभी हमारे जीवन यज्ञ की सुगन्ध दूरदराज तक फैल सकती है। हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि जैसे-जैसे हमारे सुकृत्यों की चर्चा चारों ओर फैलेगी उतनी ही प्रशंसा हमें मिलेगी।
       हमारे अंतस में जितना अधिक सद् गुणों का विकास होगा उतने ही हमारे मनो मस्तिष्क में विद्यमान दुर्गुण जीवन यज्ञ की अग्नि में भस्म होते जाएँगे। फिर हमारा अंत:करण उतना ही शुद्ध व पवित्र होता जाएगा।
       यज्ञ में घी की आहुति भी दी जाती है। इसका सीधा-सा अर्थ है कि हम अपने जीवन में स्नेह की चिकनाई बांटें। संसार के सभी जीवों को अपना मानते हुए उनके साथ प्यार का व्यवहार करें। हमेशा ही इस बात को याद रखें कि वही व्यहार हमें वापिस मिलेगा जो हम दूसरों के साथ करेंगें। सृष्टि का नियम है- 'जैसा बोओगे वैसा काटोगे।'
         इसलिए भी जीवन में सतर्क रहना बहुत आवश्यक है। प्रेम व भाईचारे की भाषा मूक पशु-पक्षी तक जानते व समझते हैं। उन्हें जरा-सा प्यार करो तो वे हमारे ही हो जाते हैं।
      इस जीवन यज्ञ के पुरोधा हमारे माता-पिता हैं जिनको अपने जीवनकाल में प्रसन्न रखना बहुत आवश्यक है अन्यथा इस यज्ञ के खण्डित होने का भय रहता है।
       सम्पूर्ण प्रकृति भी यज्ञोमय है। उसका यह यज्ञ सृष्टि के आदि से अब तक निरंतर चलता जा रहा है। इसीलिए हम सभी जीवों का अस्तित्व विद्यमान है। वह हमारी भौतक माता के समान ही हमारी सारी आवश्यकताओं को बिना कहे पूर्ण करती है।
        अत: हम उसे माता कहते हैं। बदले में हम उसे सदा दूषित करते हैं फिर भी वह हमें क्षमा कर देती है।
        यज्ञ कुण्ड के चारों ओर जल छिड़का जाता है जो पवित्रता का प्रतीक है। जल से जो भाप बनती है वह भी लाभदायक होती है। उसी प्रकार हमें भी यथासंभव दूसरों की सहायता करके उन्हें शीतलता प्रदान करनी चाहिए।
       यज्ञ जिस प्रकार वायुमण्डल को शुद्ध करता है उसी प्रकार हमारा भी यह दायित्व है कि हम अपने वायुमण्डल को शुद्ध रखें। अपनी मूर्खताओं के कारण उसे दूषित न करें। यदि हम उसे हानि पहुँचाएँगे तो उसका दुष्परिणाम बाढ़, तूफान, भूकम्प, रोगों आदि के रूप में हमारे सामने आएगा। तब हम व्यर्थ जोड़तोड़ करने लग जाते हैं और भ्रष्टाचार आदि को अनजाने ही बढ़ावा देते हैं।
        यज्ञ से कई रोगों से बचा जा सकता है। उसी तरह जीवन यज्ञ को नियमपूर्वक करने वाला संतुलित व सात्विक जीवन जीने वाला जीव अनेक व्याधियों से बचा रहता है।
        इस यज्ञ की पवित्र अग्नि से मनुष्य को यह शिक्षा मिलती है कि वह जीवन की आग्नेय शक्ति को जल रूपी धैर्य से सदा बांधकर रखें। अकारण मनुष्य अपनी शक्ति का ह्रास न करे बल्कि अपने भीतर की आग का सदुपयोग करे। उससे शक्ति सम्पन्न होकर देश, धर्म व समाज के लिए हितकारी कार्य करता हुआ अपना यह नश्वर जीवन प्रभु को समर्पित कर दे।

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