सोमवार, 1 जून 2015

गृहिणी

'गृहिणी गृहमुच्यते' अर्थात गृहिणी ही घर कहलाती हैं कहकर उसका महत्त्व दर्शाया गया है। जो स्त्री अपने घर का सुचारु रूप से संचालन करती है और आने वाले मेहमानों का यथोचित स्वागत-सत्कार करती है उसका यश दूर-दूर तक फैलता है। जिस पुरुष को ऐसी सौभाग्यशालिनी पत्नी मिल जाए उसका तो जन्म सफल हो जाता है।
          यह सत्य है कि घर को संभालना पुरुष के बूते की बात नहीं। ईश्वर ने यह कार्य स्त्री को ही सौंपा है। उसका सुघड़ होना ही उसकी पहचान है। वह सदा अपने पति व बच्चों को बांध कर रखती है। उसके सुरुचिपूर्ण होने से घर में घुसते ही एक अलग तरह का अनुभव होता है। घर का हर कोना उसकी सुव्यवस्था से महकता हुआ दिखाई देता है। वह चाहे घर से बाहर जाकर कार्य करती हो या घर में ही रहने वाली गृहिणी हो, दोनों ही स्थितियों में घर के सभी दायित्वों को बखूबी निभाती है।
           ऐसा घर स्वर्ग के समान होता है जहाँ पति-पत्नी में सामंजस्य होता है। बच्चे सुसंस्कारी होते हैं। घर के सभी सदस्य एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हैं। घर के बड़े छोटों के सिर पर अपना वरद हस्त रखते हैं और छोटे बड़ों के मान को बनाए रखते हैं। यह सभी सुस्थितियाँ गृहिणी के अथक प्रयास का परिणाम होती हैं।
         कहते हैं जिस घर में हमेशा कलह-क्लेश रहता है उस घर के मटकों का पानी भी समाप्त हो जाता है। बच्चे व बड़े सभी मनमानी करते हैं। कोई भी किसी की बात सुनने समझने के लिए तैयार ही नहीं होता। वहाँ रहने वाले सभी सदस्य नरक से भी बदतर जिन्दगी जीते हैं। ऐसे घर में घुसते ही वहाँ की अव्यवस्था को देखकर पलभर भी रुकने की इच्छा नहीं होती। ऐसा लगता है मानो अवांछित मेहमान बनकर अनजानी जगह पर आ गए हैं। इस माहौल को देख कर गृहिणी के बारे में आप अपनी धारणा बनाने में स्वतन्त्र हैं।
         सुगृहिणी अपने कर्मानुसार ईश्वर प्रदत्त नेमतों से अपनी गृहस्थी को बहुत अच्छी तरह से चलाती है। सामर्थ्य के अनुसार जीवन व्यतीत करते हुए वह अनावश्यक गिला-शिकवा न करके और मजबूरियों को अपनी राह का रोड़ा नहीं बनने देती। जो मिल गया उसी में संतोष करने की उसकी प्रवृति उसे दूसरों से विशेष बना देती है।
           समझदार गृहिणी वही है जो सभी आवश्यक खर्चों को करते हुए जीवन की धूप-छाँव के लिए भी कुछ धन सुरक्षित रखे। कभी घर-परिवार में कुछ ऊँच-नीच हो जाए तो उसका ढिंढोरा न पीटे और न ही अपने माता-पिता को इन छोटी-छोटी बातों के लिए परेशानी में डाले। घर में बाहर से आने वालों को इस सब की भनक न लगने दे।
       अपने घर में यदि रूखी-सूखी रोटी भी खानी पड़े तो किसी दूसरे को इसकी कानों कान खबर न लगने दे। यह उसकी अपनी सुव्यवस्था है कि वह अपने घर व आने वाले अतिथियों को उस स्थिति में भी बखूबी संभाल ले।
         सभी गृहिणियों को अपने प्यारे घर व बच्चों को नौकरों के हवाले न छोड़कर उनकी देखरेख का दायित्व स्वयं संभालना चाहिए। बच्चों को नौकरों के नहीं आपके संस्कारों की आवश्यकता होती है।
        गृहिणी के बारे में जितना लिखा जाए वह कम ही है क्योकि वही परिवार की धुरी है। पञ्चतन्त्र में कहा है-
     गृहं हि गृहिणी हीनमरण्यसदृशं मतम्।
अर्थात जिस घर में गृहिणी नहीं होती वह जंगल के समान होता है।
        यही सद् गृहिणी की महानता का प्रतीक है कि उसके बिना घर सूना लगता है और घर भी घर नहीं प्रतीत होता।

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