मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

नवरात्र पर विशेष

नवरात्रपर विशेष-
        नवरात्र के इस पावन पर्व में हम माँ दुर्गा के नौ रूपों - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कन्धमाता, कात्यायनी  कालरात्री,  महागौरी और सिद्धिदात्री की क्रमश: आराधना करते हैं।
         हाँ, यहाँ तान्त्रिकों की तन्त्र साधना के विषय में चर्चा करना हमारा उद्देश्य नहीं है जो इन दिनों श्मशान में जाकर साधना करते हैं और फिर अपनी मनचाही सिद्धियाँ प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं।
        प्रश्न यह उठता है कि अपने जीवन में इन रूपों को ढालने की हमने कभी कोशिश की है क्या? मात्र नौ दिन माँ की पूजा करके हम अपने सभी कर्त्तव्यों से मुक्त हो पाएँगे क्या? दुष्टों का दलन करने वाली माँ के इस बलिदान को क्या हम यूँ ही व्यर्थ में गंवा देंगे?
          इन प्रश्नों का सीधा-सा उत्तर है नहीं। केवल कथन मात्र से समस्याओं का अन्त नहीं होगा। जब तक हम माँ के इन रूपों को अपने में आत्मसात नहीं करेंगे अथवा उस पर आचरण नहीं करेंगे तब तक सब अधूरा ही रहेगा।
          माँ दुर्गा ने संसार की भलाई करने के लिए कठोर कदम उठाया था। अपना सुख-चैन सब छोड़कर उसने उन असुरों से युद्ध करने की ठानी थी। उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त करके माँ ने हम सबके समक्ष एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया था। माँ भगवती ने जनसाधारण की भलाई के लिए दुष्टों का संहार करके हमें चमत्कृत किया हैं।
          उस सबके विषय में बस किस्से-कहानियों की तरह पढ़कर हम चटखारे नहीं ले सकते। उसकी शूरवीरता को हमें अपने अंतस में अनुभव करना होगा। उचित समय आने पर उसी तरह आचरण भी करना होगा।
          आज मैं अपनी सभी बहनों से आग्रह करना चाहती हूँ एक माँ के करुणा, कोमलता, दयालुता आदि सभी गुणों के साथ-साथ माँ दुर्गा के वीरता और दुष्टदलन वाले गुणों को आगे बढ़कर अपनाएँ। इस प्रकार करके हर प्रकार के अत्याचार का मुँहतोड़ जवाब देने की सामर्थ्य माँ स्वयं ही हम सबको देगी।
         माँ दुर्गा के त्रिशूल, शंख, तलवार, धनुष-बाण, चक्र, गदा आदि अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग करते समय साम, दाम, दण्ड और भेद का सहारा लेने में किञ्चित भी हिचकिचाना नहीं है।
         हमें स्वयं ही अपने मनोबल को ऊपर उठाते हुए स्वेच्छा से यह प्रण लेना होगा कि माँ दुर्गा की तरह बुराई व अत्याचार के कारण को जड़ से उखाड़कर फैंकना है। तभी नवरात्र को मनाने की सार्थकता है अन्यथा अन्य रस्मों अथवा उत्सवों की तरह यह पूजन भी मात्र एक दिखावे की रस्म बनकर निरर्थक रह जाएगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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