शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

गाड गिफ्टेड बच्चे

बरसों बरस जिस व्यक्ति के साथ रहते हुए हम यह दम्भ भरते हैं कि हम उसे पूरी तरह से जानते-पहचानते हैं अथवा उसकी रग-रग को से अच्छी तरह वाकिफ हैं तो शायद यह कहना उचित नहीं होगा।
         पता नहीं जीवन के किस मोड़ ऐसी आँधी आ जाए और ऐसा झटका लग जाए कि सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाए। उस समय हमारे सारे अरमान शीशे की तरह चकनाचूर होकर किरच-किरच हो जाऐंगे। तब हम शायद इस काबिल भी न रह सकें कि बिखरे हुए बेरों को समेट पाएँ।
         अपने आसपास प्राय: ऐसे बहुत से उदाहरण हमें देखने-सुनने को मिल जाते हैं कि जिन पर विश्वास करना वाकई असम्भव-सा प्रतीत होता है। अचानक हमें अपने साथी के विषय में ऐसी जानकारी मिल जाती है और उस समय ऐसा लगता है मानो पैरों  तले से जमीन खिसक गयी है। तब फिर वही साँप छुछून्दर वाली स्थिति हो जाती है कि न उगलते बनता है और न निगलते ही बनता है। बड़ी ही विचित्र-सी कशमकश में फंस जाती है यह जिन्दगी।
        पति अथवा पत्नी में से कोई भी यदि एक-दूसरे की पीठ के पीछे छुपकर कोई मर्यादा विरुद्ध अशोभनीय कार्य कर रहा हो और वह कुकृत्य किसी भी कारण से सार्वजनिक हो जाए या दूसरे को पता लग जाए। तब दोनों में लड़ाई-झगड़े या सिर-फुटोव्वल जैसे हालात होना स्वाभाविक है। उस समय दूसरा साथी बच्चों सहित किसी की परवाह किए बिना सम्बन्ध का विच्छेद करके अलग रहने का चुनाव करेगा।
          यदि विवाह के पश्चात भी विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाने हैं अथवा विवाह से पूर्व के किसी अनैतिक कहे जाने वाले सम्बन्ध को हवा देनी हो तो इसकी मान्यता न समाज देता है और न ही परिवार। ऐसे केसों में प्राय: अलगाव हो जाता है। ये साथी तो अपने-अपने जीवन को छोड़कर अन्यत्र अपने बसेरे बना लेते हैं परन्तु उनकी इन गलतियों में वे मासूम पिसते हैं जिनका इन विवादों से कोई लेनादेना नहीं होता। जी हाँ, ये उनके अपने बच्चे ही होते हैं जिनके लिए वे सदा यही कहते है कि हम इनके लिए ही सब कर रहे हैं और इन्हीं के लिए जी रहे हैं। वही ये बच्चे जीवन भर अपने माता-पिता की गलतियों की सजा भुगतते रहते हैं पर किसी का भी पक्ष नहीं ले पाते।
        वर्षों भाई-बहन मिलकर रहते हैं अचानक पता चलता है कि भौतिक धन-सम्पत्ति के लिए वे तो एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन गए हैं। कई बार माता-पिता के साथ वर्षो रहते हुए आज्ञाकारी कहा जाने वाला बेटा धमाका कर देता है कि वह उनसे अलग रहना चाहता है अथवा धोखे से सारी प्रापर्टी अपने नाम करवा कर उन्हें बुढ़ापे में धक्का दे देता है।
           यह तो चर्चा की हमने पारिवारिक सम्बन्धों की। इसी तरह वर्षों एक साथ साझा व्यापार करते हुए साथी कब दूसरे को ठगकर सब हथिया लेते हैं पता ही नहीं चलता और फिर वे एक-दूसरे की शक्ल तक देखना पसद नहीं करते।
         इसी प्रकार कभी-कभी पक्का और सच्चा कहलाने वाला मित्र भी पीठ में छुरा घोंप रहा होता है। अपना कोई प्रिय निकट सम्बन्धी भी कब धोखा देता हुआ सामने आ जाए कुछ पता नहीं चलता।
         जिन पर हम आँख बन्द करके कसमें खाने की बात करते हैं यदि वे धोखेबाज या ठग निकल जाएँ तो मनुष्य का इन्सानियत पर से विश्वास उठने लगता है। उसके मन में कुछ दरकने लगता है।
          सभी सांसारिक रिश्तों पर विश्वास बनाना पड़ता है क्योंकि हम सामाजिक प्राणी उनके बिना नहीं रह सकते। परन्तु सावधानी अवश्य रखना चाहिए। अपने आँख और कान खुले रखें ताकि हमें कोई अपना धोखा देकर तोड़ न सके।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter- http://t.co/86wT8BHeJP

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें