मंगलवार, 14 जून 2016

हितसाधक बुद्धिमान

बुद्धिमान व्यक्ति हर स्थिति में अपने हित के लिए रास्ता निकाल लेता है। मनीषियों का कथन है कि किसी से बदला लेने के स्थान पर सदा बदलाव लाने का विचार करना चाहिए। ईंट का जवाब पत्थर से देना कोई महानता का कार्य नहीं है। दूसरे को शय देना या उससे डरकर जीवन जीना एक नकारात्मक तरीका है। इससे बचना हर मनुष्य के लिए आवश्यक है।
          जीवन को व्यहारिकता से चलने वाला मनुष्य कभी रेस में पिछड़ता नहीं है। समझदारी इसी में है कि यदि कोई ईंट फैंके तो उसका जवाब पत्थर से न दिया जाए। उस व्यर्थ जाती हुई ईंट को नष्ट न करके उससे अपना घर बना लिया जाए। इस प्रकार शत्रुवत् व्यवहार करने वाले को मुँहतोड़ उत्तर देना ही बुद्धिमत्ता की निशानी होती है। यह सकारात्मक तरीका है जिससे अपनी मानसिक शान्ति भंग नहीं होती और दूसरे को भी मुँह की खानी पड़ जाती है।
          मनुष्य का भाग्य बड़ा ही प्रबल होता है। जब तक किस्मत के सिक्के को हवा में उछला जाता है तभी तक हार-जीत का अनुमान लगाए जाता है। जब वह नीचे जमीन पर आ जाता है तब उसके भाग्य का फैसला सुना दिया जाता है।
         हम अपने कर्मों के द्वारा अपना भाग्य लिखते हैँ। यहाँ हम कागज और पत्थर के नसीब की चर्चा करते हैं। वही कागज होता है जिस पर हम लिखते हैं और कुछ समय पश्चात उसकी पुड़िया बनाकर सामान बेचा जाता है। दूसरी ओर उसी कागज पर हमारे धर्म ग्रन्थ लिखे जाते हैं जिन्हें लोग अपने सिर माथे पर रखते हैं, उनका नित्य पाठ करके उनकी पूजा करते हैं।
          इसी तरह सड़क पर पड़े हुए पत्थर सबके पाँव से ठोकर खाते रहते हैं और कुछ ऐसे भाग्यशाली पत्थर होते हैं जिन्हें सुघड़ हाथों से तराशकर भगवान की मूर्ति बनाई जाती है। उसे मन्दिर में स्थापित करके उसकी पूजा की जाती है।
        मनुष्य को हर परिस्थिति में अपना आत्मसम्मान बचाए रखना चाहिए। उसे कुचलकर वह निर्जीव जैसा हो जाता है। सहनशीलता रूपी बहुमूल्य गुण का पालन उसे करना चाहिए। निसन्देह महात्मा बुद्ध आदि महापुरुषों की तरह सहनशीलता के अस्त्र से किसी को भी परास्त किया जा सकता है। सबका यथायोग्य सम्मान करना चाहिए परन्तु आत्मसम्मान की शर्त पर नहीं। इसलिए सम्मानपूर्वक जीवन जीकर अपनी स्वतन्त्र पहचान बनाना हर व्यक्ति के लिए बहुत ही आवश्यक होता है। अतः अपने आत्माभिमान को कभी दाँव पर न लगाएँ।
           जितनी खुशियाँ मनुष्य जीवन पथ पर चलते हुए बाँटता जाता है उतना ही उसका कद बढ़ता रहता है। एक मोमबत्ती से हजारों मोमबत्तियों को जलाया जा सकता है फिर भी उसके प्रकाश में कहीं कोई कमी नहीं आती। उसी तरह दूसरों को खुशियाँ बाँटने से खुशियाँ भी कभी कम नहीं होतीं बल्कि मोमबत्ती के प्रकाश की तरह बढ़ती रहती हैं और सबको आनन्दित करती हैं।
         महत्त्व इस बात का नहीं होता कि मोमबत्ती अमीर के महल में जल रही है अथवा किसी गरीब की झोंपड़ी में अपितु उसकी सार्थकता मात्र प्रकाशित होने में है, अंधेरे से मुक्ति दिलाने में है। इसी प्रकार मनुष्य के खुशनुमा व्यवहार की चर्चा ही हमेशा करनी चाहिए उसकी जाति आदि अन्य बातों की नहीं।
          किसी भी कीमत पर इस जीवन के मूल उद्देश्य को विस्मृत नहीं करना चाहिए। संसार में स्वाभिमान के साथ सहनशील रहकर अपने चारों खुशियाँ बिखेरने वाला ही वातावरण को सुगन्धित कर सकता है। अपने लिए, अपने घर-परिवार और अपने बन्धु-बान्धवों के लिए तो सभी जी लेते हैं। इसीलिए वास्तव में जो दूसरों के लिए जीता है, उसी को इन्सान कहते हैं और वही महान होता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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