मंगलवार, 28 जून 2016

संसार के आकर्षण

इस संसार में रहने वाले मनुष्य को सदा ही परेशानियाँ अथवा डर डराते रहते हैं। जब भी, जहाँ भी, उसे कहीं से थोड़ी-सी राहत मिल जाती है, वहीं वह सब कुछ भूल जाता है। उसे यह भी याद नहीं रह पाता कि वह इस संसार में सीमित समय के लिए ही आया है।
         दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि इस संसार के आकर्षण और मोहमाया के जाल इतने अधिक लुभावने हैं कि मनुष्य उनमें न चाहते हुए भी उलझकर रह जाता है। वह जितना भी उनसे बाहर निकलने का प्रयत्न करता है, उतना ही गहरे उसमें फँसता चला जाता है।
         एक बोधकथा की यहाँ चर्चा करते है जिसे हममें कई लोगों ने पढ़ा होगी। एक बार एक आदमी जंगल से गुजर रहा था। तभी एक शेर उसका शिकार करने के लिए उसके पीछे भागने लगता है। भागते हुए उसे एक कुँआ दिखाई देता है। उसके सामने 'आगे कुआँ और पीछे खाई' वाली स्थिति बन जाती है। वह बेचारा अपनी जान बचाने के लिए उस कुएँ में के ऊपर लगे चक्र में बंधी रस्सी को पकड़कर लटक जाता है।
         वह वहाँ लटक तो गया परन्तु जब उसकी नजर नीचे कुँए की गहराई में बैठे, फन फैलाए हुए एक काले साँप को देखकर चौंक जाता है। मौत को साक्षात् अपने समक्ष देखकर वह बहुत डर गया। उसी समय उसकी नजर काले और सफेद रंग के दो चूहों पर पड़ती है जो उस रस्सी को काट रहे हैं। यह दृश्य देखकर उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।
          ईश्वर का चमत्कार देखिए कि कुँए में उसे शहद का छत्ता नजर आता है। उसे थोड़ी राहत मिलती है। उस शहद की बूँद उसके मुँह में गिरने लगी। अपनी जीभ से वह उसे चाट लेता है। शहद की मिठास में वह इतना खो जाता है कि उसे वहाँ मौजूद शेर, भयानक साँप और चूहों के डर को भुला देती है। उस समय वह अपने सिर मंडराती मौत तक को भूल जाता है। यही है इन्सानी फितरत है।
          यह दुनिया जंगल की तरह है। कुआँ मौत का घर है और साँप मौत का कारण है जिसे हर हाल में डसना ही है। दोनों चूहे दिन और रात हैं जो हमारी जिन्दगी की डोर को धीरे-धीरे कुतर रहे हैं। शहद इस संसार का रस-रंग है जिसे थोड़ा-सा भी चख लिया जाए तो मनुष्य भूल जाता है कि उसे इस असार संसार से विदा लेनी है।
         यह कथा हमें समझाती है कि काल रूपी सर्प मनुष्य को भयभीत करता रहता धहै। वह समझता है कि यही काल एक दिन उसे अपना ग्रास बना लेगा। फिर भी यह मनुष्य समय से न डरते हुए मस्त रहता है, मानो उसने रावण की तरह काल को बाँध लिया है। जो मनुष्य विषय-भोगों में अपना समय व्यतीत करता है, वह इस समय को व्यर्थ गँवा देता है। इसके विपरीत जो इस समय का सदुपयोग कर लेता है सफलता उसके कदम चूमती है और उस व्यक्ति को आम से खास बनाकर सबके सिरों पर बिठा देती है।
        हमारा यह जीवन पल-पल करके बीत रहा है। जन्म लेने के पश्चात से बीतता हुआ यह समय हमें मृत्यु की ओर ले जा रहा है। दिन के बाद रात और रात के बाद दिन, यह क्रम अनवरत चलता रहता है। ये दोनों मिलकर हमारी जीवन की डोर को धीरे-धीरे काट रहे हैं यानि कम से और कम करते जा रहे हैं। इससे जीवन और मृत्यु के बीच का जो अन्तर है वह दिन-प्रतिदिन कम से कमतर होता जा रहा है। हम सब इस तथ्य को अनदेखा करते हुए इस अमूल्य जीवन को दुनिया के झंझटों में व्यर्थ में नष्ट करते रहते हैं।
          मनमोहक दुनिया के माध्यम से इस संसार सागर में वह प्रभु इन्सान को चारा डालकर ललचाता रहता है। मनुष्य को पता ही नहीं चलता कि कब वह उसके काँटे में फँस जाता है और मालिक वह काँटा खींच लेता है। तब मनुष्य तड़पता रह जाता है। हाथ-पैर पटकता रहता है पर सब व्यर्थ हो जाता है।
          मौत को हमेशा प्रत्यक्ष खड़ा हुआ मानना चाहिए। व्यवहार ऐसा करना चाहिए जैसे आज का दिन ही अन्तिम दिन है और अपने सभी दायित्वों को पूर्ण करना है। इसी भावना के साथ मौत से बिना डरे निश्शंक होकर विचरण करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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