गुरुवार, 2 जून 2016

बेटों को भी दक्ष बनाएँ

माता-पिता को बेटी के साथ-साथ अपने बेटों को भी गृहकार्य में दक्ष करना चाहिए। इक्कीसवीं सदी में आज यातायात की सुविधा होने से दूरी कम होकर सिमट रही है। इसलिए युवावर्ग अपना कैरियर बनाने के लिए देश-विदेश में कहीं भी जाकर सैटिल हो रहे हैं।
           घर से दूर किसी अन्य प्रदेश या विदेश में रहने के कारण संयुक्त परिवार के स्थान पर एकल परिवारों का प्रचलन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इसलिए वहाँ पति-पत्नी दोनों अकेले रहते हैं।
           हमारे देश में अभी तक घरेलू कार्य करने वाले नौकर, आया के साथ-साथ माली, धोबी आदि सरलता से मिल जाते हैं। हो सकता है कि विदेशों की तरह आने वाले समय में यहाँ भी घरेलू कार्य करने वाले न मिल सकें।
         अपने घर से दूर अकेले रहने वाले युवाओं को बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अपने कपड़ों की धुलाई और प्रैस करने की दिक्कत होती है। कपड़े धोने के लिए मशीन खरीद सकते हैं पर चलानी तो पड़ेगी। सबसे बड़ी समस्या आती है भोजन की। हर रोज होटल अथवा ढाबे में खाना खाने से स्वास्थ्य बिगड़ जाने का डर रहता है। ऐसे में यदि उन्हें कुछ पकाना आता होगा तो उन्हें परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
          इसी तरह पति-पत्नी घर से दूर रहते हैं और दोनों ही नौकरी करते हैं। उनके समक्ष भी घर-गृहस्थी की व बच्चों की अनेक समस्याएँ आती हैं। दोनों मिलकर यदि जिम्मेदारियाँ नहीं ओटेंगे तो बहुत सारी समस्याएँ आड़े आने लगती है। यदि पत्नी अस्वस्थ हो जाए तब पति तभी सरलता से घर के जरूरी काम कर सकेगा जब उसे वे सारे काम करने आते होंगे।
          आज महँगाई के इस दौर में यदि पति और पत्नी दोनों ही नौकरी या काम न करें तो खर्चा चलाना और अपना स्टेटस बनाए रखना कठिन हो जाता है। अपनी गृहस्थी को चलाने में युवा तभी सफल हो सकते हैं जब दोनों ही घर के सभी कार्यों में दक्ष हों।
          यह बड़ी विडम्बना है कि पुरुषवर्ग अपनी पत्नी से नौकरी या काम करवाना चाहता है। उसकी कमाई पर भी अपना अधिकार जमाना चाहता है पर उसकी मदद करने में अपनी हेठी समझता है। अपने दफ्तर से थककर आई पत्नी की सहायता करने में उसकी हेठी होता है। वहाँ उसका पुरुष होने का अहं आड़े आ जाता है।
         उसकी यही इच्छा होती है कि दफ्तर से थकी हारी आई पत्नी उसके लिए चाय बनाए, फिर खाना बनाए और साथ ही बच्चों को पढ़ाते हुए उनके व घर के सभी दायित्व पूरे करे। वह बस एक तमाशबीन बनकर कठपुतली की तरह मरती-खपती पत्नी को देखता रहे और अपने पुरुषत्व का राग अलापता रहे।
        विदेशों में जाकर सभी युवा अपने दैनिक कार्यों में एक-दूसरे का हाथ बटाते हैं क्योंकि वहाँ घरलू काम करने वाले लोग सुगमता से मिलते नहीं है। और यदि मिल भी जाएँ तो बहुत महँगे होते हैँ जिनको रखना सम्भव नहीं होता।
         यदि पति अपनी पत्नी की घर में सहायता करता है तो उसे किसी भी तरह कमतर नहीं समझना चाहिए। माता-पिता को भी चाहिए कि समय और परिस्थितियों को देखते हुए बेटे और बेटी में अन्तर न करते हुए उन्हें समान रूप से घर के काम-काज सिखाएँ ताकि आगे जाकर उन्हें अपने जीवन में परेशानियों का सामना न करना पड़े।
         युवापीढ़ी से सकारात्मक सोच रखने की आशा करते हैं। नवयुवकों को पुरानी चली आ रही परम्परा के अनुसार महाराजा वाले व्यवहार को बदलना चाहिए। अपनी पत्नी जो आपकी सहधर्मिणी है, उसके साथ कदम मिलाकर चलें। उसको अपनी तरह एक इन्सान समझते हुए घर-बाहर हर जगह उसके साथ सहयोग करना चाहिए। अपने व्यर्थ के अहं का त्याग करके अपने जीवन साथी के मन से सच्चे साथी बन जाएँ ताकि वह भी आप पर गर्व कर सके।
चन्द्र प्रभा सूद
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