रविवार, 26 जून 2016

जीवन के सूत्र

मनुष्य को ईश्वर ने इस सृष्टि का सबसे अधिक समझदार जीव बनाया है। उसे बुद्धि का उपहार देकर इतनी सामर्थ्य दी है कि वह भले-बुरे की पहचान कर सके। यदि वह सकारात्मक रुख रखता है तो चमत्कार कर देता है। इसके विपरीत नकारात्मक विचारों से वह अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने का कार्य करता है।
       ज्ञानवर्धक और विचारोत्तेजक ये पंक्तियाँ कहीं पढ़ी थीं, इन्हें आप सबके साथ वर्तनी संशोधन के साथ साझा कर रही हूँ। आशा है आप भी इन्हें आत्मसात करना चाहेंगे।
        'नजर रखो अपने विचार पर क्योंकि वे शब्द बनते हैं। नजर रखो अपने शब्द पर क्योंकि वे कार्य बनते हैं। नजर रखो अपने कार्य पर क्योंकि वे स्वभाव बनता है। नजर रखो अपने स्वभाव पर क्योंकि वह आदत बनता है। नजर रखो अपनी आदत पर क्योंकि वह चरित्र बनती है। नजर रखो अपने चरित्र पर क्योंकि वह जीवन आदर्श बनता है।'
         इन पंक्तियों से यही समझ आता है कि मनुष्य जो भी विचार अपने मन में करता है, उसी के अनुरूप बोलता है। यदि सोच सकारात्मक होगी तो सबको प्रभावित करेगा। उनका मार्गदर्शक बनकर समाज में अपना अहं किरदार निभाएगा।
         इसके विपरीत सोच होने पर मनुष्य न सही ढंग से कोई कार्य कर पाता है और न ही किसी को उचित परामर्श दे सकता है। जीवन की बाजी हारने वाला जीत का जश्न नहीं मना पाता।
         मनुष्य के क्रियाकलापों पर उसके विचारों की छाप प्रत्यक्ष दिखाई पड़ती है। उत्साही सबको सदा प्रेरित करेगा और निरुत्साही सबको निराश करेगा। विवेकी और अज्ञ के कार्यो में जमीन और आकाश जैसा अन्तर होता है। जिसे हम उनके कार्य व्यवहार से अनुमान लगा सकते हैं।
         चोर चोरी करना सिखाएगा, भ्रष्ट भ्रष्टाचरण की शिक्षा देगा, धोखेबाज धोखाधड़ी सिखाएगा, सदाचरी सदाचरण पर बल देगा। हम कह सकते हैं कि मनुष्य को मन, वचन और कर्म पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उसे हर कदम पर सावधान रहना चाहिए, लापरवाही नहीं करनी चाहिए।
         कहने का तात्पर्य यही है कि जिसके पास जो गुण-अवगुण होंगे, उसीके अनुरूप ही उसका आचरण अथवा स्वभाव बन जाता है। भविष्य में मनुष्य का यह स्वभाव परिपक्व होकर अनजाने ही उसकी आदत बन जाता है। यदि अच्छी आदतें ढल गयी तो चारों ओर जयकार होती है। मनुष्य सफलता की सीढ़ियों पर सुगमता से चढ़ जाता है।
         यदि गलत आदतें अपना ली गई हों तो लाख कोशिशों के बाद भी वह अपनी आदतों को बदल नहीं पाता। तब उसके कारण उसके भाई-बन्धुओं तथा परिवारी जनों को शर्मसार होना पड़ता है।
        अपने जीवन के आदर्श ही मनुष्य का चरित्र बनाते हैं। उसके चरित्र की महानता उसे महान बनाती है और उसकी चारित्रिक विकृति उसे रसातल की ओर धकेल देती है। इसीलिए भारतीय संस्कृति चरित्र निर्माण पर बल देती है।
         जब व्यक्ति का चरित्र निर्माण होता है तब व्यष्टि का यानि समाज का चरित्र बनता है। समाज के साथ-साथ देश के चरित्र का भी  निर्माण होता है। जिस देश का और उसके निवासियों का चरित्र उदात्त होता है उस देश का गौरवशाली ध्वज सदा ही ऊँचा फहराता है। उस देश की ओर कितना ही शक्तिशाली शत्रु हो, आँख उठाकर भी नहीं देख सकता। यदि किसी खुशफहमी के कारण ऐसा करने का दुस्साहस करता है तो उस शत्रु को मुँह की खानी पड़ती है।
        इस प्रकार विचार, शब्द, कार्य, स्वभाव, आदत, चरित्र और जीवन आदर्श ये सब एक चेन या कड़ी हैं। एक ही सूत्र में पिरोए गए हैं। इनका परस्पर अन्तर्सम्बन्ध है। इसीलिए विचारों की शुद्धता, सरलता, सहजता पर सयाने बल देते हैं जो सर्वथा समीचीन है और आज भी उतने ही सटीक हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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