सोमवार, 6 जून 2016

परिवार मेँ एकता

अपने घर-परिवार में एक मुट्ठी की तरह मिल-जुलकर रहने वाले सदस्य ही स्वयं सदा को दुनिया में सबसे अधिक सुरक्षित अनुभव करते हैं। उन्हें लगता है कि परिवार की ताकत उनके साथ है। वैसे भी कहते हैं- 'एकता में बल है।'
         'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता' कहकर अकेले व्यक्ति की असहायता का वर्णन किया गया है। इसी बात पर बल देते हुए अन्यत्र कहा है- 'एक अकेला और दो ग्यारह।' यानि एक व्यक्ति अकेला ही होता है परन्तु जब उसे एक साथी और मिल जाता है तो उनकी शक्ति बढ़कर ग्यारह के बराबर हो जाती है।
         जब तक मनुष्य मिलकर रहता है उसकी शक्ति, उसकी साख कई गुणा बढ़ जाती है। कोई भी व्यक्ति उससे पंगा लेने से डरता है। उन्हें पता होता है कि अमुक व्यक्ति के पीछे उसके घर-परिवार का पूर्ण सहयोग है।
        फूलों के गुच्छे जब पौधों पर लगे होते हैं तो सबके आकर्षण का केन्द्र होते हैं। सभी उनकी सराहना करते हैं। किन्तु जब एक फूल टहनी से अलग होता है तो उसका सौन्दर्य मानो कहीं खो जाता है। वह सब फूलों से कट जाता है। तब वह सबके पैरों तले रौंदा जाता है।
         इसी प्रकार एक पत्ता जब तक अपनी शाखा से जुड़ा रहता है, तब तक आँधी भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। परन्तु ज्योंहि वह अपनी शाखा से टूटकर अलग होता है त्योंहि हवा उसे उड़ाकर कहीं भी फैंक देती है। जब माली आता है तब उन सब फूलों या पत्तों को समेटकर कूड़े में फैंक देता है और फिर उन्हें अग्नि के हवाले कर देता है।
          हम बाजार में फल लेने जाते हैं तो देखते हैं कि एक गुच्छे में रहने वाले फलों का मूल्य अधिक होता है। लेकिन पास ही पड़े हुए, अपने गुच्छे से अलग टूटे हुए फलों के दाने कितने भी बढ़िया हों, उनका मूल्य बहुत ही कम रह जाता है। अच्छे फलों के ग्राहक उनकी ओर देखते तक नहीं हैं।
         मनुष्य तभी तक मूल्यवान है जब तक वह अपने परिवार रूपी शाखा, किसी संगठन और समाज से जुड़ा रहता है जब वह अपने परिवार, संगठन अथवा समाज से कटकर अलग हो जाता है तब उसकी कीमत आधे से भी कम रह जाती है।
           एक कथा की चर्चा करते हैं जिसमें एक मरणासन्न पिता ने अपने चारों बेटों को बुलाया जो हमेशा लड़ाई-झगड़ा करते थे। पिता ने पुत्रों को कुछ लकड़ियाँ लाने के लिए कहा। बेटे पिता के आदेशानुसार कुछ लकड़ियाँ लेकर आए। तब पिता ने उन्हें एक-एक लकड़ी तोड़ने के लिए कहा। एक-एक करके वे लकड़ियाँ तोड़ने लगे जो बड़े आराम से टूटने लगीं।
           पिता ने तब उन्हें सब लकड़ियों का एक गट्ठर बनाने के लिए कहा। गट्ठर बनने के बाद पिता ने कहा कि उसे तोड़ो। चारों बेटों ने बारी-बारी से यत्न किया पर गट्ठर बनी लकड़ियों को तोड़ने में वे समर्थ नहीं हो सके।
           पिता ने अपने बेटों को समझाया कि यदि वे चारों भाई लकड़ी के गट्ठर की तरह मिलकर, एकजुट होकर रहेंगे तो कोई उनको हानि नहीं पहुँचा सकता। लेकिन यदि वे लकड़ियों की तरह अलग-अलग रहेंगे तो वे अकेले पड़ जाएँगे और कोई भी उन्हें तोड़ सकता है। उनको नुकसान पहुँचा सकता है। पिता की यह बात सुनकर उन बच्चों को समझ आ गई कि यदि एकता से रहेंगे तो बलशाली बन जाएँगे। तब उन्होंने पिता को वचन दिया कि वे भविष्य में मिलकर, एक होकर रहेंगे और झगड़ा नहीं करेंगे।
          यह चिन्ता उस एक पिता की नहीं है अपितु हर माता-पिता का सपना होता है कि  इस दुनिया से जाने के बाद भी उनके बच्चे एक ईकाई की तरह मिलकर रहें। दुनिया की कोई ताकत उन्हें अलग न कर सके जिससे कभी उनको किसी प्रकार की हानि अथवा परेशानी का सामना न करना पड़ जाए।
चन्द्र प्रभा सूद
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