सोमवार, 20 जून 2016

संस्कृत भाषा

संस्कृत भाषा निर्विवाद रूप से पूरे विश्व में सम्मानित भाषा है। अन्य किसी भी भाषा पर विवाद हो सकता है परन्तु इस भाषा को सभी भाषाविद् एकमत से विश्व की प्राचीनतम भाषा मानते हैं।
          सभी विद्वान् 'ऋग्वेद' को विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ मानते हैं। संस्कृत भाषा को भारतीय भाषाओं की ही नहीं अपितु संसार की सभी भाषाओं की जननी माना जाता है। इसे उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा बनाया गया है।
          कुछ शताब्दियों पूर्व संस्कृत भाषा आधिकारिक तौर पर भारत की राष्ट्रीय भाषा थी। इसीलिए हमारे सभी ग्रन्थ इसी भाषा में लिखे गए हैं। बेशक लोगों को आज संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं है, फिर भी पूजा करते समय कुछ संस्कृत में श्लोक या मन्त्र गा लेते हैं। वैसे कर्नाटक प के मुत्तुर गांव के लोग केवल संस्कृत में ही बात करते है।
         नासा के अनुसार संस्कृत धरती पर बोली जाने वाली सबसे स्पष्ट भाषा है। संस्कृत भाषा का शब्दकोष बहुत समृद्ध है। इसमें 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द है। संस्कृत में अनेक शब्द हैं जिनके लिए अनेक पर्यायवाची उपलब्ध हैं। नासा के वैज्ञानिक संस्कृत में ताड़पत्रों पर लिखी 60,000 पांडुलिपियों पर रिसर्च कर रहे हैं।
         संस्कृत भाषा एक वैज्ञानिक भाषा है जो आधुनिक कमप्यूटर के लिए भी उपयुक्त भाषा है। फ़ोबर्स मैगज़ीन ने जुलाई,1987 में संस्कृत को Computer Software के लिए सबसे बेहतर भाषा माना था। किसी और भाषा के मुकाबले संस्कृत में सबसे कम शब्दों में वाक्य पूरा हो जाता है। यानि कभी कर्ता और कभी क्रिया के बिना भी वक्ता अपनी बात को स्पष्ट कर सकता है।
          मजे की बात है कि इस भाषा में कर्ता, कर्म और क्रिया का क्रम यदि बदल भी दिया जाए तो भी उस वाक्य के अर्थ में परिवर्तन नहीं होता।
          संस्कृत दुनिया की एकमात्र ऐसी भाषा है जिसका उच्चारण करते समय में  जीभ मुँह के अन्दर के सभी अवयवों का स्पर्श करती है। इस तरह मुँह की सभी मांसपेशियों की एक्सरसाइज होती है। संस्कृत में वार्तालाप करने से मनुष्य का शरीरिक तन्त्रिका तन्त्र सक्रिय रहता है जिससे व्यक्ति का शरीर सकारात्म ऊर्जा के साथ सक्रिय हो जाता है। इसीलिए यह भाषा स्पीच थेरेपी में भी बहुत सहायक है। इससे एकाग्रता बढ़ती है।
          आज भी संस्कृत में कई पत्रिकाएँ प्रकाशित होती हैं। सुधर्मा नामक संस्कृत का पहला अखबार 1970 में आरम्भ हुआ था। आजकल इसे ऑनलाइन भी प्रकाशित किया जाता है।
        संस्कृत सीखने से दिमाग तेज हो जाता है और याद करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए लंदन और आयरलैण्ड के कई स्कूलों में संस्कृत को अनिवार्य विषय बना दिया गया है। इस समय विश्व के सत्तरह से अधिक देशों के कम-से-कम एक विश्वविद्यालय में तकनीकी शिक्षा के कोर्स में संस्कृत पढ़ाई जाती है। जर्मनी में बड़ी संख्या में संस्कृतभाषियों की माँग है। वहाँ चौदह विश्वविद्यालयों में संस्कृत भाषा पढ़ाई जाती है। भारत के प्रायः सभी विश्वविद्यालयों में संस्कृत विषय पढ़ाया जाता है।
             अमेरिकन हिन्दू युनिवर्सिटी के विद्वानों का कथन है कि संस्कृत में यदि बातचीत की जाए तो मनुष्य बी.पी., मधुमेह, कोलेस्ट्रोल आदि रोगों से मुक्त हो जाता है।
          हम भारतीय केवल अपनी भाषा के गौरव का गुणगान करते नहीं अघाते। जहाँ बच्चों को इसे पढ़ाने की बारी आती है तो उन्हें विदेशी भाषा का मोह सताने लगता है।
          मैं यह नहीं कहती कि बच्चे दूसरी भाषाएँ न पढ़े। ज्ञान तो जितना आत्मसात किया जाए उतना ही कम है। आयुपर्यन्त मनुष्य ज्ञानार्जन कर सकता है यदि उसमें ज्ञान पिपासा हो। इसे पढ़ने का अर्थ पण्डित बनना नहीं है। अपनी मिट्टी और जड़ों से जुड़े रहने के लिए इस देववाणी संस्कृत को भाषा बच्चों को अवश्य पढ़ाएँ।
चन्द्र प्रभा सूद
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