शनिवार, 4 जून 2016

घर का पर्यावरण शुद्ध करें

घर में रहने वाली, गृहकार्यों को दक्षता से निपटाने वाली पत्नी के विषय पुरुष प्रायः सोचते हैं कि उनकी पत्नी सारा दिन घर में निठल्ली बैठी रहती है। घर का काम भी कोई काम होता है। वे हर समय बस यही राग अलापते हैं कि उनकी पत्नी सारा दिन क्या करती है?
           पुरुषों को यही लगता है कि नौकरी करने वाली महिलाएँ ही सिर्फ काम करती हैं। घरेलू स्त्रियाँ बस केवल अपने पति के कमाए हुए पैसों पर ऐश करती है।
           एक आदमी ने भगवान से नाराज होते हुए प्रश्न किया- 'हे प्रभु! मैं सारा दिन खटता रहता हूँ, जीतोड़ मेहनत करता हूँ, अपने परिवार के लिए परिश्रम करके कमाता हूँ। मेरी पत्नी पूरा दिन घर में रहकर आराम करती है, मजे करती है और फरमाइशें करती रहती है? उसकी जिंदगी बहुत मजे से बिना किसी कष्ट से कट है, ऐसा अन्याय मेरे साथ क्यों हो रहा है?'
           भगवान ने उसकी शिकायत सुनकर सुझाव दिया- 'ऐसा करते हैं केवल दो दिन के लिए तुम अपनी पत्नी के साथ उसकी जिन्दगी बदलकर देखो और सब कुछ स्वयं जान लो।'
            वह आदमी खुशी से प्रभु की सलाह मान गया। अगले दिन प्रातः पाँच बजे जब अलार्म बजा तब उसने उठकर बच्चों का लंच बनाया और फिर उन्हें तैयार करके स्कूल भेजा। फिर पति बनी पत्नी को उठाकर उसका नाश्ता बनाया। फिर उसके जाने के बाद घर साफ किया।अभी नाश्ता करने बैठा ही था कि कामवाली आ गयी। वो गई तो बच्चों के स्कूल से आने का टाइम हो गया। उन्हें खाना खिलाकर होमवर्क करने बिठाया।
         शाम के खाने की तैयारी करके बच्चों को ट्यूशन क्लास में ले गया। शाम को पत्नी के आने पर खाना परोसा तो उसने उसमें से चार कमियाँ निकाल दीं। उसकी नुकताचीनी से उसे गुस्सा तो बहुत आया पर वह चुप रहा। अन्त में थके होने के बावजूद रात को पति बनी पत्नी को संतुष्ट भी किया।
            इस सारी दिनचर्या के बाद ही उस आदमी को पता चला कि पत्नी के बारे में वह कितना गलत सोचता था। उसके किए गए कार्यों की बराबरी नहीं की जा सकती। पत्नी बिना कोई वेतन लिए सारे कार्य बिना शिकन लाए खुशी-खुशी करती है।
          उसे  अपने ऊपर बड़ी ग्लानि हुई। उसे समझ आ गया था कि सारा दिन उसकी पत्नी चक्करघिन्नी बनी कभी पति की आवश्यकताओं को पूरा करती और कभी बच्चों की जरूरतों को पूरा करती इधर से उधर घूमती रहती है। अपने लिए उसके पास समय ही नहीं होता। वह यदि बीमार भी हो तो दवाई खाकर फिर से घर-गृहस्थी के कामों में जुट जाती है।
          वह बिना किसी से शिकायत किए अपने सारे दायित्व बखूबी निभाती है। उसके बाद भी सभी आने-जाने वालों का स्वागत अपनी प्यारी-सी मुस्कान से करती है। पुरुष किसी भी मायने में उसकी बराबरी नहीं कर सकता।
          तब दो दिन बाद प्रातः उठकर सबसे पहले उसने भगवान से प्रार्थना की कि वे उसे वापिस आदमी बना दें क्योंकि अब उसे समझ आ गया कि घर में रहने वाली एक औरत को कितना अधिक काम करना पड़ता है। उसके बराबर मैं भी काम नहीं कर सकता।  
          जिस पुरुष ने ईश्वर से शिकायत की थी उसे जिस प्रकार सब कुछ समझ में आ गया उसी तरह शेष अन्य पुरुषों को भी यह समझ में आ आना चाहिए। स्त्री के प्रति उनका व्यवहार सहृदयता पूर्ण होना चाहिए। हर समय पत्नी की शिकायत न करके उसकी समस्याओं की ओर ध्यान देना चाहिए। उस पर व्यंग्य करना या उस पर चुटकले बनाकर उसके स्वाभिमान को आहत नहीं करना चाहिए। अपने पुरुष होने के मिथ्या अहं का त्याग करके उसकी ओर सहायता करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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