शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

सफलता ढिंढोरा नहीं पीटती

गंभीरतापूर्वक विचार करने योग्य यह प्रश्न है कि सफलता ढिंढोरा पीटते हुए क्यों नहीं आती? उसका मित्र अकेलापन ही क्यों बन जाता है?
        हम यदि कोई कार्य करते हैं तो उसके लिए आडंबर रचाते रहते हैं, अपनी तारीफों के पुल बांधते नहीं थकते, जोरशोर से चारों ओर हवा फैलाते हैं। ये सब आप समाचार पत्रों में, टीवी, रेडियो आदि पर प्रतिदिन ही पढ़ते, देखते व सुनते हैं। वे कार्य कितने सफल या असफल होते हैं उनके विषय में समय बताता है।
        हम सदा अपनी-अपनी हाँकते रहते हैं। हमें समाज की अथवा जन साधारण की कोई परवाह नहीं होती। ऐसे अवसरों पर मोटी चमड़ी हो जाती है। चिकने घड़े की तरह बनकर निर्लज्ज होकर बस दाँत निपोरते रहते हैं।
            जब व्यक्ति जीवन में दिन-प्रतिदिन सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है तब वह धीरे-धीरे अकेला होने लगता है। कार्य की अधिकता के कारण उसके पास अपने लिए ही समय नहीं बचता तो घर-परिवार के लिए कहाँ से समय निकाले? प्रातः घर से जल्दी निकलना और देर रात घर पर वापिस लौटना ही उसके कार्यक्रम का अंग बन जाते हैं। यदि वह कभी अस्वस्थ हो जाए तो आराम करने का समय भी अपने लिए नहीं निकाल पाता। उसकी व्यस्तता उसे सबसे काटकर अलग-थलग कर देती है। इसके अतिरिक्त नौकरी या व्यवसाय के कारण कई दिनों तक घर से बाहर देश अथवा विदेश जाना हो तो समस्या और बढ़ जाती है।
         उसे माता-पिता, पत्नी, बच्चों, मित्रों व रिश्तेदारों के उलाहनों का सामना तो नित्य प्रतिदिन करना पड़ता है। सबके लिए वह सुख-सुविधाएँ जुटाता है, उसके द्वारा लाए गए कीमती उपहारों की शान सभी बघारते हैं और उनका उपभोग करते हैं पर फिर भी उसे जिम्मेदारियों से भागने का या मुँह मोड़ने का दोष देने से नहीं चूकते। ऐसा करके उसके मन को कष्ट देते हैं।
        सभी लोग उससे नाराज रहते हैं। कोई उसकी विवशताओं को समझना ही नहीं चाहता। सभी सोचते हैं कि ऊँची पदवी पर पहुँचा वह किसी के साथ संबंध ही नहीं रखना चाहता क्योंकि उसकी नाक नीची होती है। इसलिए सबसे न मिलने के लिए नित्य नये बहाने बनाता रहता है।
         उसकी कठिनाइयों को समझना नहीं चाहता। धीरे-धीरे वह मशीन की तरह हो जाता है। उसके पास इन सब ऊल-जलूल प्रश्नों के उत्तर देने का समय नहीं होता। अपने कार्यों में खोया वह उन्हीं को ही आगे बढ़ाता रहता है।
          इस सृष्टि का नियम है कि जो अपने कार्यों का सफलतापूर्वक निर्वहण करता है वह सूर्य की तरह आकाश में अकेला ही चमकता है। सिंह की भाँति जंगल में वह अकेले ही विचरण करता है। उसका तेज उसे दूसरों की तुलना में विलक्षण बनाता है।
        एवंविध यह तो सत्य है कि सफलता अपने साथ अकेलेपन को लेकर आती है। ऐसे सफल व्यक्तियों से ईर्ष्या न करके उनसे सीखने की आवश्यकता है। उनके पदचिह्नों पर चलकर महान लोगों की श्रेणी में आने का यथासंभव प्रयास सभी को करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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