शनिवार, 31 दिसंबर 2016

जन्मदात्री माँ

माँ मनुष्य की जीवनदात्री होती है। वह उसके लालन-पालन में अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखती। वह चाहती है कि उसके बच्चे सदा सन्तुष्ट और प्रसन्न रहें। इसके लिए वह अपना सारा जीवन घर और बच्चों को दे देती है। प्रयास यही करती रहती है कि बच्चों को किसी तरह की कोघ कमी न रहे। उन्हें बहलाने के लिए नानाविध उपाय वह करती रहती है।
         कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो खाने-पीने के पदार्थ, खिलौने या पैसे आदि भौतिक वस्तुएँ लेकर प्रसन्न हो जाते हैं। फिर वे सब कुछ भूलकर उस आनन्द में खो जाते हैं। पर इसके विपरीत भी कुछ बच्चे होते हैं जिन्हें इन सबसे कोई वास्ता नहीं होता उन्हें केवल माँ की गोद ही चाहिए होती है। माँ उन्हें कितना भी बहलाने का प्रयास करे सब निष्फल हो जाता है।
         अन्ततः उसे उस हठी बच्चे को गोद में उठाना ही पड़ता है। उसे अपनी गोद में उठाकर वह निहाल हो जाती है। उसे प्यार करती है और पुचकारती है। फिर खाने-खेलने की भी सारी वस्तुएँ  भी उसे दे देती है। सबसे बढ़कर अपना अमूल्य समय उस बच्चे को देती है।
         सभी माताओं की ही तरह यह एक माता भी अपने घर के दैनन्दिन कार्यों को निपटाने में व्यस्त थी। घर में उसके चारों बच्चे लड़ाई-झगड़ा करके शोर मचा रहे थे।  माँ उनके झगड़ने और शोर करने से बहुत परेशान हो रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह काम करे या बच्चों के झगड़े सुलझाए।
          काम छोड़कर वह बच्चों के पास आई। उसने एक बच्चे को दस रुपए का नोट दिया और कहा- 'बाहर जाकर कुछ खा लो।'
         फिर दूसरे बच्चे को खिलौने देकर कहा- 'इनसे खिलौनों से खेलो और शान्त हो जाओ।'   
         उसके बाद तीसरे बच्चे को खाने के लिए फल और मिठाई दी ताकि वह उन्हें खाए और फिर झगड़ना भूल जाए।
       चौथे बच्चे को बहलाने की माँ ने बहुत यत्न किया। उसे पैसे, खिलौने और फल आदि देने का प्रयास किया। परन्तु वह बच्चा माँ की गोद में आने के लिए रोता रहा। आखिरकार माँ ने बच्चे को गोद में उठा लिया। उसे खाने के लिए फल और मिठाई दी और फिर खेलने के लिए खिलौने भी दिए।
         इसी तरह वह जगज्जननी भी हम सब मनुष्यों को अलग-अलग कार्यों में उलझा कर रखती है। इससे हम मनुष्य उसे भूलकर अपने आनन्द में डूब जाते हैं, मौज-मस्ती में मस्त हो जाते हैं और उस जगत माता से दूर होते जाते हैं।
         इसके विपरीत जो मनुष्य इन सारे सांसारिक आकर्षणों के मोह को छोड़कर, केवल इस संसार की माता यानी उस परमपिता परमात्मा को ही पाने की जिद ठान लेता या कामना करता है, ऐसी सन्तान को वह माँ अपनी गोद में उठा लेने के लिए विवश हो जाती है। अपनी गोद में स्थान देने के साथ-साथ वह उन्हें सब कुछ ही प्रदान कर देती है।
         मनुष्य की अँगुली थामकर उसके चौरासी लाख योनियों के चक्र को काट देती है। इस भव सागर से पार ले जाने के लिए अपना वरद हस्त उसके सिर पर रख देती है। उस माँ की असीम कृपा से जीवन का परम उद्देश्य मुक्ति मनुष्य को प्राप्त हो जाता है यानी वह जन्म-जन्मान्तरों के जीवन और मृत्यु के बन्धनों से मुक्त होकर मोक्ष को पा जाता है।
         इस सबको प्राप्त करने के लिए एक मनुष्य को बहुत ही ईमानदारी से अपना प्रयास करना पड़ता है। मात्र प्रदर्शन करने से मन में सच्चे भाव नहीं आ सकते। अपनी माता की प्रिय सन्तान बनने के लिए मनुष्य को अपने कर्मों के प्रति सजग रहना होता है। सारा जीवन यही यत्न करना चाहिए कि माता के प्रति अपने सभी दायित्वों का निर्वहण वह उचित प्रकार से करे।
         उसका प्रयत्न यही होना चाहिए कि वह अपनी माता की सेवा-सुश्रुषा में कोई कमी न आने दे। इससे माता उससे सन्तुष्ट रहेगी और उसे अपने आशीर्वाद की दौलत से मालामाल कर देगी। माता से मिलने वाले इन शुभाशीषों की बदौलत वह दुनिया की हर जंग जीत सकता है। इसके साथ ही उसे हर कदम पर सफलता और बन्धु-बान्धवों का सहयोग भी मिलता है।
चन्द्र प्रभा सूद
Email : cprabas59@gmail. com
Twitter : http//tco/86whejp

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें