रविवार, 4 दिसंबर 2016

ईश्वर पर विश्वास रखें

ईश्वर पर यदि दृढ़ विश्वास हो तो मनुष्य अपने सभी कर्मों को उसी को ही समर्पित करता है। किसी भी कर्म को करने से पहले वह उस मालिक का स्मरण करता है और उसका धन्यवाद करता है। इस तरह मनुष्य अशुभ कार्यों में फँसने से बच जाता है और परेशानियों से भी बच जाता है।
         जिस कार्य में मनुष्य को सफलता मिलती है, उसका श्रेय वह परमात्मा को ही देता है। यदि किसी कार्य में उसे हानि होती है तो उसका अपयश अपने ऊपर ले लेता है। इसलिए उसके मन मेँ कभी कर्त्तापन का अभिमान नहीं आ पाता। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने समझाया है कि सभी कर्म ईश्वर को समर्पित कर दो।
        एक बोधकथा पर विचार करते हैं। एक आदमी रेगिस्तान में भटक गया था। उसके पास रखी हुई खाने-पीने की सामग्री भी समाप्त हो गई। अब वह पानी की एक-एक बूँद के लिए तरसने लगा। उसे ऐसा प्रतीत होने लगा था कि यदि उसे अब कहीं से पानी नहीं मिला तो उसकी मृत्यु निश्चित हो जाएगी।
         उसे ईश्वर पर दृढ़ विश्वास था कि अवश्य ही कोई चमत्कार होगा और उसे पीने के लिए पानी मिल जाएगा। अचानक ही उसे अपने सामने एक झोपड़ी दिखाई दी। मृगतृष्णा और भ्रम के कारण वह कई बार धोखा खा चुका था। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। उसके लिए यह आशा की अन्तिम किरण थी।
         अपनी पूरी ताकत लगाकर झोंपडी की ओर वह जाने लगा। इस बार भाग्य ने उसका साथ दिया। उसने देखा कि झोपडी वीरान पड़ी थी। शायद सालों से वहाँ कोई नहीं गया था। झोंपड़ी के अन्दर का नजारा देखकर उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
       वहाँ पर एक हैण्ड पम्प लगा हुआ था। नयी ऊर्जा से भरकर वह हैण्ड पम्प चलाने लगा। परन्तु हैण्ड पम्प सूख चुका था। निराशा ने उसे घेर लिया।
             उसे लगने लगा था कि अब उसे मरने से उसे कोई नहीं बचा सकता। उसी समय झोपड़ी की छत से बँधी हुई पानी से भरी एक बोतल उसे दिखाई दी। वह बोतल का पीने ही वाला था कि बोतल से चिपका हुआ एक कागज़ उसे दिखा जिस पर लिखा था-" इस पानी का प्रयोग हैण्ड पम्प चलाने के लिए करना तथा फिर बोतल भरकर वापिस रखना मत भूलना।"
        उस आदमी को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह पानी पिए या हैण्ड पम्प में डालकर उसे चालू करे। कुछ विचार करके उसने बोतल का पानी पम्प में डाला और  ईश्वर से अपने जीवन के लिए प्रार्थना की। पम्प चलाने पर उसमें से अमृत की तरह ठण्डा पानी निकलने लगा।
         उसने अपनी प्यास बुझाई और फिर बोतल को पानी से भरकर छत पर टाँग दिया। जब वह ऐसा कर रहा था तभी उसे सामने काँच की एक और बोतल दिखी। उसमें रेगिस्तान से बाहर निकलने का नक्शा पड़ा हुआ था।
        पानी से भरी हुई बोतल पर चिपके कागज को उतारकर उसने लिखा- "मेरा विश्वास कीजिए, यह पम्प काम करता है।" इसके बाद वह अपनी बोतलों में पानी भर कर वहाँ से निकल आया।
           इस बोधकथा पर मनन करने से यही समझ आता है कि पानी का हमारे जीवन में बहुत मूल्य है। इसके बिना हमारा जीवन अधिक समय तक नहीं चल सकता।
         इस संसार में हम सब जो भी सुख-समृद्धि पाना चाहते हैं, पहले उसे अपनी ओर से कर्मरूपी इस हैण्ड पम्प में डालना पड़ता है। तभी अपने योगदान से कहीं अधिक मनुष्य उसे अपने जीवनकाल में वापिस पा सकता है।
        ईश्वर के प्रति मन से समर्पण करने पर ही मनुष्य पूर्णरूपेण उसका कृपापात्र बन सकता है। इस तरह अपने अहं का परित्याग करके मनुष्य जीवन के सार तत्त्व को समझकर अपना जीवन सफल बना सकता है। उसका इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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