मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

साहसी बनो

साहसी और पराक्रमी लोगों को सदैव ही अपने बाहुबल पर पूर्ण विश्वास होता है। वे कभी तथाकथित तान्त्रिकों-मान्त्रिकों के फेर में नहीं पड़ते। वे अपने बलबूते पर अपना स्थान समाज में स्वयं ही बना लेते हैं। किसी प्रकार के कर्मकाण्ड पर उनको भरोसा नहीं होता। वे जंगल के राजा शेर की तरह निष्कंटक अपना अस्तित्व बनाए रखने में समर्थ होते हैं।
         निम्न श्लोक में कवि ने इसी भाव को प्रकट किया है-
           नाभिषेको न संस्कार: सिंहस्य क्रियते मृगैः।
           विक्रमार्जितराज्यस्य   स्वयमेव   मृगेन्द्रता॥
अर्थात वन्य जीव शेर को राजा बनाने के लिए उसका अभिषेक संस्कार नहीं करते। यानी कतिपय कर्मकांड के माध्यम से शेर का राज्याभिषेक नहीं किया जाता। वह अपने पराक्रम से स्वयं ही राजत्व को बहुत सरलता से प्राप्त कर लेता है।
        कहने का तात्पर्य है कि जंगल के राजा को अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए किसी प्रकार का पूजा-पाठ करने की आवश्यकता नहीं होती। न ही उसे किसी के सहारे की आवश्यकता होती है। अपने कर्मक्षेत्र में अकेले रहकर वह सब प्राप्त कर लेता है जो उसे चाहिए होता है।
           इसी प्रकार पराक्रमी व्यक्ति भी अपने जीवन में अकेले चलते हुए बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं। वे 'एकला चलो रे' का ही अक्षरश: पालन करते हुए प्रतीत होते हैं। वे किसी बैसाखी के मोहताज नहीं होते।
         निम्न श्लोक में कवि का कथन है कि साहसी मनुष्य को कार्य आरम्भ करने से पहले शेर से सीखना चाहिए-
           प्रभूतं कार्यानपि वा तन्नरः कर्तुमिच्छति।
           सर्वारम्भेण  तत्कार्यं  सिंहादेकं प्रचक्षते॥
अर्थात मनुष्य जो भी बहुत से कार्य करना चाहता है उन्हें आरम्भ करने से पहले शेर से सीखना चाहिए।
        इसका अर्थ यही है कि शेर से उसके साहस, निडरता, अकेलापन, युद्ध कौशल, आधिपत्य, स्वाभिमान आदि गुणों को सीखकर आगे बढ़ना चाहिए। ऐसा करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में निश्चित ही सफल होता है।
         मनुष्य यदि दूसरों का मुँह देखता रहेगा तो कभी कोई साहसिक कार्य कर ही नहीं सकता। हर कदम उठाने से पहले लोग उसका मनोबल गिराने का काम करते हैं। स्वयं वे अपने जीवन में कोई जोखिम उठा नहीं सकते। इसलिए वे सदा दूसरों को अनावश्यक ही निरुत्साहित करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।
         यदि इन्सान फालतू के डर पाल ले तो वह घर के बाहर कदम भी नहीं निकाल सकता। फिर तो वहाँ भी उसे डरना चाहिए कि किसी वाहन से टकराकर वह घायल न हो जाए। कोई सड़क चलता आवारा पशु उस पर आक्रमण न कर दे। कोई चोर-लुटेरा उसका धन आदि न छीन ले।
        ये सब भय यदि मनुष्य पाल लेगा तो वह एक स्वस्थ इन्सान नहीं बन सकता। वह शीघ्र ही मनोरोगी बन जाएगा। इस प्रकार का व्यवहार करके वह सभी लोगों की हँसी का पात्र बन जाएगा। लोग उस पर व्यंग्य बाण चलाने से नहीं चूकते।
         बिना साहस जुटाए मनुष्य एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकता। साहसी व्यक्ति ही जीवन के हर कदम पर सफल होकर कीर्तिमान स्थापित करते हैं। वही समाज में अनुकरणीय होते हैं और उदाहरण बनते हैं।
         महात्मा गान्धी की तरह जब मनुष्य अकेला ही अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगता है तो उसका अनुसरण करने के लिए हजारों-लाखों की भीड़ उसका मनोबल बढ़ाने के लिए उसके पीछे आकर खड़ी हो जाती है। तब फिर उसकी सफलता में कोई सन्देह नहीं रह जाता।
         प्रत्येक मनुष्य को उन लोगों का ही सदा संसर्ग करना चाहिए जो उससे उच्च मानसिकता वाले हों। उनमें शौर्य आदि गुण कूट-कूटकर भरे हों। ऐसे साहसी निस्वार्थ लोग ही दूसरों को जोखिम उठाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। शेष अपने बाहुबल और ईश्वर पर विश्वास करके मनुष्य को अपने कर्मपथ पर जंगल के राजा सिंह की भाँति निरन्तर अग्रसर होना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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