बुधवार, 28 दिसंबर 2016

रिश्ते निभाना

संसार में रहते हुए सांसारिक रिश्ते निभाना बच्चों का खेल कदापि नहीं है। यहाँ कदम-कदम पर अग्नि परीक्षा में खरा उतरना पड़ता है। रिश्तों की दौलत हमारे पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ईश्वर की ओर से हमें उपहार में मिलती है। उसे सम्हालना हमारे हाथ में होता है। हम चाहें तो उस पूँजी को अपने सुकृत्यों और अपने सद् व्यहार से बढ़ा सकते हैं और चाहें तो अपने झूठे अहम व दुर्व्यवहार से घटा सकते हैं।
          रिश्तों की गरिमा बनाए रखने के लिए बहुत सारे समझौते कदम-कदम पर करने पड़ते हैं। जो सामंजस्य नहीं बनाना चाहते वे इस पूँजी को गँवाकर ठन-ठन गोपाल हो जाते हैं।
         परिवार में तन, मन और धन जुड़ाव अथवा विघटन के कारण होते हैं। अपने माता-पिता अथवा अन्य संबंधियों की सेवा तन से या इस शरीर से करेंगे तभी चारों ओर वाहवाही होगी। लोग कहेंगे कि फलाँ व्यक्ति सबके लिए बड़ी हाड़तोड़ मेहनत करता है।
        मन से यदि दूसरो के लिए कुछ किया जाए तो उसका प्रभाव सब पर पड़ता है। यदि अनमना होकर अथवा घास काटते हुए किसी के लिए कुछ किया जाए तो वह भार बन जाता है। ऐसा करने से न तो सेवा करने वाले को खुशी मिलती है और न ही करवाने वाले को।
           रिश्तों को जोड़ने के लिए धन की बहुत आवश्यकता होती है। बिना धन के घर आए किसी मेहमान की आवभगत नहीं हो सकती। घर में बड़े-बजुर्गों के स्वास्थ्य और उनकी अन्य आवश्यकताओ को पूरा करना धन के बिना सम्भव नहीं हो सकता। अपने जीवन यापन के लिए भी इसके बिना एक कदम भी नहीं चल सकते।
           जहाँ अन्य सभी रिश्ते तन, मन और धन से ही निभाने सम्भव हो पाते हैं वहीं सबसे महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध में तो ये तीनों बेहद जरूरी होते हैं। बच्चों के संदर्भ में यानि उनके लालन-पालन में भी इन तीनों का योगदान आवश्यक है। उनकी पढ़ाई-लिखाई, जीवन में उन्हें सेटल करना और शादी-ब्याह में इन तीनों तत्वों  का ही योगदान होता है।
         अन्त में मैं पति-पत्नि के रिश्ते की गरिमा की चर्चा करना आवश्यक समझती हूँ जहाँ इन तीनों की महती आवश्यकता होती है। सबसे पहले तन यानि शारीरिक सम्बन्धों की पवित्रता होनी चाहिए। दोनों में से यदि एक भी पक्ष विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाएगा तो यह पवित्र रिश्ता कदापि नहीं निभ सकता। दोनों ओर की पारदर्शिता होना इस रिश्ते की पहली शर्त है।
           दोनो का मन से जुड़ाव जब तक न हो तो भी सम्बन्ध लम्बे समय तक नहीं चलते। यदि दोनों में कोई भी एक अपने जीवन साथी को छोड़कर किसी अन्य के साथ शारीरिक सम्बन्ध न रखते हुए भी भावनात्मक लगाव रखेगा तो भी रिश्तों की पवित्रता भंग होती है। इसका सीधा-सा अर्थ हुआ पत्नी घर में और प्रेयसी मन में अथवा पति घर में व प्रेमी मन में। इन दोनों के ये सम्बन्ध लम्बे समय तक नहीं निभ पाते। लड़ाई-झगड़ा, मनमुटाव, अबोलापन आदि गृहस्थी की नींव को खोखला करते है। इनके अतिरिक्त आपसी पारदर्शिता के अभाव में वहाँ विघटन की सम्भावना हमेशा बनी रहती है।
         धन भी एक महत्त्वपूर्ण अंग है गृहस्थ जीवन का। यदि धन-सम्पत्ति के विषय में दोनों एक नहीं हैं और मेरा पैसा, मेरा पैसा करते रहते हैं तो वहाँ समस्याएँ अधिक बढ़ जाती हैं। एक-दूसरे को यदि समय पर धन न दिया जाए तो करोड़ों-अरबों रूपए भी व्यर्थ होते हैं। फिर चाहे कितनी भी लीपा-पोती कर लो रिश्ते दरकने लगते हैं। वहाँ  रिश्तों की मिठास चुकने लगती है और कटुता का साम्राज्य हो जाता है।
        तन, मन और धन की शुचिता आपसी सम्बन्धों के लिए नितान्त आवश्यक है। इनमें पारदर्शिता रखने वाले अपनी गाड़ी प्रसन्नता पूर्वक चलाते हैं और अन्य रोते-कल्पते और शिकवा करते रहते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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