शनिवार, 3 दिसंबर 2016

मृत्य का स्थान निश्चित

मृत्यु का समय तथा स्थान हर जीव के लिए निश्चित होता है। जीव कहीं पर भी क्यों न रहता हो, अपनी मृत्यु के निश्चित स्थान पर और निर्धारित समय पर पहुँच ही जाता है। हम देखते हैं कि रेल, बस, वायुयान आदि दुर्घटनाएँ भी यदा कदा होती रहती हैं, जहाँ अलग-अलग स्थानों पर रहने वाले अनेक लोगों की एकसाथ, एकसमय पर मृत्यु हो जाती है।
          इसी प्रकार युद्ध की स्थिति होने पर भी बहुत से लोग अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं। भूकम्प, बाढ़, सुनामी, महामारी आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी अचानक एकसाथ बहुत से लोग काल के गाल मे समा जाते हैं।
         कभी-कभी धार्मिक आयोजनों, मेलों या सभाओं में भगदड़ मच जाने पर भी दूर-दराज के इलाकों से आए बहुत से लोग काल कवलित हो जाते हैं। कभी-कभार आतंकी हमले भी इस दायित्व को बखूबी निभाते हैं।
         इन सभी उदाहरणों से यही सिद्ध होता है कि जिस स्थान की मिट्टी जीव ने लेनी है अर्थात जो स्थान जीव की मृत्यु के लिए ईश्वर द्वारा निर्धारित किया गया है, वहाँ पर जीव किसी भी बहाने से पहुँच जाता है। वह स्थान चाहे वहाँ से सैंकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर ही क्यों न हो।
          इसी विषय को पुष्ट करती हुई यह एक बोधकथा है। एक बार भगवान श्री विष्णु अपने वाहन गरुड़ जी पर बैठकर कैलाश पर्वत की ओर गए। गरुड़ जी को उन्होंने द्वार पर ही छोड़ दिया और स्वयं वे भगवान शिव से मिलने के लिए अन्दर चले गए। कैलाश पर्वत की अपूर्व प्राकृतिक छटा को देखकर गरुड़ जी मन्त्रमुग्ध हो गए। उसी समय उनकी नजर बहुत खूबसूरत-सी छोटी-सी चिड़िया पर जा पड़ी।
         चिड़िया के सौन्दर्य को निहारते हुए गरुड़ जी के सारे विचार उसी के चारों ओर केन्द्रित होने लगे। तभी कैलाश पर्वत पर यमदेव पधारे। वे भी भगवान शिव से मिलने के लिए अन्दर जाने लगे तो उनकी नजर उस छोटे से पक्षी पर पड़ी। उस नन्हें से पक्षी को आश्चर्यचकित होकर देखने लगे। गरुड़ जी समझ गए कि अब उस चिड़िया का अन्त निकट आ गया है। यमदेव कैलाश पर्वत से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे।
          गरूड़ जी को उस प्यारी-सी नन्ही चिड़िया पर दया आ गई। वे इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देखना चाहते थे। उन्होंने उस चिड़िया को अपने पंजों में दबा लिया और कैलाश से हजारों कोस दूर, जंगल में एक चट्टान पर छोड़ दिया। उसके बाद वे स्वयं कैलाश पर्वत पर वापिस लौट आए।
          यमदेव जब कैलाश पर्वत से बाहर जाने लगे तब गरुड़ जी ने उनसे पूछा- "यमदेव! आपने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्यभरी नजरों से क्यों देखा था?
        यमदेव ने उत्तर दिया- "गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को यहाँ कैलाश पर देखा तो मुझे ज्ञात हो गया था कि कुछ ही पलों के पश्चात, यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग उसे खाएगा।
         मैं सोच यही रहा था कि यह चिड़िया इतनी जल्दी, इतनी दूर उड़कर कैसे पहुँच जाएगी। अब जब वह यहाँ नहीं है, तब मुझे पता चल गया है कि निश्चित ही मर चुकी होगी।"
         यमदेव की यह बात सुनकर गरुड़ जी समझ गए कि मृत्यु जब आती है तो किसी भी तरह टालने का यत्न करने पर भी नहीं टलती। मनुष्य चाहे कितनी भी चतुराई क्यों न कर ले, उसे जब आना होता है तो आ ही जाती है।
          जीवन के उपरान्त मृत्यु तथा मृत्यु के अनन्तर जीवन एक शाश्वत सत्य है। जो भी इस अटल तथ्य को समझ लेता है वह विद्वान मृत्यु का स्वागत अपनी बाहें फैलाकर करता है, उससे घबराता नहीं है। जीव अपने पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ही ईश्वर द्वारा निर्धारित समय एवं स्थान पर ही काल का ग्रास बनता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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