बुधवार, 31 मई 2017

रह न जाए कोई कसक अधूरी शेष

रथ के दो पहिए
जब चलने लगते हँ
समानान्तर एक गति से
तब सामञ्जस्य हो जाता है उन दोनों में।

एक बड़ा हो जाए
अथवा छोटा हो जाए
नहीं रह सकता उनमें मेल
जब तक दोनों नहीं हो जाते एक समान।

पति हो या पत्नी
दोनों रथ की तरह
गतिमान न होंगे जब
तब तक नहीं चल सकता जीवन का रथ।

छोड़ दो यह झगड़ा
तू बड़ा या मैं बड़ा का
निर्मूल है यह बवाल सब
हम बन बढ़ जाओ आगे सुख की राह में।

मेरा मुकाबला नही
तेरा भी मुकाबला नहीं
किसी का भी मुकाबला नहीं
एक-दूजे को सह लेना समभाव होता है।

शत्रुवत व्यवहार नहीँ
कभी अपने प्रिय मीत से
परस्पर साथी बन जाओ
होगी राह आसान हमसफर के साथ से।

काल का यह चक्र
गतिशील है सदा ही
नहीं करता प्रतीक्षा कभी
कौन पहले और फिर कौन बचेगा पीछे।

बाद में रह जाएगा
केवल मात्र पश्चाताप
नहीँ मिलेगा ढूँढे से भी
अपना प्रिय मीत इस असार संसार में।

बस सोचो मत
अब कर लो पहल
बढ़ो आगे खोने से पहले
थामो हाथ एक-दूसरे का तुम यात्रा में।

कदमताल करते
पग-पग आगे बढ़ते
मुस्काते इस जीवन में
रहने न पाए कोई कसक अधूरी शेष।
चन्द्र प्रभा सूद
Email : cprabas59@gmail.com
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