शुक्रवार, 5 मई 2017

बूँद बूँद से घट भरता

बूँद-बूँद से घट भरता है और यदि किसी कारणवश उसमें छेद हो जाए तब उसी प्रकार से समय बीतते क्रमशः खाली भी हो जाता है। मनुष्य को अपने जीवन में सदा ही सावधान रहना चाहिए। उसे एक-एक करके अपने शुभ कर्मों में बढ़ोत्तरी करनी चाहिए। तुच्छ स्वार्थों के कारण उन्हें नष्ट नहीं होने देना चाहिए।
        मनुष्य अपने भीतर यदि अच्छाइयों को जोड़ना आरम्भ करेगा तो वह अपने इस जीवन में ऊँचाइयों को छू लेता है। गुणों की अधिकता उसे महान बनाती है। वह संसार में पूजनीय बन जाता है। समाज को दशा और दिशा देने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है। उसका जीवन सात्विक बन जाता है। उसका लोक और परलोक दोनों ही संवर जाते हैं।
        इसके विपरीत यदि वह बुराइयों की डगर पर चल पड़ता है तब उसका जीवन नरक के समान कष्टदायक हो जाता है। ऐसे मनुष्य से सभी किनारा करते हैं। कोई भी मनुष्य उसकी संगति में रहकर अपयश का भागी नहीं बनना चाहता। उसके अपने परिवारी जन भी दुखी होकर उससे मुँह मोड़ लेते हैं। फिर वह अकेला रह जाता है। समय बीतते उसे यह अहसास होता है कि क्षणिक सुख की चाह में उसने बहुत कुछ गंवा दिया है। उस समय रिश्ते टूट जाते हैं और जीवन के अवसान का समय आ जाता है।
           हम परिश्रम करके यदि थोड़ा-थोड़ा करके धन का संग्रह करते हैं तो बहुत-सी धनराशि एकत्र कर लेते हैं जो हमारे सुख-दुख में हमारा साथ निभाती है। इसके विपरीत यदि मनुष्य कुव्यसनों में पड़ जाए या उसे निठल्ले बैठने की आदत हो जाए तब पूर्वजों द्वारा कमाया हुआ भी साथ नहीं देता बल्कि बरबाद हो जाता है। तब धन-सम्पत्ति रूठकर घर से विदा हो जाती है। तब हम चाहकर भी उसे रोक नहीं पाते बस हाथ ही मलते रह जाते हैं। इसके अतिरिक्त हम कुछ और कर भी नहीं सकते।
         अपना लोक व परलोक सुधारने के लिए नियमित आत्मविशलेषण करके हम अपने दुर्गुणों को दूर करते हुए क्रमशः सद् गुणों को अपने अंतस में समाहित कर सकते हैं।
         मूर्ख व्यक्ति का कोई भी साथी नहीं बनना चाहता। सभी उससे अपना पिण्ड छुड़ाना चाहते हैं। ऐसे मूर्ख व्यक्ति के परलोक की बात तो छोड़ दीजिए उसका इहलोक भी नरक के समान ही कष्टदायक हो जाता है।
          धीरे-धीरे सद् ग्रन्थों को पढ़कर हम ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। आयु के बीतने पर हम अनुभवजन्य ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। नहीं तो मूर्खों की कतार को बढ़ाकर आयुपर्यन्त दूसरों द्वारा किए गए अपमान को सहन करते रहते हैं।
        लोगों को दूसरों की छीछालेदार करने में बहुत ही मानसिक प्रसन्नता मिलती है। उन्हें अनुचित रूप से टीका-टिप्पणी करके आनन्दित होने का अवसर कभी नहीं देना चाहिए।
        अपने आप को संतुलित बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम घट की भाँति पूर्ण बनें और बूँद-बूँद जल रूपी सद् गुणों से अपने व्यक्तित्व में निखार लाकर पूर्णता की ओर बढ़ें। छेदयुक्त मटके की तरह बनकर रिक्तता के मार्ग पर चलने से अर्थात जीवन को जीरो बनाने हमें सदा ही बचना चाहिए। तभी हम विवेकशील मनुष्य कहला सकेंगे।
चन्द्र प्रभा सूद
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