सोमवार, 1 जनवरी 2018

संयुक्त परिवार का विघटन

संयुक्त परिवार में विघटन छोटी-छोटी बातों को लेकर होता है। बच्चों व बड़ों की असहिष्णुता इसका मुख्य कारण होता है। दोनों ही पक्ष जब अपने-आपको सही ठहराते हुए दूसरों की बात नहीं सुनना चाहते तो समस्या बहुत बढ़ जाती है।
         संयुक्त परिवारों में बच्चे सुरक्षित रहते हैं। बच्चे, जिनके लिए माता-पिता इतनी मेहनत करते हैं पता भी नहीं चलता कि वे हँसते-खेलते, लड़ते-झगड़ते कब बड़े हो जाते हैं। माता-पिता यदि अपने काम पर जाते हैं तो बच्चे दादा-दादी या अन्य परिवार जनों के साथ रहते हैं तो उनका समुचित विकास होता है। उनको अकेलेपन का सामना नहीं करना पड़ता। नौकरों के सहारे रहकर उनके संस्कार व उनकी तरह का व्यवहार नहीं सीखना पड़ता।
        बजुर्गों को भी अकेलेपन का दंश नहीं झेलना पड़ता। उनका समय बच्चों के साथ बिना परेशानी के बीत जाता है।
        कुछ परिवारों में जब विघटन की स्थिति बनती है तो मन को पीड़ा होती है। घर का बेटा यदि  समझदारी से काम करे तो घर की इज्जत बनी रहती है और परिवार भी टूटन से  बच सकता है।
बजुर्गों को केवल सम्मान व बच्चों का साथ चाहिए होता है। यदि उन्हें यथोचित सम्मान व थोडा वक्त  दे दिया जाए तो संयुक्त परिवार कभी न टूटे।
         कुछ बजुर्ग अपना हठ छोड़ने को तैयार नहीं होते। वे सामंजस्य बैठाने में अपनी तौहीन समझते हैं। वे सोचते हैं कि बहु आयी है तो वह घर-बाहर की सभी जिम्मेवारियों को भी निभाए और वे अपना  शासन जमाएँ। सास-ससुर स्वयं में बदलाव लाने के बजाय बहु अर्थात् नये सदस्य से सामंजस्य करने की आशा रखते हैं।ऐसे परिवारों में विघटन की समस्या अधिक रहती है।
       कई परिवारों में अपनी स्वतन्त्रता व हठ के कारण लड़कियाँ ससुराल में अपने अमर्यादित  आचरण से  रहती हैं। सास-ससुर को अपने  माता-पिता  जैसा आदर नहीं देतीं। घरेलू कामकाज भी नहीं करना चाहतीं। वे सोचती हैं कि हम नौकरी करके पैसा कमाती हैं तो घर के काम क्यों करें? सभी परिवारों में नौकर-चाकर नहीं होते कि हुक्म  चलाएँ और काम चल जाये।
       लड़की के माता-पिता का अनावश्यक हस्तक्षेप भी पारिवारिक बिखराव का कारण बनता है। उन्हें चाहिए कि अपनी बेटी को आपसी तालमेल के साथ परिवार में मिलकर रहना सिखायें। अपने परिवार की ही तरह बेटी के परिवार को भी समझें और सकारात्मक रुख रखें।
       आज के इस भौतिक युग में बच्चे समझदार हो रहे हैं वे संयुक्त परिवार की अहमियत को जानने लगे हैं। उन्हें यह लग रहा है कि यदि बड़े-बजुर्ग साथ रहेंगे तो वे व बच्चे सुरक्षित होंगे। इसलिए वे संयुक्त परिवार की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
      परिवार के विघटन में अहं आड़े आता है चाहे वह बच्चों का हो या बड़ों का। बड़ों की अगर गलती हो तो भी बच्चों को नजरअंदाज करना चाहिए यदि पारिवारिक विघटन रोकना हो तो। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाता है और बड़ों को भी अपनी गलती का अहसास हो जाता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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