रविवार, 28 जनवरी 2018

किसी के दिल में जगह बनाने

किसी के दिल में जगह बना लेना बहुत ही आसान होता है। दूसरे के मन को मोह लेने की सबसे पहली शर्त होती है विनम्रता। मन में यदि स्वार्थ, दिखावा या छल-फरेब न हो तो किसी को अपना बनाया जा सकता है। विनम्र व्यक्ति अपने सरल व सहज व्यवहार से सबको अपना बना लेता है और सबका प्रिय बन जाता है।
            किसी दूसरे के दिल में उतरने के लिए अपने रिश्तों में विश्वास और सच्चाई का होना आवश्यक होता है। अपने प्रिय जन के रंग में रंग जाना ही अपनेपन की सीढ़ी है। कहने का तात्पर्य है कि दूसरे को उसी रूप में अपना लेना होता है जैसा वह है। उसकी अच्छाइयों को बढ़ाते हुए कमियों को अनदेखा कर देना चाहिए। तभी सम्बन्ध दूर तक साथ निभाते हैं।
            यदि किसी व्यक्ति की कमियों को लेकर उसे कोसते रहेंगे, उस पर टीका-टिप्पणी करते रहेंगे तो सम्बन्ध कितने भी प्रगाढ़ रहे हों, टूटकर बिखर जाते हैं। व्यक्ति विशेष की कमियों को अपनी अच्छाई से दूर करने का यत्न करना चाहिए। हमेशा यही सोचना चाहिए कि कोई भी इन्सान सर्वगुण सम्पन्न नहीं हो सकता। यदि वह पूर्ण हो जाएगा तब वह मनुष्य नहीं रह जाएगा अपितु ईश्वर तुल्य होकर हमारी पहुँच से दूर हो जाएगा।
            मनुष्य जब विनत होता है तब उसमें सबको मन्त्र मुग्ध करने की सामर्थ्य होती है। लोहे जैसी कठोर धातु जब नरम हो जाती है तो उससे मनचाहे पदार्थ बनाए जा सकते हैं। इसी तरह सोने जैसी ठोस धातु को अग्नि में पिघलाकर जब नरम कर देते हैं तब उससे मनभावन आभूषण बनाए जाते हैं। उन आभूषणों को पहनकर सभी इतराते फिरते हैं। उसी प्रकार अगर इन्सान भी नरम हो जाए तो उसके हृदय से कठोरता अथवा निर्दयता के भाव तिरोहित हो जाते हैं और वह मोम की तरह कोमल बन जाता है। वह लोगों के दिलों में अपनी जगह बना लेता है। वह हर व्यक्ति का प्रिय बन जाता है और फिर किसी के लिए भी पराया नहीं रह जाता।
           इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने स्वार्थ को महत्त्व देते हैं, थोड़े समय पश्चात उनका असली  चेहरा सबके सामने आ जाता है। लोग उनसे शीघ्र किनारा कर लेते हैं। उन्हें पराया बनाने में वे समय नष्ट नहीं करते। जहाँ तक हित साधने की बात है वह तो स्वयं ही हो जाता है। इसके लिए छल-फरेब का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं होती।
          कठोर मिट्टी पर हल चलाकर उसे नरम बना देने पर वह खेत बन जाती है और सभी जीवों का पेट भरती है। यही धरती की विशेषता है कि उसे हम सबकी चिन्ता रहती है। यदि वह स्वार्थी हो जाए तब उसके लिए अपनी जान गंवा देने हेतु कोई रणबाँकुरा आगे नहीं आएगा।
          गेहूँ को पीसकर जब नरम आटा बना लिया जाता है तब उसमें पानी मिलाकर ही रोटी बनाई जाती है। जो सभी जीवों को पुष्ट करती है। यानि सारी प्रकृति स्व से परे रहकर पर को महत्त्व देती है। तभी हम जीवों का अस्तित्व है।
           दूध में शक्कर की तरह घुलमिल जाने और आटे में नमक की तरह एकरूप होकर दूसरों को सुख देने वाले विनयशील व्यक्ति ही वास्तव में अपनी पहचान बनाए रखते हुए भी सबके अपने बनते हैं। यही उनका सबसे बड़ा गुण होता है, इन गुणों को अपनाने में कभी भी परहेज नहीं करना चाहिए।
            अपने अहं को किनारे करके ही दूसरों के हृदय में अपना स्थान बनाया जा सकता है। स्वार्थ के वायरस को भी नगण्य करते हुए एक-दूसरे के दिल में घर बनाया जा सकता है। इन छोटी-छोटी बातों को यदि अपने ध्यान में खा जाए तभी किसी के दिल में सरलता से अपना स्थान बनाया जा सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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