रविवार, 28 जनवरी 2018

कर्त्तव्य से जी चुराना

अपने कर्त्तव्यों से जी चुराने वाला कभी भी सम्मान प्राप्त नहीं करता।अपनी हानि तो वह करता ही है अपनों को भी नुकसान पहुँचाता है।
      अब देखिए एक व्यक्ति बीमार पड़ा है और उसे तुरंत डाक्टर के पास ले जाने की आवश्यकता है। यदि मनुष्य आजकल करके समय बर्बाद करेगा तो हो सकता है रोगी का रोग इतना बढ़ जाए कि उसे प्राणों से ही हाथ धोने पड़ जाएँ।
        अपने कार्यक्षेत्र में काम में कोताही करने से अपने बॉस या मालिक से डाँट-फटकार सुनने को मिलती है। यदि बारबार चेतावनी मिलने पर भी आदत में सुधार न हो तो नौकरी से हाथ भी धोना पड़ सकता है। उस समय मनुष्य पैसे-पैसे का मोहताज हो जाता है। घर-परिवार में हर स्थान पर उसे तिरस्कृत होना पड़ता है।
       अपने व्यापार में मनुष्य को अपनी सुस्ती के कारण हानि उठानी पड़ सकती है। हद तो तब हो जाती है जब उसकी योजनाओं का लाभ कोई और उठा जाता है। तब हाथ मलने के अतिरिक्त कोई और चारा नहीं बचता।
         इसका यह अर्थ हुआ कि जब तक मनुष्य अपने काम को सच्चाई व ईमानदारी से न करे तो उसे सफलता नहीं मिलती। वह जीवन की रेस में पिछड़ जाता है।
        हम अपने आसपास देखते हैं कि कुछ लोगो को अपने धन-वैभव का, किसी को अपनी सुन्दरता का, किसी को अपनी योग्यता आदि का घमंड है। वे अपने सामने दूसरों को हेय समझते हैं। अपने दम्भ के कारण सबसे अलग दिखना चाहते हैं। इसलिए किसी के साथ मिलना या काम करने में अपना अपमान समझते हैं। ऐसे लोगों को आम जन जब नजरअंदाज करते हैं तो उन्हें बहुत कष्ट होता है। सीधा-सा अर्थ है कि यदि किसी के काम न आ सकें तो जीवन व्यर्थ है।
         अपने घर-परिवार की ओर नजर डालिए। कितनी भी सुन्दर व पढ़ी लिखी गुणी बहु-बेटी हो पर यदि काम न करे तो वह बड़े-बजुर्गों की नजर से उतर जाती है। उसी की इज्जत होती है जो सबके साथ मिल-जुलकर रहे व घर-बाहर के कार्यों को सुघड़ता से पूरे करे। इसीलिए यह कहा जाता है-
             'काम प्यारा चाम नहीं'। और 
             'इस देह को चील कौवे ने भी नहीं खाना।'
        एवंविध घर-परिवार में जो लड़का ठीक से काम-धन्धा नहीं करता और उनकी जरूरतों को पूरा नहीं करता वह किसी का प्रिय नहीं होता। गाहे-बगाहे चलते-फिरते उसे सबकी छींटाकशी का शिकार बनना पड़ता है।
        समाज में उसी को सम्मान मिलता है जो अपनी मेहनत के बल पर अपना एक स्थान बनाता है। दूसरों को अपनी योग्यता के बल पर पछाड़ कर कहीं ऊँचाइयों को छू लेता है। कामचोर कहीं भी रहे सफल व्यक्ति नही बन सकता।
       दुनिया का दस्तूर है कि वह चढ़ती कला को प्रणाम करते हैं। प्रातःकालीन उदय होने सूर्य को सभी प्रणाम करते हैं, उसे अर्घ्य देते हैं ओर पूजा करते हैं पर अस्त होते सूर्य को नहीं। संसार उदय का चाहने वाला है अस्त का नहीं। सफल व्यक्ति के आस-पास लोग इस प्रकार मंडराते हैं जिस प्रकार गुड़ के ऊपर मक्खियाँ। असफल व्यक्ति के साथ एक कदम भी चलने के लिए कोई भी तैयार नहीं होता।
         अपने जीवन से कामचोरी की आदत को शीघ्रातिशीघ्र छोड़कर यत्नशील बनना चाहिए। परिश्रम करने वाले की कभी हार नहीं होती। स्वयं को इस समाज में एक सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए कर्त्तव्य पालन करते हुए आगे बढ़ते रहना है।
चन्द्र प्रभा सूद
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