बुधवार, 10 जनवरी 2018

पुस्तक मेला

'विश्व पुस्तक मेला' पर विशेष -
ज्ञान के हो रहे
इस महाकुम्भ में
पुस्तकों के बीच में
बैठे दिन-रात कैसे मजे से कट रहे हैं।

चारों ओर देखो
बस एक हुजूम है
उमड़ता हुआ बेताब
पुस्तक प्रेमियों का यही है संसार

इधर देख लो
या उधर देख लो
जिधर भी देखो बस
कुछ पता ही नहीं चल पा रहा अब।

सभी व्यस्त हैं
अपना मनचाहा
यहाँ खजाना पाने
नजर गड़ी है नहीं है उठ पा रही।

नहीं मिली थी
मित्र मण्डली जो
बहुत दिनों से यूँ तो
आज आए हैं मिलने दूर-दूर से वो।

मिलकर गले वे
एक-दूजे के हो रहे
आनन्दित जन सारे
हँसी-ठहाके गूँजें चहुँ ओर हैं अब।

बहुत दिनों के
बाद चुनेंगे अब
सागर से सब मोती
मिलेगा मन को तोष तभी है सारा।

तरह-तरह के
रंग-बिरंगे भरे थैले
पुस्तकों के लिए सब
अब भी और-और कुछ खोज रहे हैं।

देख-देखकर
यह गहमा-गहमी
सब ओर नजर घुमाओ
हर्षाता भर-भर करके मन दीवाना।

स्कूली बच्चों
की मस्ती और
पुस्तकों की चाहत
रेलपेल और ठेलमठेल खूब है भाती।

एक दिवस ही
बचा शेष है साथी
फिर होगी दौड़ वही
शुरू जीवन की गहमा-गहमी सब।

लम्बी प्रतीक्षा
एक बरस की है
अब पड़ेगी करनी
यही क्रम चल रहा अनवरत यूँही।
चन्द्र प्रभा सूद
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