बुधवार, 31 जनवरी 2018

लघुकथा-दुस्साहस

पिछले दिनों कलर्स टीवी पर चल रहे 'खतरों के खिलाड़ी' कार्यक्रम को देखते हुए अपने एक विद्यार्थी का स्मरण हुआ। घटना को बीते हुए कई वर्ष हो गए हैं।
          दिल्ली के सुप्रतिष्ठित विद्यालय में मैं उन दिनों कक्षा दस की कक्षाध्यापिका थी। यह घटना उस दिन घटी जिस दिन कार्यवश मुझे अवकाश लेना पड़ा। रंजन(नाम बदल हुआ) उस दिन विद्यालय से अनुपस्थित था। अचानक अर्धवकाश के पश्चात वह अपने स्कूल की ड्रेस में फिजिक्स लैब के बाहर खड़ा होकर अपने साथियों को कुछ दिखाने का प्रयास करने लगा। फिजिक्स के अध्यापक एक्सपेरिमेंट करवा रहे थे। बच्चों की फुसफुसाहट सुनकर उन्होंने इसका कारण जानना चाहा। बच्चों ने उन्हें बताया कि बाहर खड़ा राजन कुछ लेकर आया है।
           उन्होंने उसे लैब के अन्दर बुलाया और स्कूल देर से आने का कारण पूछा। उसने मानो चुप्पी साध ली थी। तब उसके साथियों ने बताया- 'सर! इसके बैग में कुछ है।'
         सर ने पुनः पुनः पूछा पर उत्तर नदारद था। अब सर ने उसके बैग में हाथ डाला तो उन्हें कुछ लिजलिजा-सा हिलता हुआ जीव लगा। उन्होंने ने उसे डाँटा और बैग उसके हाथ से छीनकर, वह जीव बाहर निकल तो वह एक साँप था। इस पर सारे स्कूल में हड़कम्प मच गया। आनन-फानन उसके माता-पिता को फोन किया गया। उसकी बड़ी बहन को उसकी कक्षा से बुलाया गया।
          बहुत ही आश्चर्य की बात थी कि स्कूल बस में आने-जाने वाले उस बच्चे के दिमाग में ऐसी शरारत करने की बात सूझी कैसे? सपेरा उसे कहाँ मिला? उसने साँप खरीदने का निश्चय कैसे किया?
         उसके माता-पिता के आने पर ये सभी प्रश्न उससे पूछे गए। उसने उत्तर दिया- 'एक दिन छुट्टी के समय उसे सपेरा दिखाई दिया। बालसुलभ जिज्ञासावश उसने सपेरे से बात की और साँप खरीदने की इच्छा प्रकट की। आनन-फानन सौदा तय हो गया। उस सपेरे ने उसी दिन साँप देने के लिए कहा था। इसलिए वह घर से समयानुसार आ गया था, पर स्कूल देर से आया।'
         पलक झपकते ही रंजन स्कूल के बच्चों का हीरो बन गया था। इस दुःसाहसिक कृत्य के लिए रंजन की वाइस प्रिंसीपल द्वारा पिटाई की गई तथा स्कूल से कुछ निश्चित अवधि के लिए सस्पेन्ड कर दिया गया। ताकि दूसरे बच्चे ऐसी घटनाओं को अन्जाम न दे सकें। रंजन को सजा मिलनी चाहिए थी अथवा सराहना? यह प्रश्न आज भी मन को उद्वेलित करता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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