मंगलवार, 9 जनवरी 2018

ज्ञान का आगार पुस्तकें

मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र पुस्तकें होती हैं। जो व्यक्ति पुस्तकों को मित्र बनाता है वह ज्ञान का आगार(खजाना) बन जाता है। दूसरे शब्दों में लोग ऐसे पुस्तक प्रेमी को एनसाइक्लोपिडिया कहने लगते हैं। कोई उसका मित्र बने या न बने उसे इसकी चिन्ता नहीं होती।
        अपने सद् ग्रन्थों के अध्ययन से हमें वह आत्मिक ज्ञान प्राप्त होता है जो हमारा लोक-परलोक सुधारता है और इस संसार में आने के लक्ष्य मोक्ष के समीप  हमें ले जाता है।
         पुस्तकों का मित्र जीवन में कभी अकेलेपन का अनुभव नहीं करता। दुनिया के सारे मित्र साथ छोड़ सकते हैं पर ये हमारा साथ कभी नहीं छोड़ते। मित्र यदि सन्मित्र हो तो जीवन सफल हो जाता है परन्तु यदि कुमित्र से संगति हो जाती है तो जीवन बरबाद हो जाता है।
      पुस्तक रूपी मित्र सन्मित्र होते हैं ये कदापि कुमित्र नहीं हो सकतीं। इनके साथ रहने से कुमार्गगामी होने का भय नहीं रहता और मनुष्य व्यसनों से बचा रहता है। ये हमें सन्मार्ग की ओर प्रवृत्त करके हमारी सर्वविध उन्नति करती हैं।
       यद्यपि आज मंहगाई के इस युग में अन्य सारी वस्तुओं की भाँति पुस्तकों का मूल्य भी अधिक होता जा रहा है तथापि  पुस्तक प्रेमियों के लिए उनका मूल्य कोई मायने नहीं रखता। वे अपनी मनचाही पुस्तकें खरीदते हैं और यह भी परवाह नहीं करते कि उस पर उन्हें कमीशन भी मिल रहा है या नहीं।
       यहाँ मैं एक बात जोड़ना चाहती हूँ कि लोग अपने कुव्यसनों के लिए लाखों-करोड़ों रुपए बरबाद कर देते हैं। अपना व अपनों की चिन्ता किए बिना धन व समय को नष्ट करते हैं। परन्तु पुस्तकों के साथ से हम अपने समय व धन का सदुपयोग करते हैं।
     यदि कोई पुस्तक प्रेमी उन्हें खरीदने में असमर्थ है तो भी समस्या आड़े नहीं आती। बहुत-से सरकारी, गैरसरकारी व निजी पुस्तकालय भारत में स्थान-स्थान पर उपलब्ध  हैं। थोड़ा-सा शुल्क देकर उन पुस्तकालयों का सदस्य बना जा सकता है। सदस्य बनने के बाद वहाँ से पुस्तकें इश्यू करवा कर घर ले जाकर पढ़ सकते हैं। अन्यथा वहाँ बैठकर भी अपनी मनचाही पुस्तकों का अध्ययन किया जा सकता है। इन पुस्तकालयों में विभिन्न विषयों की पुस्तकें उपलब्ध होती हैं। पाठक अपनी रुचि के अनुसार पुस्तक लेकर पढ़ सकता है।
        इन पुस्तकालयों के अतिरिक्त बहुत से वाचनालय भी हैं। जहाँ बैठकर समाचार पत्र पढ़ कर अपना ज्ञान वर्धन किया जा सकता है।
       कुछ पुस्तक प्रेमी मिलकर भी अपना पुस्तकालय बना सकते हैं। अपनी रुचि के अनुसार पुस्तकों का चयन करके पढ़ सकते हैं और अपना शौक पूरा करके ज्ञान वर्धन कर सकते हैं।
       लेखन भी तभी श्रेष्ठ होता है जब हम स्वाध्याय करते हैं। हमारे विचारों की परिपक्वता अध्ययन से आती है। जिस प्रकार विद्यार्थी, संगीतज्ञ आदि पुनः पुनः रियाज़ करते हैं उसी प्रकार लेखकों को भी पठन व मनन करना चाहिए।
         पुस्तकें तो फिर हमारा पथप्रदर्शक हैं व हमें भटकने से बचाती हैं। दुर्व्यसनों की ओर प्रवृत्त नहीं होने देतीं। वे माता की तरह हमारी रक्षा करती हैं। पिता की तरह ऊँचाईयों की ओर ले जाती हैं। गुरु की भाँति हमारा पथप्रदर्शन करती हैं। इसलिए यत्नपूर्वक इनसे मित्रता करनी चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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