शुक्रवार, 11 मई 2018

दुर्घटना के समय सूचना

आजकल सड़क दुर्घटनाएँ बहुत अधिक होने लगी हैं। रेल, हवाईजहाज की दुर्घटनाएँ भी यदा कदा हो जाती हैं। ये समाचार प्रतिदिन समाचार पत्रों की तथा टी वी समाचारों की सुर्खियों में बने रहते हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगने लगता है कि लोग यहाँ मर गए अथवा वहाँ मारे गए के अतिरिक्त कोई अन्य समाचार हैं ही नहीं। हर तरफ मानो मृत्यु का ही ताण्डव हो रहा है। इन समाचारों को देख-सुनकर मन बहुत व्यथित हो जाता है।
           आजकल युवाओं को स्पीड का बहुत ही चक्कर रहता है, उन्हें लाख समझा लो उनके कान पर जूँ भी नहीं रेंगती। मोटरसाइकिल चलाने वाले युवा पता नहीं किस नशे में रहते हैं? बाइक को चलते वाहनों के बीच से आड़ा-टेड़ा करके चलाते हैं। बहुत से लोग अपने पूरे पेपर्स साथ लेकर नहीं चलते। कई बार लोग घूमने के उद्देश्य से अपने शहर से बाहर जाते हैं। जरूरी नहीं कि वे अपना पहचान पत्र साथ लेकर चलें। इससे भी बढ़कर समस्या होती है सूचना देने की।
          इन सब घटनाओं के विषय में बात करने के साथ-साथ एक अन्य महत्त्वपूर्ण चर्चा भी करनी है। हम सभी अपने साथ मोबाइल फोन लेकर तो चलते हैं पर अपना परिचयपत्र लेकर नहीं चलते। ईश्वर न करे कभी ऐसी दुर्घटना किसी के साथ हो जाए तो उसकी सूचना उनके परिवारी जनों को कैसे दी जाएगी? मोबाइल पर लिखे फोन नम्बरों से तो ज्ञात नहीं हो सकता कि उनमें परिवार के लोगों का नम्बर कौन-सा है। हम लोग अपने मोबाइल में नाम के साथ ही नम्बर लिखते हैं। हमारे अलावा और कोई नहीं जान सकता कि इनमें से कौन-सा नम्बर हमारे किसी परिवार के सदस्य या नजदीकी रिश्तेदार अथवा मित्र का है।
         समस्या तब होती है जब हम अचानक दुर्घटना ग्रस्त हो जाएँ या घूमने गए हुए हों तब अचानक बीमार पड़ जाएँ। जो कोई व्यक्ति उस समय अस्पताल पहुँचाना चाहता है, उसे हमारा मोबाइल फोन तो मिल जाता है परन्तु वह यह नहीं जान पाता कि फोन किसे किया जाय? क्योंकि मोबाइल में सैकड़ों नम्बर लिखे रहते हैं किन्तु ऐसी आपात स्थिति (Emergency) में किससे सम्पर्क किया जाय?
         मैं अपना ही उदाहरण देती हूँ। हमारे परिवार में अपनी ही जाति में बच्चों की शादी हो, ऐसी कोई रूढ़ि नहीं है। मेरी तीन बहनें हैं और एक भाई है। मेरे भाई का सरनेम गुप्ता है। बहनों में एक का सरनेम गुप्ता है, मंझली बहन का अरोरा और सबसे छोटी बहन का वर्मा है। मेरी छोटी ननद का सरनेम छबड़ा है और बड़ी ननद अब इस दुनिया में नहीं है उनका तलवार है। सोचने की बात है कि मोबाइल की कॉटेक्ट लिस्ट को पढ़कर कोई अनजान व्यक्ति सपने में भी नहीं मेरे सम्बन्धियों का अनुमान नहीं लगा सकता। यदि मेरे सूद सरनेम को देखकर कोई सारे सूद लोगों के नाम छाँटेगा तब फिर हो सकता कुछ सफलता मिल जाए। सारे सूद मेरे सम्बन्धी नहीं हो सकते। हो सकता है कुछ फेसबुक के कारण जुड़े हों और कुछ दूर के सम्बन्धी या मित्र हों।
          यहाँ एक बात और जोड़ना चाहती हूँ कि बहुत लोगों के पास लैण्ड लाइन फोन होता है। उसका नम्बर यदि 'होम' लिखकर सेव कर लिया जा सकता है। उस फोन का कोई भरोसा नहीं होता। हो सकता है कि वह आउट ऑफ सर्विस हो या घर पर उस समय कोई हो ही नहीं। इस तरह बहुत-सा समय नष्ट हो सकता है। हो सकता है चाहकर भी कोई व्यक्ति फोन से सूचना देने के लिए सम्पर्क साधने में विफल हो जाए।
           कुछ दिनों से इस विषय पर मैं बहुत ही गम्भीरता से विचार कर रही हूँ। मेरी बुद्धि ने इसका एक हल निकल है कि अपने परिवार के सदस्यों के नाम लिखने से पहले 'फैमिली' शब्द लिख दिया जाए। इस तरह परिवार के सारे सदस्यों के नाम फैमिली के अन्तर्गत एकसाथ आ जाएँगे। इस तरह उन्हें ढूंढ पाना सरल हो जाएगा। ईश्वर न करे कभी कोई अनहोनी हो, यदि ऐसा कुछ घटित हो जाता है तो तुरन्त परिवारी जनों को सूचना मिल सके। आशा है आप सभी मेरे इस सुझाव अपनी सहमति की मोहर लगाएँगे और इसके अनुरूप ही उपाय भी करेंगे।
चन्द्र प्रभा सूद
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