रविवार, 27 मई 2018

बेटियाँ

बेटियाँ अपने माता-पिता के जीवन में शीतल छाया के समान आती हैं। सारा जीवन वे उनके सुख की कामना करती रहती हैं। उनका वश चले तो वे अपने माता-पिता को कभी काँटा चुभने जैसा दर्द भी न होने दें। बेटी जब बड़ी होने लगती है तो वह सोचती है कि वह अपने माता-पिता का सहारा बने। उनके हर काम में उनका हाथ बटाए। यानी उनके आराम के लिए वह सभी काम करे। माता-पिता को भी अपनी सुघड़ बेटी पर मान होता है। माता तो फिर एक बार बेटी पर क्रोध कर सकती है क्योंकि उसका उद्देश्य बेटी को सर्वगुण सम्पन्न बनाना होता है। ताकि आगे आने वाली अपनी जिन्दगी में उसे कोई कष्ट न हो। पिता का निश्छल स्नेह बेटी की पूँजी होता है।
          एक घटना का यहाँ चित्रण का रही हूँ जिसे कुछ दिन पूर्व पढ़ा था। उसमें लेखक का नाम नहीं लिखा हुआ था। पिता और पुत्री के प्यार को यह घटना दर्शा रही है जो मन को छू लेती है।
         "पापा मैंने आपके लिए हलवा बनाया है" ग्यारह साल की बेटी ने अपने पिता से कहा जो अभी ऑफिस से घर में घुसा ही था।
        पिता- "वाह, क्या बात है,लाकर खिलाओ फिर पापा को।"
        बेटी दौड़ती हुई रसोई में गई और एक कटोरे में हलवा डालकर ले आई। पिता ने खाना शुरू किया और बेटी को देखा। पिता की आँखों में आँसू थे।
        बेटी ने पूछा- "क्या हुआ पापा हलवा अच्छा नहीं लगा।"
        पिता- "नहीं मेरी बेटी, बहुत अच्छा बना है और देखते देखते पूरा कटोरा खाली कर दिया।"
        इतने में माँ बाथरूम से नहाकर बाहर आई और बोली- "ला मुझे खिला हलवा।"
        पिता ने बेटी को 50 रुपए इनाम में दिए। बेटी खुशी से मम्मी के लिए रसोई से हलवा लेकर आई। मगर ये क्या जैसे ही उसने हलवे का पहला चम्मच मुँह में डाला तो तुरन्त थूक दिया। बोली- "ये क्या बनाया है। ये कोई हलवा है, इसमें चीनी नहीं नमक भरा है और आप इसे कैसे खा गए ये तो एकदम कड़वा है। मेरे बनाके खाने में तो कभी नमक कम है, कभी मिर्च तेज है कहते रहते हो और बेटी को बजाय कुछ कहने के इनाम दे रहे हो।"
          पिता हँसते हुए- "पगली, तेरा मेरा तो जीवन भर का साथ है। रिश्ता है पति-पत्नी का, जिसमे नोकझोंक, रूठना-मनाना सब चलता है। ये तो बेटी है कल चली जाएगी। आज इसे वो अहसास, वो अपनापन महसूस हुआ जो मुझे इसके जन्म के समय हुआ था। आज इसने बड़े प्यार से पहली बार मेरे लिए कुछ बनाया है, फिर वो जैसा भी हो मेरे लिए सबसे बेहतर और सबसे स्वादिष्ट है।"
           वास्तव में बेटियाँ अपने पापा की परियाँ और राजकुमारी होती हैं। वह रोते हुए पति के सीने से लग गई और सोच रही थी कि इसीलिए हर लड़की अपने पति में अपने पापा की छवि ढूंढती है। हर बेटी अपने पिता के बड़े करीब होती है या यूँ कहें कलेजे का टुकड़ा होती है। इसलिए शादी में विदाई के समय सबसे ज्यादा पिता ही रोता है। बेटी को पराए घर यानी ससुराल भेजते समय उसे लगता है कि उसके हृदय का कोई कोना रीता हो गया है।
          इस घटना में पिता का अपनी बेटी के प्रति और बेटी का अपने पिता के प्रति अगाध प्यार दिखाई दे रहा है। माता-पिता बेटी के भविष्य को लेकर सदा ही आशंकित रहते हैं। परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि वे अपनी बेटी के लालन-पालन में कोई कमी रखते हैं। समझदार बेटियाँ अपने माता-पिता का सिर किसी भी शर्त पर झुकने नहीं देतीं। वे सदा इस बात का ध्यान रखती हैं कि उनके माता-पिता की इज्ज़त बनी रहे और किसी भी प्रकरण में उनकी समाज में किरकिरी न होने पाए।
           कई जन्मों के पुण्यकर्मों के पश्चात किसी घर में बेटी का जन्म होता है। वे माता-पिता धन्य हैं जो बेटी को पाल-पोसकर, उसे संस्कारी बनाते हैं। उसकी हर इच्छा को पूर्ण करते हैं। उसे इस योग्य बनाते हैं कि वह सिर उठाकर चल सके और वह समाज में अपना स्थान बना सके।
चन्द्र प्रभा सूद
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