बुधवार, 30 मई 2018

एक अक्षर पर बच्चों के नाम

आजकल प्रायः घरों में सभी बच्चों के नाम एक ही अक्षर पर रखने का चलन बढ़ रहा है। कहीं पिता के नाम के पहले अक्षर के अनुसार बच्चों का नाम रखा जाता है तो कहीं माता के नाम के पहले अक्षर के अनुसार बच्चों का नाम रखा जाता है। वैसे इस प्रचलन में ऐसी कोई बुराई नजर नहीं आती। परन्तु कभी-कभार ऐसी परिस्थिति बन जाती है कि वह मनुष्य को दुख के सागर में धकेल देती है। उस समय मनुष्य सोच भी नहीं पता कि उस स्थिति का सामना वह किस प्रकार करे।
           आज एक सत्य घटना की चर्चा करते हैं। एक परिवार में माता-पिता और तीन बेटे थे। बेटे युवा हो गए थे और उन सबका विवाह हो चुका था। उस घर में पिता के नाम के पहले अक्षर के अनुसार ही बेटों के नाम रखे गए। यानी पिता का नाम रमेश था और बड़े बेटे का नाम राजेश, मँझले बेटे का नाम राकेश और छोटे बेटे का नाम राजीव रखा गया। उनका सरनेम मेहरा था। इस तरह चारों का नाम हुआ आर. मेहरा। अब एक दिन घर में पुलिस वाला आया और उसने बताया कि एक बस का एक्सीडेण्ट हो गया है और उसमें यात्रा कर रहे आर. मेहरा की मृत्यु हो गई है।
          संयोग से चारों पुरुष उस समय घर नहीं पहुँचे थे। अब विचारणीय यह था कि कौन से आर. मेहरा की मृत्यु हुई है। सब महिलाओं के प्राण अटक रहे थे। घर में मातम का सा माहौल बन गया था पर अभी तक सस्पेंस बना हुआ था कि किसकी मृत्यु का शोक मनाया जाए। कुछ समय पश्चात घर के मुखिया रमेश मेहरा ने घर में प्रवेश किया। घर की मालकिन ने सुख की साँस ली कि उसका पति जीवित है। खुशी के उन पलों में उसे यह भी स्मरण नहीं रहा कि उसके किसी बेटे की मृत्यु हो गई है।
          उसके थोड़े समय बाद बड़ा बेटा राजेश घर लौट आया। उसे सकुशल देखकर उसकी पत्नी फूली नहीं समाई। उसे पानी देने के लिए रसोई में चली गई। अब मृत्यु होने का सन्देह मँझले बेटे और छोटे बेटे की ओर था। कुछ देर पश्चात छोटा बेटा राजीव भी घर आ पहुँचा। उसे सुरक्षित देखकर उसकी पत्नी उससे लिपट गई और खुशी के आँसू उसकी आँखों से बहने लगे। अब जब तीनों पुरुष घर लौट आए तो यह निश्चित हो गया है कि मँझले बेटा राकेश उन्हें छोड़कर असमय ही दुनिया से विदा हो गया है। घर में उसकी मौत का मातम छा गया। रोना-धोना शुरू हो गया।
          इसी बीच राकेश भी घर लौट आया। उसने घर वालों को रोता-बिलखता देखा तो उनसे कारण पूछा। घर वालों ने उसे सारी बात बताई। उसने कहा कि वह उस बस से जाने वाला था। उसने टिकट भी बुक करवा ली थी। परन्तु उसके एक दोस्त को बहुत आवश्यक कार्य से जाना था। बस में कोई सीट खाली नहीं थी। इसलिए मैंने उसे अपनी टिकट दे दी और कहा कि मैं फिर किसी दिन चला जाऊँगा। अब मैं घर वापिस आ गया हूँ। सारे घर के सदस्यों को चैन आ गया कि घर सभी मर्द सुरक्षित हैं। अब उन्हें समझ आया कि एक ही अक्षर पर सबके नाम होने से ऐसी दुखद स्थिति का उन्हें सामना करना पड़ा। तब उसी पल उन सबने निर्णय किया कि वे इसी क्षण से आर.मेहरा लिखने के स्थान पर अपना पूरा नाम लिखा करेंगे।
        इस तरह की गलतियाँ बहुधा हो जाती हैं। दोष किसी का भी नहीं होता परन्तु ऐसी दुखद स्थितियों का सामना करना पड़ जाता है। इनसे निपटने के लिए इस घटना के पात्रों की तरह कोई-न-कोई हल तो निकलना ही पड़ता है। मैं इसके विरोध में नहीं हूँ कि घर के बच्चों के नाम एक ही अक्षर से रखे जाएँ। यह घर के सदस्यों का निजी मामला है। इस विषय में किसी को भी हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। माता-पिता को जो भी नाम रुचिकर हो, वे अपने बच्चों का नाम रखें, यह उनका मौलिक अधिकार है।
चन्द्र प्रभा सूद
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