बुधवार, 23 मई 2018

दिनों से सम्बन्धित रूढ़ियाँ

कर्म करने के लिए ईश्वर ने प्रतिदिन के चौबीस घण्टे और एक सप्ताह के सात दिन बनाए हैं- सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार। इन सात दिनों के अतिरिक्त कोई अन्य दिन यानी आठवाँ दिन मालिक ने नहीं बनाया। ये सभी दिन बहुत अच्छे हैं, इनमें कोई खोट नहीं है। प्रभु ने सातों दिनों को समान रूप से हमारे लिए बनाया है। हम इन्सान ही हैं जो किसी दिन को शुभ मानते हैं और किसी दिन को अशुभ। किसी कार्य विशेष के लिए हम मनुष्य किसी भी एक दिन को चुन लेते हैं और शेष दिनों को अशुभ मानने लगते हैं।
           अब लोगों ने दिनों को बाँट दिया है। किस दिन किस देवता की पूजा करनी चाहिए, उसका विधान कर दिया है। सोमवार भगवान शिव के लिए, मंगलवार हनुमान जी के लिए, बृहस्पतिवार साईं बाबा और सन्तोषी माता के लिए औऱ शनिवार शनि देवता के लिए निश्चित कर दिए हैं। एवंविध इन्हीं दिनों के अनुसार ही उन देवों के लिए व्रत रखने का भी विधान बनाया गया है। इसी प्रकार मांसाहारी मंगलवार और शनिवार को माँसाहार न खाने के लिए कहते हैं। शराब पीने वाले भी इन दोनों दिनों में उसका सेवन नहीं करते।
          इस विभाजन से दिनों के अनुसार उस विशेष भगवान की पूजा करनी चाहिए। हो सकता है कि कोई व्यक्ति किसी अन्य रूप में ईश्वर की उपासना करता हो, तब वह क्या करेगा? इस प्रकार का बन्धन लगाना मेरे विचार से उपयुक्त नहीं है। हर व्यक्ति स्वतन्त्र है, वह अपनी इच्छा के अनुरूप किसी भी रूप में ईश्वर की उपासना कर सकता है। जो जिस रूप में ईश्वर की उपासना करता है, उसे वैसे ही पूजा-अर्चना करते रहना चाहिए। किसी प्रकार के अनिष्ट की शंका मनुष्य को अपने मन में नहीं लानी चाहिए।
          लोग वार के अनुसार वस्त्र चयन करते हैं। सोमवार को सफेद और हल्के रंग के वस्त्र, मंगलवार को लाल या गुलाबी वस्त्र, बुधवार को हरे वस्त्र, बृहस्पतिवार को पीले या नारंगी वस्त्र, शुक्रवार को गहरे रंग के फूलों वाले प्रिंटेड वस्त्र, शनिवार को काले, भूरे या नीले वस्त्र और रविवार को अपनी इच्छानुसार खिले-खिले रंग के वस्त्र पहनने का प्रचलन है। अब बताइए यह क्या बात हुई? जब जो मन चाहे वैसे वस्त्र क्यों न मनुष्य पहने? इस तरह उसे कुँए का मेंढक बनाने के पीछे का कारण समझ नहीं आता। इस तरह की पाबंदियाँ लगाना किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता।
         कुछ लोग दिनों के अनुसार विशेष दिशा में यात्रा न करने का सुझाव देते हैं। रविवार को पश्चिम दिशा की यात्रा करना शुभ नहीं माना जाता है। सोमवार को पूर्व दिशा की यात्रा पर नहीं जाना चाहिए। मंगलवार के दिन उत्तर दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए। बुधवार के दिन भी उत्तर दिशा में यात्रा करना शुभ नहीं माना जाता है। गुरुवार के दिन दक्षिण दिशा की यात्रा करना शुभ नहीं माना जाता है। शुक्रवार को पश्चिम दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए। शनिवार को पूर्व दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए।
          अब बताइए प्रतिदिन अनेक हवाई जहाज, हजारों रेलगाड़ियाँ, पब्लिक ट्रांसपोर्ट व निजी वाहन हर दिशा की ओर आवागमन करते हैं। लाखों लोग इनमें यात्रा करते हैं। अपवाद हो सकता है पर हर किसी का अशुभ तो नहीं हो जाता। समय और परिस्थितियों के अनुसार इन रूढ़ियों से मुक्त हो जाना चाहिए। अनावश्यक ही स्वयं को व्यथित करने का कोई औचित्य नहीं होता। इस तरह यदि विचार करने लगें तो मनुष्य कोई कार्य ही नहीं कर सकेगा।
         इन सब झमेलों में पड़ने का अर्थ है, अपनी जिन्दगी को नरक बना देना। जितनी इनसे दूरी बनाई जाए उतना ही व्यक्ति के लिए अच्छा है। इन सबमें जितना मनुष्य फँसता जाता है उतनी ही परेशानी मोल लेता है। सबसे अच्छा सूत्र है जिस रूप में ईश्वर की उपासना करते हैं, सच्चे मन और ईमानदारी से करते रहिए। कोई भी कार्य करने से पहले उसकी सफलता के लिए मालिक का हृदय से स्मरण कीजिए। कार्य के पूर्ण होने पर उसे धन्यवाद दीजिए। इससे कर्तापन का अहंकार मन में नहीं आता। मालिक के बनाए सभी दिन अच्छे हैं और किसी भी दिन को अशुभ कहना उसकी सत्ता को चुनौती देना होता है। इतनी हमारी सामर्थ्य नहीं हैं। उस परमपिता परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रखते हुए जीवन व्यतीत करने से मनुष्य को सुख और शान्ति मिलती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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