शनिवार, 26 मई 2018

लाइन या कतार तन्त्र

जिधर नजर घुमाओ लाइन-ही-लाइन दिखाई देती है। यह लाइन या कतार तन्त्र हमारे जीवन का एक हिस्सा बन गया है। पता नहीं लोग लाइनों में ही खड़े रहते हैं या अपने काम-धाम भी करते हैं। हर जगह दिखाई देने वाली लाइन को देखकर यही लगता है कि हम सब लोग इस तरह लाइनों में लगने के आदी हो गए हैं। ऐसा नहीं है कि हम केवल मजबूरी में ही लाइन में खड़े होते हैं अपितु अपने मनोरञ्जन और शौक पूरे करने के लिए भी लाइन में लगना पसन्द करते हैं।
          रेलवे स्टेशन पर जाइए वहाँ टिकटघर पर लाइनें लगी रहती हैं। एयरपोर्ट पर भी कम लाइन नहीं रहतीं। जहाज में चढ़ने के लिए भी लम्बी-सी लाइन प्रतीक्षा कर रही होती है। मेट्रो स्टेशन की ओर चले जाइए, वहाँ भी यात्रियों की लम्बी लाइन दिखाई देती है। हर बस स्टॉप पर भी सारा समय भीड़ रहती है। गाड़ियाँ इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि सड़कों पर पीक हॉर्स में प्रतिदिन जाम जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। इतना समय लग जाता है कहीं पहुँचने के लिए। नदियों में नौका विहार करने के लिए भी टिकट कतार में लगकर ही मिलता है।
          गाड़ियों के शोरूम में जाने पर ज्ञात होता है कि नए मॉडल्स की गाड़ियों पर वेटिंग चल रही है, ग्राहकों को छह-छह महीने तक गाड़ियों की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है।
          रेस्टोरेण्ट में लंच या डिनर के लिए जाने पर पता चलता है कि कोई टेबल खाली नहीं है, वहाँ भी लाइन है, कुछ समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। शॉपिंग मॉल में पार्किंग की जगह नहीं है। इतनी अधिक भीड़ है वहाँ पर भी कि प्रतीक्षा करने के अलावा कोई चारा नहीं होता। फिर समान इकट्ठा कर लें तो पैसे देने के लिए भी लम्बी लाइन रहती है। ऑनलाइन शॉपिंग के इस दौर में भी वर्किंग डे में शाम के समय बाजारों में पैर रखने को जगह नहीं है।
          नौकरी पाने के लिए कतार, स्कूल या कॉलेज में दाखिले के लिए कतार का सामना करना पड़ता है। बच्चों को स्कूल में हर समय कतार में चलने का निर्देश दिया जाता है। मन्दिर में कतार से जाओ, कहीं भण्डारा हो तो लाइन में लग जाओ। बिजली, पानी, टेलीफोन आदि कोई भी बिल जमा करना हो तो वहाँ भी वही लाइन। इनकमटैक्स, हाउसटैक्स आदि भी बिना लाइन लगाए जमा नहीं होते।
          फिल्म देखने का मूड बना लो तो वहाँ टिकट काउण्टर पर अच्छी खासी लाइन रहती है। पैसे निकलवाने के लिए ए टी एम में जाओ तो वहाँ कतार रहती है। बैंक में ट्रांजेक्शन करने जाओ तो लाइन में खड़े रहो। डाकघरों में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ता है। किसी भी स्थान विशेष या चिड़ियाघर आदि में घूमने जाने पर भी कतारों का सामना करना पड़ता हैं।
          पिछले दिनों जब जियो कम्पनी के फोन की रजिस्ट्रेशन हो रही थी तो बहुत लम्बी लाइनें लगती थीं। कई मोबाइल कम्पनियों के मॉडल आउट ऑफ स्टॉक हो जाते हैं। उन्हें पाने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। टोल फ्री नम्बर पर फोन करने पर यही सुनाई देता है- ’आप कतार में हैं, कृपया प्रतीक्षा करें।’
          अस्पताल में यदि जाना पड़े तो वहाँ कार्ड बनवाने के लिए लम्बी कतारें होती हैं। उसके बाद डॉक्टर को दिखाने के लिए फिर से लाइन में लगना पड़ता है। और तो और श्मशान में भी लाइन लगी रहती है। अभी एक शव का दाह संस्कार होता है तो वहाँ दूसरा तैयार रहता है।
          सन 1966 की चर्चा करना चाहती हूँ, जब कुछ भी ओपन मार्किट में नहीं मिलता था। आटा, चावल, चीनी, सूजी, मैदा सब राशन की दुकानों पर मिलता था। उस समय लोग सर्दी, गर्मी, बरसात आदि की चिन्ता किए बिना घण्टों लाइन में खड़े रहते थे, तब कहीं जाकर भोजन का जुगाड़ हो पाता था। तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने लोगों से सप्ताह में एक दिन सोमवार की शाम को अन्न का त्याग या उपवास करने की अपील की थी। लोगों ने उनके सुझाव का पालन किया। फिर उन्होंने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया। उसके बाद धीरे-धीरे सब समान ओपन मार्किट में मिलने लगा।
          उस समय गैस के चूल्हे उपलब्ध नहीं थे। लोग चूल्हे, अंगीठी और स्टोव पर खाना बनाते थे। मिट्टी का तेल भी लाइनों में लगकर ही मिला करता था। आज भी बहुत से लोग कतार में लगकर ही राशन और मिट्टी का तेल लेते हैं।
          लगता है कि हम मनुष्यों का जीवन किसी-न-किसी कतार में खड़े हुए ही बीत जाने वाला है। इन लाइनों से मुक्ति का उपाय आज फिलहाल नजर नहीं आ रहा। आज स्थिति है कि पैसा भी खर्चो और लाइन में लगने की पीड़ा भी झेलो। हो सकता है भविष्य में इसका कोई हल निकल जाए और इस कतार तन्त्र से हमें मुक्ति मिल जाए।
चन्द्र प्रभा सूद
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